पीएम मोदी ने धरती मां को बचाने की अपील यूं नहीं की, भारत में कम हो रही जमीन की उपजाऊ शक्ति

Arvind ShuklaArvind Shukla   17 Aug 2019 5:19 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
Pesticides, fertile power, mother earth, pm modi

"किसान भाइयों जिस तरह हम रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, धरती मां को तबाह कर रहे हैं। हमें अपनी धरती मां को तबाह करने का अधिकार नहीं है। हम अपने खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल 10,20 25 फीसदी कम करेंगे या फिर बिल्कुल नहीं करेंगे।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर देश को संबोधित करते हुए धरती मां की सेहत का जिक्र किया लेकिन इस पर उतनी चर्चा नहीं हुई, जितना ये मुद्दा गंभीर है।

हरित क्रांति के बाद देश में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग, गोबर और हरी खादों के कम इस्तेमाल और फसल अवशेष आदि जलाए जाने से खेती की मिट्टी की सेहत बिगड़ गई है। खेतों में कार्बन तत्वों की मात्रा कम हो गई है तो पीएच का स्तर बिगड़ गया है। जिसके चलते हर साल और ज्यादा उर्वरक डालने पड़ रहे हैं। इससे किसान की लागत बढ़ रही है और गांव हों या शहर उनकी सेहत बिगड़ रही है।

"अगर आप अपने पिछले कुछ साल के डॉक्टर के दवाओं के पर्चों और अपने खेत के मृदा कार्ड की तुलना करें तो पाएंगे कि खेत में पोषक तत्वों की मात्रा कम हो गई है जबकि दवाई के पर्चे में आयरन की गोली, जिंक और कैल्शियम की गोलियों की संख्या बढ़ती जा रही है। क्योंकि हमारी मिट्टी में ही इन पोषक तत्व हैं तो वो फसल में भी कम हो जाते हैं। उन्हें बाहर से पूरा करना पड़ रहा है।" डॉ. विनय मिश्रा, निदेशक, केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, लखनऊ कहते हैं। यह सरकारी संस्थान देश में मिट्टी पर शोध और सुधार के लिए जाना जाता है।

"कार्बन तत्व जमीन के लिए बिल्कुल वैसे हैं जैसे मानव शरीर में हीमोग्लोबिन। अगर रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर 13 से 16 है तो शरीर पहली नजर में स्वस्थ, वैसे ही अगर मिट्टी में कार्बन तत्व की मात्रा .5 से .75 तक (सतही मिट्टी) है तो ठीक वर्ना कुछ खराबी है। हमारी मिट्टी की सेहत बिगड़ गई है। हमारे खेत की मिट्टी में कार्बन तत्व और सूक्ष्म जीवाणुओं की मात्रा बहुत कम हो गई है।" कृषि विज्ञान केंद्र, सीतापुर कृषि वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव बताते हैं।

डॉ. श्रीवास्तव, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र वैज्ञानिक हैं। पिछले वर्ष केवीए ने 1200 किसानों को मिट्टी की जांचकर मृदा कार्ड बना कर दिए थे। "1200 में से 60-70 फीसदी किसानों के खेतों में कार्बन तत्व की मात्रा .2 से .25 तक थी। अगर इन खेतों में हरी खाद, गोबर, केंचुआ खाद आदि का प्रयोग नहीं किया गया तो नमी भी कम होती जाएगी तो लाभकारी वैक्टीरिया (सूक्ष्म जीवाणु) भी जीवित नहीं रह पाएंगें। और आने वाले वर्षों में ये जमीन ऊसर हो सकती है। डॉ. दया बताते हैं जैविक खेतों में कार्बन तत्तों का औसत 12 से 18 तक पाया जाता है।

जमीन में कार्बन तत्व की मात्रा ठीक है, इसका मतलब है कि खेत में वो माहौल है जहां सूक्ष्म जीव पनप सकते हैं। सूक्ष्म जीव नहीं होंगे तो खेतों में डाली जा रही खादों का सही उपयोग नहीं होगा, फसल का उत्पादन भी कम होगा और जो होगा उसमें पोषक तत्व कम होंगे। जमीन पानी कम सोखेगी, सिंचाई ज्यादा करनी पड़ेगी। पिछले कुछ वर्षों में लगातार जलस्तर घटता जा रहा है, क्योंकि यूरिया और डीएपी के ज्यादा प्रयोग से जमीन कठोर हो गई है। बारिश का पानी ऊपर से ही बह जाता है। मिट्टी की सही जांच कराने का वीडियो नीचे देखिए

