बिहार के एक गाँव का जेंडर फ्री स्कूल, जहां बच्चे पेड़ पर चढ़कर अंग्रेजी सीखते हैं और मिलेट केक बनाते हैं

अनंतमूल ग्रामीण बिहार में एक ऐसा गैर-सरकारी शिक्षण संस्थान है, जिसके संस्थापक शिवानी कुमारी और निवास कुमार लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासी बच्चे, लैंगिग रुढ़ियों की परवाह किए बिना अंग्रेजी सीखते हैं क्योंकि वे पेड़ों पर बैठते हैं, मोटे अनाज की केक बेक करते हैं और फुटबॉल खेलते हैं।

Aishwarya TripathiAishwarya Tripathi   24 April 2023 2:32 PM GMT

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बिहार के एक गाँव का जेंडर फ्री स्कूल, जहां बच्चे पेड़ पर चढ़कर अंग्रेजी सीखते हैं और मिलेट  केक बनाते हैं

बुधवार का दिन है और अनंतमूल स्कूल में चहल-पहल है क्योंकि बच्चे मिलेट केक बनाने की तैयारी कर रहे हैं। बुधवार सामुदायिक दिवस होता है, जब बिहार के जमुई जिले के गाँव के स्कूल में नामांकित 55 आदिवासी बच्चे खाना बनाते और साफ-सफाई करते हैं।

मिलेट्स को स्कूल की फाउंडर शिवानी कुमारी सबसे पहले बच्चों के सामने लेकर आईं थीं, जो अपने जंगल में रहने वाले छात्रों को खाना बनाने की क्लास में स्थानीय रूप से उगाई गई सामग्री इस्तेमाल करने की कोशिश करती हैं। बच्चे स्कूल की रसोई में लिए महुआ, मशरूम और स्थानीय रूप से उत्पादित मिलेट का भी इस्तेमाल करते हैं।

लेकिन, शिवानी और को-फाउंडर निवास कुमार को अपने छात्रों को उन गतिविधियों से जोड़ने में कुछ समय लगा, जिन्हें शुरू में कई लड़के सिर्फ लड़कियों का काम समझते थे।


चकाई प्रखंड के नोनतारा गाँव में आधा एकड़ जमीन पर फैला अनंतमूल एक जेंडर फ्री स्कूल है, जो बुनियादी स्तर पर बच्चों में लैंगिक भेदभाव को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। निवास और शिवानी के दिमाग की उपज, अनंतमूल को अप्रैल, 2022 में एक शिक्षण केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था और शुरुआत में इसमें 30 नामांकन थे। निवास जमुई का रहने वाले हैं।

इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को उनके द्वारा खेले जाने वाले खेल से लेकर उनकी किताबों में मिलने वाले वाक्यों तक हर कदम पर लैंगिक रूढ़िवादिता पर सवाल उठाने को कहा जाता है। धीरे-धीरे और लगातार, समाज की लिंग-परिभाषित अवधारणाएं यहां लुप्त होती जा रही हैं।

स्कूल अपने पाठ्यक्रम में सरकार की राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की पुस्तकों का इस्तेमाल करता है। लेकिन यहां लगभग हर दिन एक पाठ्यक्रम सुधार सामने आता है।

उदाहरण के लिए, स्थानीय रूप से किट-किट या हॉप्सकॉच नाम का एक खेल, यहां लड़के और लड़कियों दोनों द्वारा बड़े चाव से खेला जाता था, लेकिन किताबों ने खेल को एक लड़की-विशिष्ट के रूप में जाना जाता है।

अनंतमूल के एक छात्र 11 वर्षीय परमेश्वर ने गाँव कनेक्शन को बताया, "कोई भी खेल कोई भी खेल सकता है।"


"जैसा कि हमारी किताब में कहा गया है कि किट-किट लड़कियों द्वारा खेला जाता है, लेकिन मैं भी इसे खेलता हूं। मुझे लगता है कि यह गलत लिखा गया है, ”परमेश्वर ने कहा।

फिर छात्रों ने पाठ्यपुस्तक में उस वाक्य को सुधारा ताकि भविष्य में कोई गलती न हो। छात्रों को सैद्धांतिक रूप से लैंगिक भेदभाव के बारे में पढ़ाने के बजाय, यहां के शिक्षक उनके लिए खुद इस पर सवाल उठाने के लिए व्यावहारिक परिस्थितियां बनाते हैं।

'अपने लिए चुनें'

वर्तमान में अनंतमूल में तीन गाँवों के आदिवासी बच्चे आते हैं। स्कूल स्थानीय समुदाय के बीच अच्छी तरह से बस गया है, और कई छात्र यहां पढ़ने के लिए जंगलों रास्ते से आते हैं।

अनंतमूल की खास 'ट्री क्लासेस' की है खूब चर्चा!

