आपकी थाली पर जलवायु संकट की मार: सब्ज़ी, चाय-कॉफी, चावल और तेल क्यों हो रहे हैं महंगे?
Gaon Connection | Jul 25, 2025, 12:07 IST
भारत समेत दुनिया भर के 18 देशों में जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम की चरम घटनाओं ने रोज़मर्रा के खाने-पीने की चीज़ों की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है। नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट बताती है कि यह संकट अब सिर्फ पर्यावरण का नहीं, हमारी थाली का संकट बन चुका है।
अगर आपने हाल के दिनों में सब्ज़ी, प्याज़, आलू, चाय या कॉफ़ी की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी महसूस की है, तो यह सिर्फ सप्लाई चेन या बाजार की चाल नहीं है। एक नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समेत 18 देशों में जलवायु परिवर्तन ने खाने-पीने की ज़रूरी चीज़ों को महंगा कर दिया है। गर्मी की लहरें, सूखा, बाढ़ और असामान्य बारिश अब फसलों को सीधे नुकसान पहुंचा रहे हैं।
इस अध्ययन का नेतृत्व वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने किया है, Climate extremes, food price spikes, and their wider societal risks नाम की यह रिपोर्ट 27 जुलाई, 2025 को इथियोपिया में होने वाले संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन (UN Food Systems Summit) से ठीक पहले सामने आई है, जिससे इस मसले की गंभीरता और अधिक स्पष्ट हो गई है।
भारत: प्याज़, आलू और टमाटर बने महंगाई के प्रतीक
भारत में, रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2024 के बीच आलू की खुदरा कीमतों में 158% की वृद्धि हुई है। 2024 की मई में पड़ी हीटवेव—जो सामान्य से कम से कम 1.5°C ज़्यादा गर्म थी—ने प्याज़ और आलू की कीमतों को 80% तक बढ़ा दिया। यह घटना बताती है कि मौसम अब केवल ‘माहौल’ नहीं रहा, बल्कि आपकी थाली का बजट तय करने वाला कारक बन चुका है।
दुनियाभर में बढ़ी महंगाई
भारत अकेला देश नहीं है जहां थाली पर मौसम की मार पड़ी हो। दुनिया के कई हिस्सों में चरम जलवायु घटनाओं ने खाद्य कीमतों को बुरी तरह प्रभावित किया:
ब्राज़ील और वियतनाम में कॉफी की कीमतों में 55% से 100% तक उछाल आया।
स्पेन और इटली में जैतून के तेल की कीमतें 50% तक बढ़ गईं।
घाना और आइवरी कोस्ट में हीटवेव के चलते कोको की कीमतें 280% तक पहुंच गईं।
जापान और दक्षिण कोरिया में चावल और गोभी जैसी ज़रूरी चीज़ें 50-70% महंगी हो गईं।
ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के बाद लेट्यूस की कीमतों में 300% की बढ़ोतरी हुई।
इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु संकट अब एक वैश्विक महंगाई संकट बन चुका है।
गरीबों पर सबसे बड़ा असर
Food Foundation की रिपोर्ट बताती है कि पौष्टिक खाना पहले से ही कम पौष्टिक भोजन की तुलना में प्रति कैलोरी दोगुना महंगा है। जब जलवायु संकट के कारण कीमतें बढ़ती हैं, तो गरीब परिवार मजबूरी में फल-सब्ज़ियों को छोड़ सस्ता, लेकिन पोषणहीन खाना अपनाते हैं। इससे कुपोषण, डायबिटीज़, हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
यह न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है।
अब क्या करें?
रिपोर्ट के लीड लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ चेताते हैं:
"जब तक हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह बंद नहीं करते, ये चरम मौसम और बढ़ेंगे। और इसका असर सीधे आपकी थाली पर पड़ेगा।"
भारत जैसे देश, जहां पहले से ही पोषण की कमी और स्वास्थ्य असमानता गंभीर चुनौती हैं, वहां खाद्य कीमतों में उथल-पुथल का मतलब है एक दोहरा संकट — जलवायु और स्वास्थ्य, दोनों।
UN शिखर सम्मेलन में क्या हो सकता है?
27 जुलाई को होने वाले UN Food Systems Summit में जब नेता मिलेंगे, तो यह रिपोर्ट उन्हें सोचने पर मजबूर करेगी कि जलवायु परिवर्तन अब ‘पर्यावरण की समस्या’ भर नहीं है, बल्कि यह आज के समय की सबसे जरूरी आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन चुकी है।
सवाल वही है: हम कब तक इंतज़ार करेंगे?
