बाढ़ पीड़िता का दर्द, " पानी घटे तो चलकर देखें, सरयू मइया ने कुछ छोड़ा या सब लेकर चली गईं"

कम नहीं हो रही बाढ़ पीड़ितों की मुश्किलें, खाने को भोजन और पीने लिए शुद्ध पानी भी नहीं, घरों में पानी घुसने और सड़क बह जाने के से लोग बंधों पर टेंट के नीचे जिंदगी गुजार रहे

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   3 Sep 2018 8:05 AM GMT

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गोंडा। " भइया, अब पानी घटे तो चलकर देखें, सरयू मइया ने कुछ छोड़ा है या सब कुछ लेकर चली गईं।" केवटाही घाट के बंधे पर 15 दिन से टेंट के नीचे अपने तीन बच्चों के साथ जीवन बिताने को मजबूर बाढ़ पीड़िता विमला देवी (45वर्ष) ने बाढ़ के पानी की तरफ देखते हुए यह कहा। बाढ़ का सितम पानी कम होने कम नहीं बल्कि और बढ़ता जाएगा, क्योंकि बाढ़ ने उनका सब कुछ छीन लिया है। विमला की तरह हजारों लोगों के सामने बाढ़ से बिखरी जिंदगी को फिर से संजनों के लिए हर कदम जद्दोजेहद करना होगा।

लगातार हो रही बारिश से घाघरा और सरयू नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। हर तरफ बस पानी ही पानी दिखाई दे रहा है। लोगों के मकान, दुकान सब पानी की भेंट चढ़ गए हैं। ग्रामीण सड़कों और बंधों पर टेंट में जीवन बिताने को मजबूर हैं। बाढ़ की वजह से हजारों एकड़ गन्ने और धान की फसल बर्बाद हो चुकी हैं। बच्चे नांव के सहारे स्कूल जा रहे हैं। गाँव कनेक्शन के संवाददाता चन्द्रकान्त मिश्रा ने बाढ़ प्रभावित कई गाँवों का दौरा किया। इस दौरान बाढ़ प्रभावित लोग कदम-कदम पर संघर्ष करते नजर आए।

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गोंडा के दो तहसीलों तरबगंज और कर्नलगंज में पिछले एक माह से करीब 71000 लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। जनपद के करीब 60 गाँव बाढ़ की चपेट में हैं। कई गाँव टापू बने हुए हैं। बाढ़ की वजह से ज्यादातर ग्रामीण अपना घर छोड़कर रिश्तेदारी में पलायन कर चुके हैं। वहीं कुछ लोग ऊंचे स्थान और बंधों पर रहने को मजबूर हैं। हजारों एकड़ धान और गन्ने की फसल तबाह हो गई है। बाढ़ पीड़ितों के पास न तो भोजन की व्यवस्था है और न ही पीने का पानी है।


गाँव से बाहर निकलने के लिए नाव का सहारा

जनपद के कई गाँव पूरी तरह से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। गाँव के चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी है। पानी ने लोगों को घरों में कैद कर दिया है। कई गाँव टापू बने हुए हैं। ऐसे में गाँव से बाहर निकलने के लिए लोगों के पास सिर्फ नाव का सहारा है। तरबगंज के तहसील के गाँव फेहरा निवासी जितेंद्र सिंह ने बताया, " पिछले एक माह से हमारा गाँव पूरी तरह पानी से घिर चुका है। कई लोग अपना घर छोड़कर अपनी रिश्तेदारी में चले गए हैं। वहीं कुछ लोग बंधे पर टेंट डालकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं।"

प्रभावित ग्राम पंचायतें- 32
प्रभावित मजरे- 58
प्रभावित आबादी- 8969
प्रभावित पशु- 5732
प्रभावित फसल- 2550 हेक्टेयर

टेंट के नीचे रहने को मजबूर


विकराल बाढ़ का पानी कई लोगों के घरों में घुस गया है। ऐसे में लोग अपना घर छोड़ बंधे पर टेंट के नीचे जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। बाढ़ पीड़ित दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। रुखा-सूखा खाकर किसी तरह अपनी जिंदगी काट रहे हैं। खाना बनाने के लिए न ही अनाज है और नहीं लकड़ी बची है। सब कूछ डूब चुका है।

