क्यों खतरनाक है 'सिंगल यूज प्लास्टिक', क्या 2 अक्टूबर से लग पाएगा इस पर प्रतिबंध?

Daya Sagar | Aug 16, 2019, 13:47 IST
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क्या इस गांधी जयंती पर हम अपने पूज्य बापू को एक तोहफा दे सकते हैं? क्या इस दो अक्टूबर से हम भारत को 'सिंगल यूज प्लास्टिक' (एक बार प्रयोग में आने वाले प्लास्टिक) से मुक्ति दिला सकते हैं? क्यों ना बापू को याद करते हुए हम सब टोलियां बनाकर अपने स्कूल, कॉलेजों और घरों से निकलें और घर, चौराहे जहां पर भी हमें सिंगल यूज प्लास्टिक मिले, उसे इकट्ठा करें। नगर पालिकाएं, महानगर पालिकाएं, ग्राम पंचायतें सभी इसको जमा करने की व्यवस्था करें। हम प्लास्टिक को विदाई देने की दिशा में 2 अक्टूबर को पहला मजबूत कदम उठा सकते हैं।
स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण का मुद्दा उठाया। अपने भाषण में उन्होंने प्लास्टिक के कम से कम प्रयोग करने की अपील की और लोगों से कहा कि वे जूट या कपड़े के झोले का उपयोग करें।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश में प्रतिदिन लगभग 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें महज 20 फीसदी ही रिसाइकिल हो पाता है। वहीं 39 फीसदी प्लास्टिक कचरे को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट करने की कोशिश होती है जबकि 15 फीसदी को जला दिया जाता है।

क्या होता है 'सिंगल यूज प्लास्टिक'?

चालीस माइक्रोमीटर (माइक्रॉन) या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहते हैं। प्लास्टिक के थैले (पॉलीथीन), स्ट्रॉ, पानी की बोतल और भोजन का सुरक्षित रखने वाले पैकेट सिंगल यूज प्लास्टिक के ही बने होते हैं। यह ना आसानी से नष्ट होता है और ना ही इसे रिसाइकिल किया जा सकता है। इसलिए इसे सिंगल यूज प्लास्टिक कहते हैं। विडंबना यह है कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में सबसे ज्यादा प्रयोग सिंगल यूज प्लास्टिक का ही होता है।

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कितना खतरनाक है 'सिंगल यूज प्लास्टिक'?

इस प्लास्टिक की रसायनिक संरचना ऐसी होती है कि यह आसानी से नष्ट नहीं होता है। जमीन के अंदर दबाया गया प्लास्टिक मिट्टी के जरिये यह पानी में जाता है और फैलकर प्रदूषण फैलाता है। वहीं प्लास्टिक को जलाने से हवा प्रदूषित होती है। एक अनुमान के मुताबिक प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तीन गुनी हो जाएगी।

सिंगल यूज प्लास्टिक को अगर जमीन के अंदर दबाकर नष्ट करने की कोशिश होती है तो यह नष्ट नहीं होता बल्कि कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटकर खतरनाक रसायन पैदा करता है। जो मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को नुकसान पहुंचाता है। मिट्टी के जरिये यह खतरनाक जहरीला रसायन हमारे खाद्य पदार्थों और पानी में पहुंचता है, जिससे मानव शरीर को काफी नुकसान पहुंचता है। इससे मनुष्य की रोगों से लड़ने की क्षमता, जनन क्षमता प्रभावित होती है और यह कैंसर का भी कारण बनता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के प्रो. डॉ. डी. हिमांशु रेड्डी बताते हैं, "यह प्लास्टिक कास्नोजेनिक होता है। इसमें ऐसे रसायन होते हैं, जिससे कैंसर होने की सम्भावना बनी रहती है।"

