लॉकडाउन में मनरेगा में काम शुरू, मगर अभी भी मुश्किलें तमाम

सरकार ने लॉकडाउन में मनरेगा में काम की मंजूरी देकर मजदूरों की जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश की है, मगर एक हफ्ते बाद भी बड़ी संख्या में मजदूर काम मिलने की आस लगाये बैठे हैं।

Kushal MishraKushal Mishra   29 April 2020 7:16 AM GMT

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लॉकडाउन में मनरेगा में काम शुरू, मगर अभी भी मुश्किलें तमाममनरेगा में काम शुरू होने के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूर बैठे हैं खाली हाथ। फोटो साभार : ट्विटर

लॉकडाउन में मनरेगा में काम शुरू हो चुका है। सरकार ने ऐसे संकट के समय में ग्रामीण भारत के मजदूरों को 20 अप्रैल से मनरेगा में काम देने की मंजूरी देकर इनकी जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश की है, मगर एक हफ्ते बाद भी बड़ी संख्या में मजदूर काम मिलने की आस लगाये बैठे हैं।

"कुछ जगह काम चल रहा है, मगर हमारे यहाँ अभी भी काम शुरू नहीं हुआ। कई जगह आवास योजना में काम देने की भी बात कर रहे हैं मगर मटेरियल ही नहीं है तो वहां मजदूर काम क्या करेंगे, फिर भी हमने बीडीओ जी को मजदूरों के काम का आवेदन किया है मगर अभी तक उनका कोई जवाब नहीं आया," झारखण्ड में लोहरदग्गा जिले के भंडरा प्रखंड में मनरेगा सहायता केंद्र की मुख्य समन्यवक शनियारो देवी कहती हैं।

लॉकडाउन में शनियारो का जिला ग्रीन जोन में शामिल है यानी इस जिले में अभी कोई भी कोरोना पॉजिटिव मरीज नहीं मिला है। इसके बावजूद शनियारो देवी के सामने मनरेगा में काम मिलने को लेकर जो मुश्किलें हैं, वे और राज्यों में भी मजदूरों के सामने देखने को मिल रही हैं।

झारखण्ड की स्थिति पर झारखण्ड नरेगा वाच के राज्य समन्व्यक जेम्स हेरेन्ज 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "मैंने 26 अप्रैल को राज्य के छह ब्लॉक के मनरेगा सहायता केंद्र में बात की जहाँ तीन ब्लॉक में काम शुरू किया गया था और तीन में नहीं। वहां बीडीओ भी लॉकडाउन खत्म होने से पहले मनरेगा में काम शुरू करने को तैयार नहीं है क्योंकि मनरेगा के जो फ्रंट लाइन कर्मचारी हैं वो सभी लॉकडाउन में कई जगह ड्यूटी कर रहे हैं, ऐसे में स्टाफ की कमी भी सामने है। इसलिए भी मनरेगा का काम कई जगहों पर शुरू नहीं हो पा रहा है।"

केंद्र सरकार मनरेगा के तहत राज्यों को वर्ष 2020-21 के लिए 20,226 करोड़ रुपए की धनराशि जारी कर चुकी है। इससे पहले केंद्र सरकार ने लॉकडाउन को देखते हुए मनरेगा में राष्ट्रीय औसत मजदूरी में 20 रुपए की बढ़ोत्तरी की भी घोषणा की।

लॉकडाउन में सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश जारी किये हैं कि ग्रामीण स्तर पर सोशल डिस्टन्सिंग का पूरा ख्याल रखते हुए मजदूरों को मनरेगा में काम दिए जाएँ। इसके अलावा नई दिल्ली समेत बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में लाखों की संख्या में अपने गाँव पहुंचे प्रवासी मजदूरों को नए जॉब कार्ड बनाकर काम दिया जाये ताकि उनके सामने रोजी-रोटी का संकट दूर हो। इसके बावजूद अभी भी बड़ी संख्या में मजदूरों को काम नहीं मिल सका है।

