LPG छोड़िए, अब रसोई में बिजली का जलवा - सस्ती भी, टिकाऊ भी
Gaurav Rai | Oct 29, 2025, 15:11 IST
IEEFA की रिपोर्ट बताती है कि भारत में ई-कुकिंग, एलपीजी से 37% और पीएनजी से 14% सस्ती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव भारत के क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है।
भारत की रसोई एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, बिजली से खाना पकाना यानी ई-कुकिंग अब एलपीजी और पीएनजी दोनों से न सिर्फ़ सस्ता है, बल्कि ज़्यादा साफ़, सुरक्षित और सुविधाजनक भी।
ऊर्जा अर्थशास्त्र और वित्तीय विश्लेषण संस्थान (IEEFA) की नई रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है “Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG – Policy Action Can Scale Adoption”, बताती है कि भारत में ई-कुकिंग का खर्च एलपीजी से 37% और पीएनजी से 14% कम है। यह अध्ययन IEEFA की ऊर्जा विशेषज्ञ पर्वा जैन ने तैयार किया है, जो बताती हैं कि ई-कुकिंग भारत के ऊर्जा ट्रांज़िशन की अगली बड़ी क्रांति हो सकती है।
पिछले छह वर्षों में भारत का LPG और LNG आयात बिल करीब 50% बढ़ गया है, जिससे आम घरों की रसोई पर सीधा असर पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, चार लोगों के एक सामान्य परिवार के लिए पीएनजी से खाना पकाने का सालाना खर्च करीब ₹6,657 और बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिंडर का खर्च ₹6,424 आता है। इसके मुकाबले, बिजली से खाना पकाने का कुल खर्च काफी कम पड़ता है। IEEFA की विशेषज्ञ पर्वा जैन कहती हैं, “अगर LPG पर दी जाने वाली सब्सिडी को हटा दिया जाए, तो ई-कुकिंग सबसे सस्ता विकल्प बन जाएगा। यह शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा दे सकता है।”
रिपोर्ट का एक अहम पहलू यह भी है कि भारत में भले ही LPG कनेक्शन अब लगभग हर घर तक पहुँच चुका हो, लेकिन उसके इस्तेमाल की आवृत्ति घट गई है। बढ़ती कीमतें, आयात पर निर्भरता और गरीब परिवारों की सीमित क्रय शक्ति ने इसका उपयोग कम कर दिया है। नतीजा यह कि आज भी लगभग 40% भारतीय परिवार ठोस ईंधनों — लकड़ी, कोयला और गोबर — पर निर्भर हैं। यह न सिर्फ़ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि महिलाओं के श्रम और पर्यावरण दोनों पर बोझ डालता है।
पर्वा जैन कहती हैं, “यह केवल कुकिंग का बदलाव नहीं, बल्कि एक ऊर्जा क्रांति है। ई-कुकिंग से न सिर्फ़ महिलाओं का स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि यह भारत के जलवायु लक्ष्यों और ऊर्जा स्वतंत्रता दोनों में योगदान देगा।”
इसके उलट, ई-कुकिंग से न केवल घरेलू वायु प्रदूषण कम होता है, बल्कि ऊर्जा दक्षता भी बढ़ती है। बिजली पर आधारित यह तरीका भारत की “नेट ज़ीरो 2070” नीति के अनुरूप है और ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने में मददगार हो सकता है। IEEFA का मानना है कि यदि सरकार नीति स्तर पर कदम उठाए तो यह “क्लीन कुकिंग” मॉडल तेजी से फैल सकता है और लाखों घरों की ऊर्जा संरचना बदल सकता है।
पहला, ई-कुकिंग उपकरणों की शुरुआती लागत अब भी ऊँची है; इंडक्शन, इलेक्ट्रिक कुकर या हॉट प्लेट कई परिवारों की पहुँच से बाहर हैं।
दूसरा, बाज़ार में विकल्प सीमित हैं; पर्याप्त ब्रांड्स और मॉडल उपलब्ध नहीं हैं।
तीसरा, कुछ उपभोक्ताओं में अब भी बिजली कटौती को लेकर अविश्वास है।
और चौथा, लोगों में जागरूकता की कमी है कि बिजली से खाना पकाना वास्तव में कितना सस्ता और स्वच्छ विकल्प है।
ई-कुकिंग उपकरणों पर टैक्स में छूट और सब्सिडी दी जाए ताकि शुरुआती लागत घटे;
शहरी इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएँ जहाँ बिजली आपूर्ति स्थिर है;
देशव्यापी जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए ताकि उपभोक्ताओं को इसके आर्थिक व स्वास्थ्य लाभों की जानकारी मिले;
घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि उपकरण सस्ते और सुलभ हों;
और राज्यों के बीच नीति तालमेल स्थापित हो ताकि बिजली वितरण कंपनियाँ, शहरी विकास विभाग और महिला कल्याण मंत्रालय मिलकर एकीकृत योजना बना सकें।
ऊर्जा अर्थशास्त्र और वित्तीय विश्लेषण संस्थान (IEEFA) की नई रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है “Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG – Policy Action Can Scale Adoption”, बताती है कि भारत में ई-कुकिंग का खर्च एलपीजी से 37% और पीएनजी से 14% कम है। यह अध्ययन IEEFA की ऊर्जा विशेषज्ञ पर्वा जैन ने तैयार किया है, जो बताती हैं कि ई-कुकिंग भारत के ऊर्जा ट्रांज़िशन की अगली बड़ी क्रांति हो सकती है।
पिछले छह वर्षों में भारत का LPG और LNG आयात बिल करीब 50% बढ़ गया है, जिससे आम घरों की रसोई पर सीधा असर पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक, चार लोगों के एक सामान्य परिवार के लिए पीएनजी से खाना पकाने का सालाना खर्च करीब ₹6,657 और बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिंडर का खर्च ₹6,424 आता है। इसके मुकाबले, बिजली से खाना पकाने का कुल खर्च काफी कम पड़ता है। IEEFA की विशेषज्ञ पर्वा जैन कहती हैं, “अगर LPG पर दी जाने वाली सब्सिडी को हटा दिया जाए, तो ई-कुकिंग सबसे सस्ता विकल्प बन जाएगा। यह शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा दे सकता है।”
रिपोर्ट का एक अहम पहलू यह भी है कि भारत में भले ही LPG कनेक्शन अब लगभग हर घर तक पहुँच चुका हो, लेकिन उसके इस्तेमाल की आवृत्ति घट गई है। बढ़ती कीमतें, आयात पर निर्भरता और गरीब परिवारों की सीमित क्रय शक्ति ने इसका उपयोग कम कर दिया है। नतीजा यह कि आज भी लगभग 40% भारतीय परिवार ठोस ईंधनों — लकड़ी, कोयला और गोबर — पर निर्भर हैं। यह न सिर्फ़ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है बल्कि महिलाओं के श्रम और पर्यावरण दोनों पर बोझ डालता है।
पर्वा जैन कहती हैं, “यह केवल कुकिंग का बदलाव नहीं, बल्कि एक ऊर्जा क्रांति है। ई-कुकिंग से न सिर्फ़ महिलाओं का स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि यह भारत के जलवायु लक्ष्यों और ऊर्जा स्वतंत्रता दोनों में योगदान देगा।”
इसके उलट, ई-कुकिंग से न केवल घरेलू वायु प्रदूषण कम होता है, बल्कि ऊर्जा दक्षता भी बढ़ती है। बिजली पर आधारित यह तरीका भारत की “नेट ज़ीरो 2070” नीति के अनुरूप है और ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटाने में मददगार हो सकता है। IEEFA का मानना है कि यदि सरकार नीति स्तर पर कदम उठाए तो यह “क्लीन कुकिंग” मॉडल तेजी से फैल सकता है और लाखों घरों की ऊर्जा संरचना बदल सकता है।
हालांकि भारत में 100% विद्युतीकरण हासिल किया जा चुका है, फिर भी ई-कुकिंग का प्रसार धीमा है। रिपोर्ट इसके चार प्रमुख कारण गिनाती है —
दूसरा, बाज़ार में विकल्प सीमित हैं; पर्याप्त ब्रांड्स और मॉडल उपलब्ध नहीं हैं।
तीसरा, कुछ उपभोक्ताओं में अब भी बिजली कटौती को लेकर अविश्वास है।
और चौथा, लोगों में जागरूकता की कमी है कि बिजली से खाना पकाना वास्तव में कितना सस्ता और स्वच्छ विकल्प है।
रिपोर्ट में नीति निर्माताओं के लिए पाँच ठोस सुझाव दिए गए हैं -
शहरी इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएँ जहाँ बिजली आपूर्ति स्थिर है;
देशव्यापी जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए ताकि उपभोक्ताओं को इसके आर्थिक व स्वास्थ्य लाभों की जानकारी मिले;
घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन दिया जाए ताकि उपकरण सस्ते और सुलभ हों;
और राज्यों के बीच नीति तालमेल स्थापित हो ताकि बिजली वितरण कंपनियाँ, शहरी विकास विभाग और महिला कल्याण मंत्रालय मिलकर एकीकृत योजना बना सकें।