सिंगल यूज प्लास्टिक सिर्फ इंसानों और पर्यावरण के लिए ही नहीं पशुओं के लिए भी घातक है। सड़कों पर बिखरे प्लास्टिक को खाकर छुट्टा गाय, भैंस और कुत्ते बीमार होते हैं। कई बार इन पशुओं के पेट से किलो के हिसाब से प्लास्टिक निकलता है। वहीं समुद्र में फैल रहे प्लास्टिक कचरे से समुद्र के जीव और मछलियां प्रभावित हो रहे हैं। एक अध्य्यन के मुताबिक प्लास्टिक का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में फैला हुआ है।

2014 में प्रकाशित इस अध्य्यन के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं। सिर्फ एक फीसदी प्लास्टिक कचरा समुद्र तल पर हमें दिखाई देता है, जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में या फिर समुद्र तल में छिपा हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक संख्या प्लास्टिक की होगी।

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क्या सरकार लाएगी कोई कठोर नीति?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के दिन लाल किले से भाषण देते हुए दुकानदारों से अपील की कि वे कैलेंडर की बजाय लोगों को कपड़े की झोले गिफ्ट करें। उन्होंने यह भी कहा कि दो अक्टूबर से सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाएगी। प्रधानमंत्री के इस उद्घोषणा के बाद से लग रहा है कि सरकार इसके खिलाफ कोई कठोर नीति या कानून ला सकती है।

देश के 18 राज्यों में प्लास्टिक के थैले पर है प्रतिबंध

हालांकि देश के कई राज्यों में प्लास्टिक के थैले पर पहले से ही प्रतिबंध लगा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के 18 राज्यों में प्लास्टिक थैलों पर पूरी तरह प्रतिबंध है जबकि पांच राज्यों में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर प्लास्टिक के थैले के प्रयोग पर पाबंदी लगी है। हालांकि प्रतिबंध के बावजूद अधिकतर जगहों पर इसका धड़ल्ले से उपयोग होता है।

हालांकि केंद्र सरकार लगातार इस पर चिंता जताती रही है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसके विषय में एक बार कहा था, "प्लास्टिक की थैलियों करने का प्रयोग करने पर सरकार कठोर कानून लाकर दंड का प्रावधान करेगी। नियम तोड़ने वालों को कड़ी सजा दी जाएगी।" प्रधानमंत्री के भाषण के बाद उन्होंने अपने इस संकल्प को एक बार फिर से दोहराया। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक के थैलियों के खिलाफ और कपड़े की थैलियों के प्रयोग के लिए देश में एक आंदोलन चलाया जाएगा, जो 2 अक्टूबर से शुरू होगा।

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सरकार ने 2022 तक पूर्ण प्रतिबंध का रखा है लक्ष्य

2018 में पर्यावरण दिवस के अवसर पर सरकार ने लक्ष्य निर्धारित किया था कि 2022 तक देश से 'सिंगल यूज प्लास्टिक' को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। इसके बाद से सरकार अपने स्तर पर लगातार प्रयास करती रही है, लेकिन सख्ती के अभाव में अभी तक इसका कोई असर होता नहीं दिखा। अब जब प्रधानमंत्री ने लाल किले से यह बात उठायी है तो पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाले लोगों को उम्मीद है कि सरकार प्लास्टिक बैन के लिए कोई निर्णायक कदम उठाएगी।

'चिंतन इनवायरमेंटल एंड रिसर्च ग्रुप' की चित्रा कहती हैं कि प्रधानमंत्री का इस विषय पर बोलना निश्चित रूप से इस अभियान में उत्प्रेरक का काम करेगी और नगर पालिकाएं प्लास्टिक प्रदूषण के रोकथाम पर विशेष ध्यान देंगी। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि 'सिंगल यूज प्लास्टिक' को अचानक से प्रयोग से बाहर नहीं किया जा सकता, क्योंकि रोजमर्रा के कामों में लोग इसके प्रयोग के अभ्यस्त हो चुके हैं। सबसे पहले लोगों को इसके प्रति जागरूक करना होगा, एक निश्चित योजना बनानी होगी और फिर स्टेप बाई स्टेप ही इस लक्ष्य को पाया जा सकता है।





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