"जैसा काम होना चाहिए, वैसा काम नहीं हो रहा है। हमारे गाँव में डबरी निर्माण का काम शुरू हुआ है, मगर कोई व्यवस्था नहीं है। साईट में पानी भरा हुआ है, कोई पम्पिंग सेट नहीं है जो पानी निकाल कर मजदूर काम कर सकें, मजदूरों के पास अभी कोई काम नहीं है," बिहार में अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के तरहट गाँव के मनरेगा मजदूर ब्रह्मानंद बताते हैं।

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लॉकडाउन में मनरेगा में काम की मांग बढ़ने के बावजूद कई मजदूरों बैठे हैं खाली हाथ। फोटो साभार : ट्विटर

जिस तरहट गाँव में ब्रह्मानंद रहते हैं वहां 150 मजदूर मनरेगा में काम करते हैं। ब्रह्मानंद के मुताबिक उनके गाँव में मजदूरों को पिछले साल मनरेगा में किये गए काम का भुगतान भी नहीं मिला है। इस समय ऐसे मजदूरों के हाथ में बिल्कुल पैसा नहीं है, वे बहुत परेशान हैं।

ग्रीन जोन में शामिल अररिया जिले की तरह करीब 80 किलोमीटर दूर कटिहार जिले में भी यही हाल है। कटिहार जिले के मनसाही ब्लॉक के चित्तौरिया ग्राम पंचायत के सरपंच जितेन्द्र पासवान बताते हैं, "हमारी पंचायत में अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है जबकि हमने करीब 500 मजदूरों को काम देने के लिए पहले ही अधिकारी को आवेदन कर दिया था, मगर काम नहीं मिला।"

"हमारी तरफ कोशी नदी के पास मिट्टी भराई का काम होना है। काम शुरू हो तो मजदूरों को राहत मिले, मगर अधिकारी बहुत ढीला रवैया अपनाये हुए हैं। एक बार काम शुरू होने से जो प्रवासी मजदूर क्वारंटाइन पूरा करके आयें हैं उनको भी राहत मिलती, कम से 100-50 मजदूरों से ही काम शुरू करने को आदेश तो देना चाहिए था, मगर ऐसा भी नहीं हुआ," जितेन्द्र कहते हैं।

लॉकडाउन के दौरान अलग-अलग राज्यों में मनरेगा में काम शुरू होने की तस्वीरें सोशल मीडिया में सामने आ रही हैं, मगर कई ऐसे जिले भी हैं जो लॉकडाउन में हॉटस्पॉट जिलों में शामिल नहीं है, फिर भी वहां के ग्रामीण इलाकों में मजदूरों को मनरेगा में काम नहीं मिल सका है।

बिहार से करीब 1300 किलोमीटर दूर राजस्थान में भी ऐसे जिले हैं जहाँ अब तक गांवों में मजदूरों को मनरेगा में काम नहीं मिल सका है और एक हफ्ते बाद भी मजदूर खाली हाथ बैठे हैं।

राजस्थान के उदयपुर जिले के गातोड़ ग्राम पंचायत के नालाफलां गाँव में करीब 700 जॉब कार्डधारी मजदूरों के लिए मनरेगा में काम मिलना ही अपनी आजीविका चलाने का जरिया है।

नालाफलां गाँव के ही एक मनरेगा मजदूर प्रेम शंकर मीना बताते हैं, "मनरेगा में काम शुरू होने की उम्मीद से हम मजदूर लोग सरपंच के पास गए थे, पर वे बताये कि अधिकारी बोले हैं कि मनरेगा मजदूर काम के लिए एक मई से आवेदन करें, अभी तो कोई काम नहीं है।" प्रेम शंकर कहते हैं, "हम मजदूरों के पास पैसों की बहुत कमी है, कई मजदूरों की हालत तो ज्यादा ख़राब है, सभी को पैसों की जरूरत है अगर काम मिल जाता तो बहुत राहत मिलती।"