हमें अब यह मानना होगा कि जलवायु परिवर्तन हमारी थाली तक पहुंच चुका है। जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते—जैसे टिकाऊ खेती, पानी का विवेकपूर्ण उपयोग, कार्बन उत्सर्जन में कटौती और बेहतर अनुकूलन रणनीतियाँ—तब तक हमारी थाली भरना मुश्किल होता जाएगा।
इस अध्ययन का नेतृत्व वैज्ञानिक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ ने किया है, Climate extremes, food price spikes, and their wider societal risks नाम की यह रिपोर्ट 27 जुलाई, 2025 को इथियोपिया में होने वाले संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन (UN Food Systems Summit) से ठीक पहले सामने आई है, जिससे इस मसले की गंभीरता और अधिक स्पष्ट हो गई है।
भारत: प्याज़, आलू और टमाटर बने महंगाई के प्रतीक
भारत में, रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2024 के बीच आलू की खुदरा कीमतों में 158% की वृद्धि हुई है। 2024 की मई में पड़ी हीटवेव—जो सामान्य से कम से कम 1.5°C ज़्यादा गर्म थी—ने प्याज़ और आलू की कीमतों को 80% तक बढ़ा दिया। यह घटना बताती है कि मौसम अब केवल ‘माहौल’ नहीं रहा, बल्कि आपकी थाली का बजट तय करने वाला कारक बन चुका है।
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भारत अकेला देश नहीं है जहां थाली पर मौसम की मार पड़ी हो। दुनिया के कई हिस्सों में चरम जलवायु घटनाओं ने खाद्य कीमतों को बुरी तरह प्रभावित किया:
ब्राज़ील और वियतनाम में कॉफी की कीमतों में 55% से 100% तक उछाल आया।
स्पेन और इटली में जैतून के तेल की कीमतें 50% तक बढ़ गईं।
घाना और आइवरी कोस्ट में हीटवेव के चलते कोको की कीमतें 280% तक पहुंच गईं।
जापान और दक्षिण कोरिया में चावल और गोभी जैसी ज़रूरी चीज़ें 50-70% महंगी हो गईं।
ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ के बाद लेट्यूस की कीमतों में 300% की बढ़ोतरी हुई।
इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु संकट अब एक वैश्विक महंगाई संकट बन चुका है।
गरीबों पर सबसे बड़ा असर
Food Foundation की रिपोर्ट बताती है कि पौष्टिक खाना पहले से ही कम पौष्टिक भोजन की तुलना में प्रति कैलोरी दोगुना महंगा है। जब जलवायु संकट के कारण कीमतें बढ़ती हैं, तो गरीब परिवार मजबूरी में फल-सब्ज़ियों को छोड़ सस्ता, लेकिन पोषणहीन खाना अपनाते हैं। इससे कुपोषण, डायबिटीज़, हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
यह न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डालता है।
अब क्या करें?
रिपोर्ट के लीड लेखक मैक्सिमिलियन कोट्ज़ चेताते हैं:
"जब तक हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पूरी तरह बंद नहीं करते, ये चरम मौसम और बढ़ेंगे। और इसका असर सीधे आपकी थाली पर पड़ेगा।"
भारत जैसे देश, जहां पहले से ही पोषण की कमी और स्वास्थ्य असमानता गंभीर चुनौती हैं, वहां खाद्य कीमतों में उथल-पुथल का मतलब है एक दोहरा संकट — जलवायु और स्वास्थ्य, दोनों।
UN शिखर सम्मेलन में क्या हो सकता है?
27 जुलाई को होने वाले UN Food Systems Summit में जब नेता मिलेंगे, तो यह रिपोर्ट उन्हें सोचने पर मजबूर करेगी कि जलवायु परिवर्तन अब ‘पर्यावरण की समस्या’ भर नहीं है, बल्कि यह आज के समय की सबसे जरूरी आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन चुकी है।
सवाल वही है: हम कब तक इंतज़ार करेंगे?
हमें अब यह मानना होगा कि जलवायु परिवर्तन हमारी थाली तक पहुंच चुका है। जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते—जैसे टिकाऊ खेती, पानी का विवेकपूर्ण उपयोग, कार्बन उत्सर्जन में कटौती और बेहतर अनुकूलन रणनीतियाँ—तब तक हमारी थाली भरना मुश्किल होता जाएगा।