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केवटाही घाट पर टेंट के नीचे अपने परिवार के साथ रहने वाली मूला देवी (60वर्ष) ने बताया, " बाढ़ ने हमारा सब कुछ छीन लिया। खेत-घर सब कुछ पानी में डूब गया। सिर छिपाने के लिए बस टेंट का सहारा बचा है। दिन तो किसी तरह बीत जाता है लेकिन रात होते ही डर लगने लगता है। हल्की बारिश भी हमारी मुश्किलों को और बढ़ा देती है। तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं। दो दिन पहले कुछ लोग आए थे, खाने के लिए थोड़ज्ञ सामान दे गए थे। उसी से गुजर बसर चल रहा है। अब पानी कम हो तो देखें कुछ बचा भी है या सरयू मइया ने सब तबाह कर दिया।"

जान जोखिम में डाल स्कूल जा रहे बच्चे


बाढ़ की वजह से सकड़ें डूब चुकी हैं। ऐसे में जो लोग गाँव में बचे हैं वे लोग गाँव से बाहर आने के लिए नाव का सहारा ले रहे हैँ। प्रशासन की तरफ से नाव की व्यस्था की गई है, लेकिन बाढ़ पीड़ितों के हिसाब से नांवों की संख्या काफ़ी नहीं है।

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बाबानगर चौराहे पर स्थित लाल बिहारी इंटर कॉलेज में पास के करीब एक दर्जन गाँव के बच्चे पढ़ने आते हैं। बाढ़ पीड़ितों की संख्या की तुलना में प्रशासन से मुहैया नाव कम हैं। ऐसे में एक नाव पर एक साथ दर्जनों लोग सवार हो रहे हैं जो कभी भी किसी बड़े हादसे के लिए चेतावनी है। जल्दी घर पहुंचाने के चक्कर में लोग एक नाव पर क्षमता से ज्यादा बच्चों को बैठा रहे हैं। 11वीं में पढ़ने वाली सविता श्रीवास्तव ने बताया, " पिछले एक माह से स्कूल जाने वाली सड़क पानी में डूब चुकी है।ऐसे में हम लोग नाव से ही स्कूल जाते हैं।"

पशुओं के चारे के लिए भटक रहे पशुपालक


बाढ़ की वजह से पशुओं के लिए भारी संकट खड़ा हो गया है। पशुओं के लिए चारे का कोई इंतेजाम नहीं है। बाढ़ के पानी से घरों में रखा भूसा डूबकर सड़ गया है। ऐसे में पशुपालक दो किलोमीटर दूर से चारा लाने को मजबूर हैं। वहीं गन्ने और धान की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है।

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फेहरा निवासी अमरपाल ने बताया, " बाढ़ का पानी हमारे घरों में घुस गया है। जानवरों के लिए रखा चारा भी उसी की चपेट में आ गया है। हम लोगों का तो किसी तरह से गुजर बसर चल जा रहा है, लेकिन पशुओं के लिए चारा नहीं बचा है। दो-दो किलोमीटर दूर से हम लोग हरा चारा लाने को मजबूर हैं। किसी तरह से पशुओं को खिलाया पिलाया जा रहा है। धान की फसल पानी में डूब चुकी है और सड़ने लगी है। गन्ना भी नहीं बचा है। पानी कम होने के बाद जो गन्ने की फसल बची भी है वह भी सड़ जाएगी। पता नहीं क्या होगा, क्या खाएंगे।"

शौच के लिए भी परेशानी


बाढ़ का पानी लोगों के घरों के साथ-साथ शौचालय में घुस गया है। ऐसे में ग्रामीणों के सामने शौच की समस्या खड़ी हो गई है। पुरुष नाव से सवार होकर बंधों पर जाकर निवृत हो रहे है, लेकिन शौच की समस्या से सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित हैं। खेत भी पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने प्लास्टिक के तीरपाल से अस्थाई शौचालय बना रखे हैं। फेहरा गाँव की पूनम ने बताया, " बाढ़ से हमारा घर गिर गया है।खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा है। बाजार से खरीद कर खा रहे हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत शौच के लिए है। न तो शौचालय बचा है और न खेत। हर जगह सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा है।"

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