इसी गाँव में लॉकडाउन के दौरान गुजरात के अहमदाबाद से क्वारंटाइन की अवधि बिताकर लौटे प्रवासी मजदूर रमेश चन्द्र बताते हैं, "जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मेरे पास सिर्फ 700 रुपए था, किसी तरह मैं अपने गाँव लौट सका हूँ, अब मेरे पास एक भी पैसा नहीं है, खेती-बाड़ी में भी कोई काम नहीं बचा है जो कुछ कमा सकें, इसलिए मनरेगा में जॉब कार्ड के लिए आवेदन किया था मगर अभी कुछ नहीं हुआ।"

राजस्थान में मनरेगा में श्रमिकों की बात करें तो राज्य में एक करोड़ 13 लाख श्रमिक काम करते हैं, जबकि देश में श्रमिकों का यह आंकड़ा 13.62 करोड़ है। ऐसे में मनरेगा में काम शुरू होने से इन मजदूरों के लिए लॉकडाउन के संकट के समय में राहत मिलने की बड़ी उम्मीद है। राजस्थान में मनरेगा संघर्ष मोर्चा से जुड़े राज्य समन्व्यक मुकेश गोस्वामी बताते हैं, "बड़ी बात यह है कि लॉकडाउन के बाद आने वाले समय में ग्रामीण स्तर पर मनरेगा में काम की बहुत ज्यादा मांग बढ़ेगी क्योंकि जो प्रवासी मजदूर अभी दूसरे राज्यों में फँसे हैं वो वापस आने पर मनरेगा में काम की मांग करेंगे।"

"बड़ी संख्या में नए जॉब कार्ड बनेंगे, ग्रामीण स्तर पर रोजगार के लिए मनरेगा में ही बड़ी सम्भावना उनके सामने होगी। ऐसे में सरकार को मनरेगा में 100 दिनों की बजाए 200 दिन मजदूरों को रोजगार की गारंटी देनी चाहिए क्योंकि इन मजदूरों के सामने पैसों की बड़ी समस्या है," मुकेश गोस्वामी कहते हैं।

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मनरेगा में काम के लिए बढ़ती मांग की तस्वीर उत्तर प्रदेश में देखने को मिलती है। लॉकडाउन में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बड़ी संख्या में मजदूर काम की आस लगाएं बैठे हैं।

वाराणसी में मनरेगा मजदूर यूनियन के संयोजक सुरेश राठौर बताते हैं, "काम की मांग बहुत ज्यादा है। वाराणसी में प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम नागेपुर से जुड़ा हुआ मेहंदीगंज गाँव है, जहाँ गाँव में मनरेगा में काम के लिए एक साथ 500 लोग आ गए। ऐसे में सोशल डिस्टन्सिंग कैसे संभव हो सकता है। इसके अलावा अगर 500 लोग काम में लगायेंगे तो कितने दिन तक काम चल सकेगा, यह भी बड़ा सवाल है।"

सुरेश ने बताया, "सभी को काम मिले इसलिए चार-चार दिन के अंतराल में 100-100 लोगों को काम देने की व्यवस्था की गयी कि एक अंतराल में सभी को काम मिलता रहे, यही स्थिति और गांवों में भी है, कुछ गाँव में काम चल रहा है, कुछ में नहीं, हालाँकि अधिकारियों ने कहा है कि हम और काम लगाएंगे। चूँकि खेतों में भी काम नहीं बचा है इसलिए भी मनरेगा में लोग काम मांग रहे हैं।"

वाराणसी से करीब 400 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले में कोरोना वायरस के मरीज सामने आने से ग्रामीण इलाकों में अभी मनरेगा में काम नहीं शुरू किया जा सका है।