अंग्रेजी पढ़ने के लिए हर दिन छात्र अपने शिक्षकों के साथ स्कूल परिसर में पेड़ों पर चढ़ जाते हैं।

सबसे पहले, जब बच्चों को पेड़ पर चढ़ना होता है, तो वे पैंट और स्कर्ट के लिंग-परिभाषित ड्रेस कोड पर सवाल उठाते हैं। अगर उन्हें पता चलता है कि पैंट में चढ़ना आसान हो सकता है।

दूसरा, अंग्रेजी उनके लिए एक कठिन विषय है। जब वे इसे पढ़ते हुए पेड़ पर बैठते हैं, तो उनका मन खुद को संतुलित करने में इतना व्यस्त रहते हैं कि वे अंग्रेजी से प्रेरित घबराहट को छोड़ देते हैं।


शिवानी ने बताया, "ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने आप ट्राउजर पर स्विच किया, हमने उनसे सवाल किया कि क्या ट्राउजर में पेड़ पर चढ़ना अधिक आरामदायक है और फिर सभी ने पैंट पहनना शुरू कर दिया।"

बच्चों की प्रतिक्रिया में प्रयास दिखाई दे रहे हैं।

परमेश्वर, जो दो महीने से अनंतमूल में आ रहे हैं और बहुत खुश हैं। यहां वह या तो अपने शिक्षकों को उनके नाम से या 'टीचर' से ही संबोधित करते हैं - यहां 'सर' या 'मैडम' जैसे शब्द नहीं इस्तेमाल किए जाते हैं।

स्कूल यूनिफॉर्म के बारे में 11 साल के परमेश्वर को लगता है कि कोई क्या पहनना चाहता है, इसमें कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। "मेरे स्कूल की लड़कियां पैंट पहनती हैं, "परमेश्वर ने कहा।

रीना भी एक साल से अनंतमूल में पढ़ रही हैं और उनका पसंदीदा खेल फुटबॉल है। उनके साथी, प्रदीपा, अनीता, देबाशीष और परमेश्वर, 11 वर्षीय गोलकीपिंग कौशल को पकड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

“मैं आठ बजे यहां आने के लिए अपने दोस्तों के साथ हर सुबह स्कूल जाता हूं। मुझे अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलना बहुत पसंद है और सबसे अच्छी खिलाड़ी रीना है। जब वह गोलकीपर है तो मैं कभी गोल नहीं कर सकता, "परमेश्वर ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बदलाव की शुरूआत

निवास के दिमाग में यह विचार आना शुरू हुआ, जब उन्होंने अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु से शिक्षा में मास्टर्स किया।

“मैंने वहां ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ बातचीत की और महसूस किया कि लैंगिक असमानताएं कितनी मुश्किल भरी हो सकती हैं, ”26 वर्षीय शिक्षक ने कहा।

निवास का प्रारंभिक विचार ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना था। लेकिन जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि मूल समस्या बहुत पहले के चरण में है, सीखने के मूलभूत चरण में। आखिरकार, वह बिहार में शिवानी से मिले, जो एक वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली बनाने के इच्छुक थे और इस तरह अनंतमूल का जन्म हुआ। अनंतमूल का नाम एक छोटी सुगंधित जड़ी-बूटी से लिया गया है जो एशिया में उगती है और इसकी जड़ें गहरी होती हैं, जिससे इसे उखाड़ना लगभग असंभव हो जाता है।

“समय के साथ, मैंने यह भी महसूस किया कि लैंगिक असमानताएं सभी के लिए समस्याएं पैदा करती हैं। बड़े होकर मैंने लड़कों के ही स्कूल में पढ़ाई की थी। जब मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त की, तो मुझे अपने से अलग सेक्स के कई लोगों के साथ बातचीत करनी पड़ी और यह बहुत कठिन था। यह क्या अच्छा करता है, ”उन्होंने सवाल किया।


शिवानी गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "नोंतारा गाँव में कोई आंगनवाड़ी केंद्र या प्राथमिक विद्यालय नहीं है और इसलिए अनंतमूल बच्चों के लिए उस कमी को पूरा करता है।"

लिंग-मुक्त सीखने की जगह को साबित करने की शुरुआती बाधा अनंतमूल द्वारा हासिल की गई है।

एक ग्रामीण समुदाय के बीच, जहां कई लैंगिक बाधाएं हैं, अनंतमूल जेंडर फ्री शिक्षा मॉडल को सामान्य बनाने के लिए छोटे कदम उठा रहा है। सामुदायिक विश्वास प्राप्त किए बिना यह असंभव होता।

निवास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जब हमने समुदाय से संपर्क किया, तो हम समझ गए कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी में बोलते हुए सुनना चाहते हैं।"

स्कूल के शिक्षक हर बच्चे को बोली जाने वाली अंग्रेजी सीखने के लिए प्रयास करते हैं और विशेष अवसरों पर भाषणों का आयोजन करते हैं जहां माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलते हुए देखते हैं।

"यह उनके लिए गर्व का क्षण था। जो बच्चे ठीक से हिंदी नहीं बोल सकते थे, वे अंग्रेजी में भाषण दे रहे थे, निवास ने उत्साह से कहा।

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