प्रदेश में कुपोषण से लड़ने वाली योजनाएं हुई कुपोषित

Basant KumarBasant Kumar   29 Jun 2017 7:46 PM GMT

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प्रदेश में कुपोषण से लड़ने वाली योजनाएं हुई कुपोषितरायबरेली में 36 हज़ार बच्चे अतिकुपोषित फोटो- बसंत कुमार 

लखनऊ। सुबह के सात बजे रायबरेली के अधौरा गाँव में अपनी दो बेटियों को चूल्हे के बगल में रखकर चूल्हे पर खाना बनाती जमिली (32 वर्ष) की एक बेटी कुपोषण से मर चुकी है और दो बेटियां अभी भी कुपोषित है। साड़ी को संभालते हुए जमिली कहती हैं, "पति से नहीं बनती है। मेहनत मजदूरी करके बच्चों का पालन पोषण करती हूं। गरीबी के कारण एक बेटी मर गयी। ये दोनों बेटियां भी बीमार ही रहती हैं।"

भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की ओर कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) सर्वेक्षण के 2011 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 0 से 5 साल के आयु वर्ग के 46.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है। इस मामले में उत्तर प्रदेश से आगे बिहार है। बिहार में 48.3 प्रतिशत बच्चे कम वजन के है। यूपी में 39.5 प्रतिशत बच्चे उम्र के हिसाब से कम वजन के हैं।

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कांग्रेस के गढ़ रायबरेली जिले में दिसम्बर 2016 तक 36 हज़ार से ज्यादा बच्चे अतिकुपोषित थें। इनकी संख्या में कमी आने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे लगभग सभी योजनाएं बजट के मामले में कुपोषित हैं। अधिकारी खुलकर तो नहीं कहते लेकिन दबी जुबान बजट नहीं आने की बात कहते हैं।

रायबरेली में कुपोषित लड़की

रायबरेली के अधौरा गाँव की ही रहने वाली 35 वर्षीय माधुरी की बेटी आंचल एक साल की है। जन्म से आंचल कुपोषित है। माधुरी कहती हैं, "गरीब परिवार से होने के कारण जब बच्चा पेट में रहता है तो ठीक से खाने को नहीं मिलता है। बच्चा पैदा होने तक हम लोगों खेतों में काम करते है। बच्चा होने के बाद चार से पांच दिन आराम कर पाते है। फिर बच्चे को लेकर काम पर जाना पड़ता है। सरकार की तरफ से कुपोषण दूर करने को लेकर चलाई जा रही योजनाओं के सम्बन्ध में माधुरी को कोई जानकारी नहीं है।"

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2015-16 में आए एनएफएचएस के सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश ग्रामीण और शहरी इलाकों को मिलाकर 6 से 23 महीने के 5.3 फीसदी बच्चों को ही संतुलित आहार मिलता है। प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे ऐसे है जिनकी लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से कम है। वहीं पांच साल तक 17.9 फीसदी बच्चे ऐसे है जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है।

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सुबह के नव बजे रायबरेली जिले के ही हरचंदपुर आगनबाडी कार्यकर्ता माधवी शुक्ला प्राथमिक स्कूल के सामने बने आंगनबाड़ी केंद्र में सहायिका के साथ बैठी हुई है। वहां इन दोनों महिलाओं के अलावा कोई नहीं है। माधवी शुक्ला बताती हैं, "हमारे क्षेत्र में छह बच्चे कुपोषित हैं। हम लोग अपने स्तर पर कुपोषण दूर करने की तमाम कोशिश करते रहे है लेकिन बच्चों के माँ बाप को भी जागरूक होना पड़ेगा। माँ-बाप ही जागरूक नहीं हैं।"

रायबरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी मनोज कुमार बताते हैं, ‘‘यहां कुपोषण की बसे बड़ी वजह अशिक्षा है। महिलाएं गर्भवती होने के बाद अपना ख्याल नहीं रखती है। साफ़-सफाई का ध्यान नहीं रखती है। जहां तक बात है योजनायों को लेकर तो थोड़ी बहुत दिक्कत आ रही है।’’

कुपोषित बच्ची के साथ महिला

एटा जिले में पिछले साल दिसंबर में वजन दिवस का आयोजन किया गया। जिसमें जिले के 203 520 बच्चों का वजन किया गया। इनमें 141256 बच्चे सामान्य, 33046 बच्चे आंशिक कुपोषित और 21209 बच्चों को अतिकुपोषित घोषित किया गया है। जिले में सबसे ज्यादा 3390 अतिकुपोषित बच्चे शीतलपुर ब्लॉक में है।

अखिलेश सरकार द्वारा कुपोषण को मिटाने पर खूब जोर दिया गया लेकिन नतीजे में कोई बदलाव नहीं आया। सरकार द्वारा शुरू की गई हौसला पोषण योजना, हॉट कुक्ड आदि योजनायें बजट की कमी के कारण बदहाल है।