सीतापुर के पिसावां ब्लॉक के अल्लीपुर गाँव में जगन्नाथ और उनकी पत्नी रामबेती मनरेगा में साथ काम करते हैं। जगन्नाथ बताते हैं, "हम लोग काम मांगने के लिए गए थे मगर जिलाधिकारी के आदेश के कारण अभी काम रुका हुआ है। सरकार से राशन मिला था तो वही खा-पी रहे हैं, मगर हम लोगों के पास सब्जी खरीदने का भी पैसा नहीं है। किसान भी बिना पैसे कुछ नहीं देता।" जगन्नाथ चाहते हैं कि मनरेगा में जल्द काम मजदूरों को मिले तो उनके हाथ में कुछ रुपए आयें।

दूसरी ओर राज्यों में लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में मजदूरों की काम करते हुए तस्वीरें सोशल मीडिया में जारी हो रही हैं जहां मजदूर सोशल डिस्टनसिंग के साथ मास्क पहने काम करते नजर आ रहे हैं ताकि वे कोरोना वायरस से संक्रमित न हों। इनमें एक राज्य छत्तीसगढ़ भी है जहां काम शुरू हो चुका है लेकिन सोशल डिस्टनसिंग पर सवाल उठ रहे हैं।

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कई मजदूरों को कार्यस्थल पर नहीं मिली मास्क और सैनीटाइज़र की सुविधा। फोटो साभार : ट्विटर

छत्तीसगढ़ के लुंड्रा ब्लॉक के बिल्हामा गांव में करीब 450 लोगों के पास जॉब कार्ड हैं। इनमें से एक मजदूर धरम सहाय मनरेगा में काम मिलने से खुश हैं। वह बताते हैं, "यहां 20 अप्रैल से डबरी का काम दो जगह शुरू हो चुका है जहां 20-20 मजदूर काम कर रहे हैं।"

मगर काम की जगह पर मास्क और हाथ धोने की सुविधा मिलने के बारे में पूछने पर धरम सहाय कहते हैं, "हमें अभी कोई मास्क नहीं मिला, न ही हाथ धोने की सुविधा है।"

राज्य में मनरेगा के तहत कार्यस्थलों पर सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई एडवाइजरी का पालन न होने को लेकर सूरजपुर जिले के शिवेंद्र प्रताप सिंह ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जहां मनरेगा के काम हो रहा है वहां बिना मास्क पहने मजदूर काम कर रहे हैं, न ही उनके लिए सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई है।

इस आरोप पर केंद्र सरकार के वकील जवाब नहीं दे सके हैं और उन्होंने जवाब देने के हाई कोर्ट से मोहलत मांगी है। ऐसे में हाई कोर्ट की ओर से उन्हें जवाब देने के लिए उन्हें दो सप्ताह का समय दिया गया है।

हालाँकि केंद्र सरकार की ओर से जारी एडवाइजरी का पालन करते हुए अधिक से अधिक मजदूरों को मनरेगा में काम देने की कोशिश पश्चिम बंगाल में देखने को मिल रही है। पश्चिम बंगाल मजदूरों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध करने में लगातार तीन सालों से शीर्ष पर रहा है। पिछले साल राज्य में नौ लाख परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मनरेगा में दिया गया था।

पश्चिम बंगाल के प. मेदिनीपुर जिले के दांता ब्लॉक के धनहालिया गाँव में काम कर रहे मनरेगा मजदूर संदीप सिंघा बताते हैं, "यहाँ गाँव में तालाब का और नाला सफाई का काम शुरू किया गया है जिसमें करीब 200 लोग काम कर रहे हैं। वैसे तो गाँव में करीब 800 लोग मनरेगा में काम करते हैं मगर सरकार हर जॉब कार्ड से एक व्यक्ति को काम दे रही है।"

कार्यस्थल पर मास्क और सैनीटाइज़र की सुविधा मिलने के बारे में संदीप कहते हैं, "सभी मजदूरों के लिए मास्क और हाथ धोने की सुविधा की गई है। और गांवों में भी थोड़ा-थोड़ा काम हो रहा है। अब बस सरकार ने एक हफ्ते में मजदूरी देने की बात कही है, अगर मजदूरी मिल जाती है तो मजदूरों को काफी राहत मिलेगी।"

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