आखिर क्यों सरकारी अस्पताल नहीं जाना चाहते हैं लोग ?
Deepanshu Mishra | Feb 11, 2018, 11:50 IST
बहराइच से लखनऊ के एक प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करवाने आये नरेश (45 वर्ष) बताते हैं, “मेरी एक बार तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। इलाज करवाने के लिए एक सरकारी अस्पताल में गया। हमारा बेटा उस अस्पताल में कई घंटे के लिए लाइन में लगा रहा और मैं इंतजार करता रहा। अच्छा इलाज न मिल पाने के कारण अब मैं सरकारी अस्पताल में जाने से डरता हूं और कभी भी सरकारी अस्पताल नहीं जाऊंगा।”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 55 फीसदी परिवार सार्वजनिक रूप से स्वास्थ्य देखभाल की तलाश नहीं करते हैं। सबसे अधिक सामान्य कारणों की वजह से, इन कारणों में पास के सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और लंबा इंतजार प्रमुख है। ऐसे में लोगों का प्राइवेट अस्पताल को प्राथमिकता देना लाजिमी है।
स्वास्थ्य नीति के तहत फरवरी 2014 में प्रति 30 हजार की जनसंख्या एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से दूसरे प्राथमिक केंद्र की दूरी पांच किमी तय की गई। इसके अलावा प्रति एक लाख की जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की गई, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब है।
2009 में सरकारी का बजट 16,543 करोड़ और प्राइवेट हेल्थ केयर का बजट रहा 1,43,000 करोड़ रुपए था। फिर 2015 में सरकारी बजट हुआ 33,150 करोड़ और प्राइवेट हेल्थ केयर का बजट 5,26,500 करोड़ हो गया। 2017 में सरकार का बजट है 48,878 करोड़ तो प्राइवेट हेल्थ केयर बढ़कर हो गया 6,50,000 करोड़ रुपए हो गया।
लखनऊ के एक निजी अस्पताल में फैजाबाद से अपने पति का इलाज करवाने आई सुनीता (40 वर्ष) ने बताया, “सरकारी अस्पतालों के हालात सही नहीं है, जिन लोगों की अच्छी पहुँच होती है वो जल्दी से अपना इलाज करवा लेते हैं। वो लोग जो दूर से आये हैं और जानकारी कम है तो कहो दिन भर लाइन में ही खड़े रहें और समय खत्म हो जाता है।” ये केवल इन दो लोगों के बात नहीं है बल्कि देश के कई लोग ऐसे हैं जो निजी स्वास्थ्य व्यवस्था पर विश्वास करते हैं और यही कारण है कि देश में लगातार निजी अस्पताल तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
सरकार देश के नागरिकों पर हेल्थ सेक्टर के लिए खर्च प्रति महीने प्रति व्यक्ति पर 92 रुपए 33 पैसे खर्च करती है। राज्यों में सबसे बेहतर स्थिति हिमाचल की है, जहां प्रति नागरिक प्रति महीने 166 रुपए 66 पैसे प्रति व्यक्ति प्रति महीने खर्च करता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 55 फीसदी परिवार सार्वजनिक रूप से स्वास्थ्य देखभाल की तलाश नहीं करते हैं। सबसे अधिक सामान्य कारणों की वजह से, इन कारणों में पास के सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और लंबा इंतजार प्रमुख है। ऐसे में लोगों का प्राइवेट अस्पताल को प्राथमिकता देना लाजिमी है।
स्वास्थ्य नीति के तहत फरवरी 2014 में प्रति 30 हजार की जनसंख्या एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से दूसरे प्राथमिक केंद्र की दूरी पांच किमी तय की गई। इसके अलावा प्रति एक लाख की जनसंख्या पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की गई, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब है।
2009 में सरकारी का बजट 16,543 करोड़ और प्राइवेट हेल्थ केयर का बजट रहा 1,43,000 करोड़ रुपए था। फिर 2015 में सरकारी बजट हुआ 33,150 करोड़ और प्राइवेट हेल्थ केयर का बजट 5,26,500 करोड़ हो गया। 2017 में सरकार का बजट है 48,878 करोड़ तो प्राइवेट हेल्थ केयर बढ़कर हो गया 6,50,000 करोड़ रुपए हो गया।
लखनऊ के एक निजी अस्पताल में फैजाबाद से अपने पति का इलाज करवाने आई सुनीता (40 वर्ष) ने बताया, “सरकारी अस्पतालों के हालात सही नहीं है, जिन लोगों की अच्छी पहुँच होती है वो जल्दी से अपना इलाज करवा लेते हैं। वो लोग जो दूर से आये हैं और जानकारी कम है तो कहो दिन भर लाइन में ही खड़े रहें और समय खत्म हो जाता है।” ये केवल इन दो लोगों के बात नहीं है बल्कि देश के कई लोग ऐसे हैं जो निजी स्वास्थ्य व्यवस्था पर विश्वास करते हैं और यही कारण है कि देश में लगातार निजी अस्पताल तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।