मत्स्य पालन में डिजिटल क्रांति: मोबाइल ऐप्स और ड्रोन से होगी 2025 की जनगणना

Gaon Connection | Nov 01, 2025, 13:16 IST

भारत की पहली डिजिटल समुद्री मत्स्य जनगणना शुरू हो गई है। ‘व्यास भारत’ और ‘व्यास सूत्र’ जैसे मोबाइल ऐप्स के ज़रिए 13 तटीय राज्यों के 12 लाख मछुआरा परिवारों की जानकारी जुटाई जाएगी। ड्रोन सर्वे और रियल-टाइम डेटा ट्रैकिंग से यह अभियान मत्स्य क्षेत्र में पारदर्शिता, सटीकता और तकनीकी प्रगति का नया अध्याय बनेगा।

भारत में समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र अब एक नए डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन ने कोच्चि में समुद्री मत्स्य पालन जनगणना 2025 (Marine Fisheries Census – MFC 2025) का शुभारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने दो नए मोबाइल ऐप — ‘व्यास भारत’ और ‘व्यास सूत्र’ — भी लॉन्च किए, जिनकी मदद से यह जनगणना पूरी तरह पेपरलेस, वास्तविक समय आधारित और भू-संदर्भित (geo-referenced) होगी।

यह पहली बार है जब भारत में समुद्री मत्स्य जनगणना पारंपरिक कागज़ी रिकॉर्ड की जगह पूरी तरह डिजिटल माध्यम से की जा रही है। इसका उद्देश्य है — मछुआरा समुदाय, नौकाओं, उपकरणों और समुद्री संसाधनों की सटीक और अद्यतन जानकारी जुटाना, ताकि सरकार योजनाएँ अधिक सटीक ढंग से बना सके।

45 दिनों में देशभर की तटीय गणना

जनगणना 3 नवंबर से 18 दिसंबर 2025 तक 45 दिनों तक चलेगी। इसमें 13 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 5,000 समुद्री गाँवों के लगभग 12 लाख मछुआरा परिवारों की गणना की जाएगी। यह अभियान आईसीएआर–केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) द्वारा विकसित डिजिटल ढांचे पर आधारित है।

सीएमएफआरआई ने इसके लिए तीन अलग-अलग ऐप विकसित किए हैं —

‘व्यास-एनएवी’ – मछली पकड़ने वाले गाँवों और बंदरगाहों के सत्यापन के लिए

‘व्यास-भारत’ – घरेलू और बुनियादी ढाँचे की जानकारी के लिए

‘व्यास-सूत्र’ – गणना की वास्तविक समय में निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए

ये सभी ऐप बहुभाषी (multilingual) हैं और GPS आधारित जियो-रेफरेंस्ड डेटा जुटाने में सक्षम हैं। इससे मानवीय त्रुटियाँ घटेंगी, डेटा अधिक सटीक होगा और नीति निर्माण के लिए वास्तविक तस्वीर सामने आएगी।

ड्रोन से हवाई सर्वे और पारदर्शिता

इस जनगणना की एक खास विशेषता है — ड्रोन तकनीक का उपयोग। मछली पकड़ने वाले जहाज़ों की हवाई गणना के लिए ड्रोन तैनात किए गए हैं, ताकि ज़मीनी आंकड़ों का मिलान एक तटस्थ और सत्यापन योग्य स्रोत से किया जा सके।
यह ड्रोन सर्वेक्षण विजाग, काकीनाडा, तूतीकोरिन, मंगलुरु, बेपोर और पुथियाप्पा जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर किया गया है। इससे भारत का मत्स्य क्षेत्र अब “डिजिटल ब्लू इकोनॉमी” की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर भी फोकस

एमएफसी-2025 में सिर्फ मछली पकड़ने की गतिविधियों की ही नहीं, बल्कि मछुआरा परिवारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी भी ली जाएगी। इसमें परिवार की कुल आय, ऋण, बीमा स्थिति, सरकारी योजनाओं का लाभ, और कोविड-19 के प्रभाव जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है। यह पहली बार है जब इस जनगणना में महिलाओं और युवाओं की भूमिका, स्वयं सहायता समूहों (SHG) और मत्स्य उत्पादक संगठनों (FFPO) की जानकारी भी एकत्र की जा रही है।


जॉर्ज कुरियन ने इस अवसर पर कहा कि सरकार मछुआरों के लिए कई नई तकनीकी सुविधाएँ — जैसे ट्रांसपोंडर और कछुआ निष्कासन उपकरण (TEDs) — निःशुल्क उपलब्ध करा रही है। उन्होंने सभी मछुआरों से आग्रह किया कि वे एनएफडीपी पोर्टल पर पंजीकरण कराएँ ताकि उन्हें सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।

डेटा-आधारित योजनाओं की दिशा में कदम

मत्स्य पालन विभाग के अनुसार, यह डिजिटल जनगणना नीति निर्माण, कल्याणकारी योजनाओं और जलवायु-अनुकूल विकास रणनीतियों को अधिक सटीक बनाएगी। इससे प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) और पीएम–मस्त्य किसान समृद्धि योजना (PM-MKSSY) जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन में भी सुधार होगा।

‘स्मार्ट जनगणना, स्मार्ट मत्स्य पालन’ के नारे के साथ यह पहल भारत को डेटा-ड्रिवन और तकनीक-आधारित ब्लू इकोनॉमी की दिशा में अग्रसर कर रही है। इससे तटीय क्षेत्रों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सामुदायिक भागीदारी बढ़ेगी, और महिलाओं तथा युवाओं के लिए नए रोज़गार और उद्यमिता अवसर खुलेंगे।

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