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15 जुलाई 2016 तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस योजना की शुरुआत किया था। योजना के तहत प्रदेश के गर्भवती महिलाओं और छह महीने से लेकर छह वर्ष तक के अतिकुपोषित बच्चों को स्वस्थ भोजन देकर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर के साथ-साथ कुपोषण को दूर करना था, लेकिन शुरुआत से ही यह योजना ठीक से लागू नहीं हो पाई और प्रदेश में कुपोषण में ख़ास कमी नहीं आई।

इस योजना के तहत छह महीने से तीन साल और तीन साल से छह साल तक के बच्चों को अलग-अलग वर्ग में रखा गया था। तीन साल तक के बच्चों को भोजन के साथ-साथ 20 ग्राम घी और फल देने था। वहीं तीन से छह साल तक के बच्चों को फल, घी, ग्लूकोज और बिस्कुट, चना चीजें दी जानी थी। दूध के लिए मिल्क पाउडर की सप्लाई हो रही था। घी-दूध देने की ज़िम्मेदारी शासन ने पीसीडीएफ को सौंपा था। लेकिन पिछले दो महीने से लोगों को कुछ भी नहीं मिल पा रहा है।

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अखिलेश यादव ने इस योजना की शुरुआत श्रावस्ती जिले के मोतीपुर कला गाँव से किया था। यह गाँव थारू समुदाय बाहुल्य है। गाँव के प्रधान रामजी बताते हैं, “ मार्च 2017 के बाद से इस योजना के तहत कुछ भी गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए कुछ भी नहीं आया है। इस गाँव में 29 महिलाएं गर्भवती हैं और 16 बच्चे अतिकुपोषित हैं। इस योजना के तहत ग्राम प्रधान और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का जॉइंट खाता खोला गया था और पैसे आने के बाद प्रधान खाते से निकालकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को देते हैं।”

योजना के शुरू होने के पांच महीने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी हुए रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 44 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण का यह आंकड़ा पिछले वर्ष से 20 प्रतिशत ज्यादा हैं। नए स्वास्थ्य आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में उत्तर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर में सुधार हुआ है और ये दस साल पहले के प्रति 1000 पर 73 मौतों से घटकर 2016 में 64 है।

अपने कुपोषित बच्चों के साथ जमिली

बलिया की रहने वाली और रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित युवा प्रधान स्मृति सिंह बताती हैं, “सरकार सरकार पहले गर्भवती महिलाओं को दूध-घी और फल देती थी लेकिन पिछले दो महीनों से दूध और घी नहीं मिल रहा है। फल के लिए सरकार रोजाना तीन रुपए के हिसाब से पैसे देती थी। तीन रुपए में एक केला भी नहीं मिलता था। लेकिन अब वो भी नहीं मिल पा रहा है। मेरे निर्वाचन क्षेत्र में ही 24 बच्चे कुपोषित है। गर्भवती महिलाएं भी हैं। पैसे नहीं आने के कारण इन्हें हम आहार नहीं दे पा रहे हैं।”

सरकार प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए ठोस कदम जल्द ही उठाने वाली है। हम कुपोषण दूर करने के लिए ग्रामीण स्तर तक जाने की कोशिश कर रहे है। कुछ अधिकारियों ने गाँवों को भी गोद लिया है। हौसला पोषण योजना बंद करने के सम्बन्ध में जायसवाल ने कहा कि बहुत जल्द ही इसकी जानकरी मीडिया को दी जाएगी।
अनुपमा जायसवाल, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), बाल विकास एवं पुष्टाहार

राज्य पोषण मिशन योजना के फाइनेंस निदेशक सुधांशु त्रिपाठी बताते हैं, ‘‘राज्य पोषण मिशन का काम अलग-अलग विभागों द्वरा चल रहे कार्यक्रमों की निगरानी करना है। कुपोषण को दूर करने के लिए अलग-अलग विभाग काम कर रहे है। हौसला पोषण योजना का पैसा अभी भी जारी नहीं हो पाया है। शायद हौसला पोषण योजना में कुछ बदलाव किया जा रहा है।’’

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प्रदेश की बाल विकास एवं पुष्टाहार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनुपमा जायसवाल ने गाँव कनेक्शन से बात करते हुए बताया कि सरकार प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए ठोस कदम जल्द ही उठाने वाली है। हम कुपोषण दूर करने के लिए ग्रामीण स्तर तक जाने की कोशिश कर रहे है। कुछ अधिकारियों ने गाँवों को भी गोद लिया है। हौसला पोषण योजना बंद करने के सम्बन्ध में जायसवाल ने कहा कि बहुत जल्द ही इसकी जानकरी मीडिया को दी जाएगी।

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