रंग लाई अध्यापकों की मेहनत, तिगुनी हुई छात्रों की संख्या

गांव के ज्यादातर लोग अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने के लिए भेजते थे, एक-एक बच्चे पर दिया जाता है ध्यान, हर सत्र में बच्चों की संख्या बढ़ती गई, 47 से 154 हुई छात्रों की संख्या

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   15 Dec 2018 10:22 AM GMT

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रंग लाई अध्यापकों की मेहनत, तिगुनी हुई छात्रों की संख्या

बाराबंकी। " आप लोग अपने बच्चों का नाम बस एक साल के लिए हमारे स्कूल में करा दीजिए, अगर आप का बच्चा किसी निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे से तेज न हो जाए तो आप अपने बच्चे का नाम प्राथमिक विद्यालय से कटा लीजिएगा। " ये कहना है विकास खंड सिद्धौर के प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर प्रथम के प्रधानाध्यापक आशीष कुमार का। प्रधानाध्यापक के प्रयास से स्कूल में 154 बच्चे पंजीकृत हैं।

आशीष ने बताया, " वर्ष 2015 में जब मेरी नियुक्ति इस विद्यालय में हुई तो उस समय करीब 47 बच्चे पंजीकृत थे। जो पंजीकृत थे वे भी स्कल नहीं आते थे। गांव के ज्यादातर लोग अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ने के लिए भेजते थे। मैंने सोचा कि जब विद्यालय में बच्चे ही नहीं रहेंगे तो हम किसे पढ़ाएंगे। मैंने अपने सहायक अध्यापकों और एसएमसी सदस्यों के साथ बैठक की।"

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उन्होंने आगे बताया, " हमने यह पता किया की लोग अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में क्यों नहीं पढ़ने भेजते हैं। हमें पता चला कि लोगों का कहना था कि यहां पढ़ाई अच्छी नहीं होती है। इसके बाद मैं अपने सहायक अध्यापक और एसएमसी सदस्यों के साथ घर- घर गया। अभिभावकों को प्रेरित किया। लोगों से वादा किया कि एक बार हमारे स्कूल में बच्चे को भेजिए, अगर आपका बच्चा निजी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे से ज्यादा जानकार नहीं हो जाएगा तो नाम कटवा लीजिएगा।"

उन्होंने आगे बताया, " शुरुआत में कुछ अभिभावक हमारी बात को माने और अपने बच्चों का नाम हमारे विद्यालय में लिखवाया। हम सभी अध्यापकों ने एक-एक बच्चे पर ध्यान दिया। इस तरह हमारे स्कूल में हर सत्र में बच्चों की संख्या बढ़ती गई। आज हमारे विद्यालय में 154 बच्चे पंजीकृत हैं। इसमें से 72 छात्र और 82 छात्राएं हैं। हर सत्र में हमारे स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। "

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खेल-खेल में होती है पढ़ाई

पढ़ाई में बच्चों का मन लगा रहे इसके लिए विद्यालय में खेल-कूद और गतिविधियों के माध्यम से पढ़ाई होती है। बच्चों को समूह में बैठाकर कविता याद कराई जाती है। स्कूल की दीवारों पर पहाड़े, कविताएं, वैज्ञानिकों के नाम और दिन और महीने के नाम लिखे हैं।

कक्षा पांचवी में पढ़ने वाले विवेक ने बताया, " मेरा स्कूल बहुत अच्छा है। यहां पढ़ाई बहुत अच्छी होती है। मैं बड़ा होकर अध्यापक बनना चाहता हूं। इसके लिए मैं खूब मेहनत से पढ़ाई करता हूं। घर पर भी जाकर रोज दो घंटे पढ़ता हूं। मुझे पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट भी खेलना अच्छा लगता है।"

वहीं पांचवी की छात्रा प्रज्ञा वर्मा ने बताया, " पहले में दूसरे स्कूल में पढ़ती थी, लेकिन वहां पढ़ाई अच्छी नहीं होती थी। मेरे पापा ने वहां से नाम कटवाकर इस स्कूल में करवा दिया। यहां मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं डाक्टर बनना चाहती हूं। "

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एसएमसी सदस्य खुद करते हैं विद्यालय की देखभाल

पूरा विद्यालय परिसर काफी साफ-सुथरा रहता है। पूरे परिसर की देखभाल की जिम्मेदारी एसएमसी सदस्यों ने ले रखी है। एसमएसमी अध्यक्ष कौशल किशोर ने बताया, " इस स्कूल में हमारे बच्चे पढ़ते हैं। अगर यहां गंदगी रही तो हमारे बच्चे बीमार पड़ सकते हैं, इसलिए हम लोग खुद स्कूल की सफाई करते हैं। जो लोग अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजते हैं मैं खुद जाकर उन्हें स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करता हूं। "

अभिभावक अवध बिहारी ने बताया, " हमारे गांव के सरकारी स्कूल में बहुत अच्छी पढ़ाई होती है। यहां के सभी अध्यापक बहुत मेहनती हैं। एक-एक बच्चे पर पूरा ध्यान देते हैं। पहले हम लोग अपने बच्चों को दूसरे स्कूल में भेजते थे, लेकिन जबसे ये तीन नए अध्यापक आए हैं पढ़ाई बहुत अच्छी होने लगी है। अब गांव के सभी बच्चे यहीं पढ़ने जाते हैं।"

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