यह भी पढ़ें- आखिर क्‍यों पीएम मोदी को कहनी पड़ी जनसंख्‍या नियंत्रण की बात

कुछ साल पहले भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की संस्था स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर, अहमदाबाद की अगुवाई में हुए सर्वे में पता चला था कि देश की 32 फीसदी जमीन बेजान होती जा रही है और ये सब हुआ है उर्वरक और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से। इससे पहले कृषि संस्थानों के संघ ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कुल 350 मिलियन की एक तिहाई यानि करीब 120 मिलियन हेक्टेयर भूमि पहले से ही समस्याग्रस्त है।

"50 साल पहले यूपी की मिट्टी में सिर्फ नाइट्रोजन की कमी थी, अब नाइट्रोजन, पोटास, जिंक, बोरान, सल्फर कम हो गए हैं। मिट्टी में 17 तरह के पोषक तत्व होते हैं। लेकिन किसान सिर्फ डाई आमोनियम फास्फेस्ट (डीएपी) यूरिया कभी फास्टेट, सल्फर या जिंक डालता है। किसान जो खाद डालते हैं उसे डालते ही चले जाए हैं, जिससे खेत में इनका संतुलन बिगड़ जाता है। किसी पोषक तत्व की अधिकता है किसी की कम, क्योंकि जमीन की ही फिजिकल, केमिकल और बॉयोलॉजिकल प्रॉपर्टी प्रभावित हो जाती है।" डॉ. विनय मिश्रा कहते हैं।

"संतुलित रायानिक खादों के साथ जैविक खादों के प्रयोग से कार्बन तत्वों की मात्रा बढ़ी है। पंतनगर (उत्तराखंड), जबलपुर, मध्य प्रदेश) अकोला (महाराष्ट्र), बैरागपुर (पश्चिम बंगाल) के कई इलाकों में कार्बन तत्वों की मात्रा .6 फीसदी तक मिलती है। ये अच्छी बात है। पंजाब में सुधार हो रहा है। वहां कार्बन तत्वों की मात्रा औसतन .2 हो गई है। लेकिन सबसे खराब हालत राजस्थान की है। यहां का औसत .1 है। जो बेहद खराब है।" भारतीय मृदा विज्ञान संस्‍थान (ICAR-IISS) के एक वैज्ञानिक ने बताया।

स्वतंत्रता दिवस वो पहला मौका नहीं था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की तबाह होती मिट्टी की बात की। 19 फरवरी 2015 को केंद्र सरकार ने अपनी देशव्यापी राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत राजस्थान के सूरतगढ़ से की थी। उन्होंने उस वक्त कहा था कि हर खेत की मिट्टी का रिपोर्ट कार्ड होगा, खेती से किसानों की गरीबी मिटेगी।

मिट्टी की सेहत एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश) के अनुपात से भी पता लगाई जा सकती है। एनपीए का अनुपात 4: 2: 1 होना चाहिए लेकिन 2014 में राजस्थान का औसत 180:55:1 था ये भयावह है। इस दौरान हरियाणा में 60.7: 12.7:1 था जबकि पंजाब में 56.8:12.5:1 था। इस अनुपात वाली मिट्टी में पैदा हुआ अनाज, फल सब्जियां सब टॉक्सिस (विषाक्त) होती हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मृदा कार्ड योजना की उस दौरान खूब वाहवाही हुई थी। नियम हर खेत की मिट्टी की जांच की जानी थी, और किसान को बताया जाना था कि उसके खेत की मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है। किसान को हर फसल पर अपने खेत की जांच करानी थी और कृषि वैज्ञानिकों के बताए अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

"ज्यादातर किसानों के अभी भी कार्ड नहीं बने है। सिर्फ एनपीके की जांच हुई। उसके आंकड़ों पर भी सवाल हैं क्योंकि सरकार ने ग्रिड बनाकर मिट्टी उठवाई थी, पता नहीं किस खेत की मिट्टी गई और क्या रिपोर्ट आई। सरकार को चाहिए हर खेत की सही तरीके से जांच कराए खेत की सेहत की दशा पता होती तभी उसका इलाज हो सकेगा।" उत्तर प्रदेश में तैनात एक कृषि वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर पर कहा।

यह भी पढ़ें- क्यों खतरनाक है 'सिंगल यूज प्लास्टिक', क्या 2 अक्टूबर से लग पाएगा इस पर प्रतिबंध?

मिट्टी की सेहत कैसे सुधरे इस सवाल पर भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के डॉ. एमसी माना कहते हैं, "हमारे देश में हर साल 679 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होते हैं। 379 मिलिटन टन गाय-भैंस आदि का गोबर (एनिलम वेस्ट) और 65 मिलियन टन नगरों शहरों से ठोस कूड़ा निकलता है। अगर इसका वैज्ञानिक तरीकों से खाद बनाकर उपयोग किया जाए, किसान फसल के अवशेष न जलाएं, खादों का संतुलित उपयोग करें। तो कुछ ही दिनों में मिट्टी की सेहत सुधर सकती है। ग्लोबल वार्मिंग (जलवायु परिवर्तन) में भी मददगार होगा।"

खेत की मिट्टी की सेहत नहीं सुधरी तो लोग जिस मिट्टी की खुशबू की बात करते हैं वो किताबी हो जाएगी। "हम लोग अक्सर पहली बारिश के बाद मिट्टी से आने वाली खुशबू की बात करते हैं। ये खुशबू मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव (एक्टीनो मायसिटीज) की वजह से आती थी। लेकिन अब शहरों में ये सौंधी सुगंध आनी बिल्कुल बंद है तो कम गांवों में भी कम हो गई है।" पारंपरिक देसी वन औषधियों के जानकार डॉ. दीपक आचार्य कहते हैं।

निर्यात में गिरावट सबसे ताजा उदाहरण

सरकार ने यह कोई बार दोहराया है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि निर्यात में बढ़ोतरी बहुत जरूरी है। सरकार ने 2022 तक कृषि निर्यात को 30 अरब डॉलर से बढ़ाकर 60 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है लेकिन कीटनाशकों का ज्यादा और अंधाधुंध इस्तेमाल इस राह में रोड़े खड़े कर रहा है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में कृषि निर्यात में 10.60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हमारी उपज की खराब गुणवत्ता हमारी निर्यात नीति को प्रभावित कर रही है।

इससे पहले भारतीय बासमती चावल की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। यूरोपीय संघ ने पिछले साल बासमती चावल का ट्राईसीक्लेज़ोल (Tricyclazole) का एमआरएल 1 पीपीएम से घटाकर 0.01 पीपीएम कर दिया था जिससे भारतीय निर्यात को काफी नुकसान हुआ। भारतीय कृषि निर्यात के लिए एफ्लेटॉक्सिन्स के अलावा अत्यधिक कीटनाशक और केमिकल के अवशेष एक बड़ी समस्या है। यह समस्या बासमती, अंगूर, मूंगफली और बहुत सारी चीजों के साथ हैं।

वर्ष 2018 में अमेरिका की खाद्य एवं दवा प्रशासक (एफडीए) ने प्रतिबंधित एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल वाले भारतीय झींगों की खेपों पर नाराजगी जताई और झींगा मछली की 26 खेपों को ठुकरा दिया। भारतीय झींगा निर्यातकों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है और इसका भारत से कुल समुद्री खाद्य निर्यात में लगभग 32 प्रतिशत का योगदान है।

खेती में देसी क्रांति की खबरें यहां पढ़ें-

जलवायु परिवर्तन: जैविक कीटनाशक और प्राकृतिक उपाय ही किसानों का 'ब्रह्मास्त्र'
देश की मिट्टी में रचे बसे देसी बीज ही बचाएंगे खेती, बढ़ाएंगे किसान की आमदनी
मिट्टी, पानी, हवा बचाने के लिए याद आई पुरखों की राह
जलवायु परिवर्तन और कंपनियों का मायाजाल तोड़ने के लिए पुरानी राह लौट रहे किसान?

जमीन को ऊसर होने से बचाने के लिए ये करें

  • सबसे पहले मिट्टी की जांच कराएं, उसके मुताबिक उर्वरक डालें।
  • खेत में देसी खादों (गोबर, गोमूत्र, फसलों के अवशेष, हरी खादी) का इस्तेमाल करें, ताकि जीवाश्म कम न हों।
  • जिस जमीन में कार्बन तत्व .5 होते हैं वो जमीन उपजाउ होती है और जिसमें ये तत्व 0.75 होते हैं वो जैविक खेती योग्य हो जाती है।
  • मिश्रित खेती करें... गेहू से के साथ चना, गन्ने के सरसों आदि.. अरहर चना जैसी फसलें क्रमवार फसलों में बोएं।
  • कीट और फंफूदनाशी का कम प्रयोग करें, जरुरत होने पर जैविक कीटनाशक बनाएं।
  • खेती में ऊपर की करीब 4 इंच मिट्टी में खेती होती है, इसलिए कभी खेतों में पराली आदि न जलाएं, इससे जमीन की उपजाऊ परत और सूक्ष्म जीव दोनों नष्ट हो जाते हैं।


   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.