केंचुए जमीन का इंडीकेटर हैं, खेत में दिखने लगे तो किसानों की हो जाएगी बल्ले-बल्ले

Arvind Shukla | Feb 21, 2018, 12:16 IST

उत्तर प्रदेश में घाघरा नदी की तराई में बसे डीह गांव के किसान राम विजय पिछले कई वर्षों से परेशान हैं। कुछ साल पहले जिस एक एकड़ गेहूं में वो एक बोरी (50 किलो) यूरिया डालकर अच्छी फसल लेते थे उसमें अब 3-4 बोरी डालनी पड़ती हैं, फिर भी उतना उत्पादन नहीं होता। विजय कहते हैं, "उनकी मिट्टी में अब पहले जैसी दम नहीं रही।"

सिर्फ विजय ही नहीं भारत के लाखों का किसानों के खेतों का यही हाल है। पिछले कुछ वर्षों से वो उर्वरक (यूरिया-डीएपी) की मात्रा बढ़ाते जा रहे हैं लेकिन उत्पादन पहले जैसा नहीं मिल रहा है। इससे एक तरफ जहां खेती की लागत बढ़ी है दूसरी तरफ मिट्टी बेजान होती जा रही है।

कई सरकारी और गैर सरकारी रिपोर्ट, साइंस जर्नल ने लगातार ये बात उठाई है कि अंधाधुंध उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग से कृषि योग्य जमीन की उर्वराहीन यानि बीमार हो गई है। कृषि संस्थानों के एक संघ की पिछले वर्ष की रिपोर्ट के मुताबिक कुल 350 मिलियन हेक्टेयर की एक तिहाई यानि की 120 मिलियन हेक्टेयर भूमि पहले ही समस्याग्रस्त हो चुकी है। इतनी ही नहीं भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की संस्था स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर, अहमदाबाद की अगुवाई में हुए सर्वे में पता चला था कि देश की 32 फीसदी जमीन बेजान होती जा रही है और ये सब हुआ है उर्वरक और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से।

वर्मी कम्पोस्ट

तो क्या आने वाले दिनों में खेत में फसलें उगना बंद हो जाएंगी, क्योंकि उर्वरकों का इस्तेमाल तो लगातार जारी है ? इस प्रश्न के जवाब में राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद के सहायक निदेशक डॉ जगत सिंह बताते हैं, "हरितक्रांति के बाद मिट्टी की सेहत तेजी से बिगड़ी है। उर्वरकों के ज्यादा प्रयोग और कंपोस्ट (गोबर आदि) कम डाले जाने से जमीन का पीएच स्तर (अम्लीय-क्षारीय) बढ़ गया है। जबकि कार्बन तत्वों की मात्रा तेजी से घटी है। हमने जमीन का पूरी शक्ति खींच ली है, अब जमीन का वही हाल है जैसा ज्यादा दवाएं खाने के बाद शरीर का होता है।'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो कहते हैं, " पिछले 60 सालों का किसान का जमीन से मोहभंग हुआ है। पहले जमीन और किसान के बीच आत्मीयता का रिश्ता था, अब किसान उसका सिर्फ इस्तेमाल करता है। आप सरल शब्दों में ये समझ लीजिए इस मिट्टी में केछुए नहीं है उसकी सेहत दुरुस्त नहीं। केचुए सेहतमंद जमीन के इंडीकेटर हैं।'

जमीन की हालत पर बात करने पर पूर्व भू वैज्ञानिक और कनाडा में 5000 साल पुराना जीवाश्म खोजने वाले डॉ. एसबी मिश्र आज से 48 साल पहले के दौर में वापस ले जाते हैं। वो बताते हैं, "अंग्रेजी खादों (उर्वरक) का उपयोग 1970 के बाद बढ़ा क्योंकि उसी साल मैक्सिन गेहूं और थाईलैंड से छोटे धान आए थे। इन फसलों को ज्यादा पानी और ज्यादा पोषक तत्व चाहिए थे, जिसके चलते मिट्टी के कुछ चुने हुए पोषत तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और जिंद आदि तेजी से खर्च हुए। जिससे मिट्टी की संरचना (कंपोजीशन) बदल गई, किसान खाद की मात्रा बढ़ाते गए और फसल लेते गए लेकिन एक सीमा के बाद जमीन में उपज बंद हो गई। जिन इलाकों (पंजाब-हरियाणा) में इन चीजों को सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ था,वहां सबसे पहले विपरीत नतीजे आए।'

लेकिन अब आगे क्या होगा.. ये सवाल करने पर डॉ. जगत उम्मीद जताते हुए कहते हैं, मिट्टी सिर्फ भारत की नहीं बिगड़ी, पूरी दुनिया में ऐसा हुआ, लेकिन विदेशों में लोगों ने जल्द आदतें सुधार लीं, हमारे यहां भी राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। गोबर को खेत तक पहुंचाना होगा। फसलों के अपशिष्ट खेत में ही सड़ाने होंगे।'

बाहर से मंगाकर डीएपी यूरिया आदि उर्वरकों को डालने डालने के नुकसान गिनाते हुए जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत उत्तर प्रदेश के भारत भूषण त्यागी कहते है, "इन खादों का उपयोग कर किसानों ने अपने पैर में कुल्हाड़ी मारी है। पैसा लगाकर खेत और सेहत दोनों बर्बाद किए। जबकि प्रकृति को इनकी जरुरत नहीं। धरती में सबकुछ पहले से है। अब आप को खेती करने की समझ होनी चाहिए। मौसम और मिट्टी के मुताबिक खेती करिए। मैंने पिछले 7-8 साल से किसी खाद का अपने खेतों में इस्तेमाल नहीं किया, जबकि आम किसानों के मुकाबले प्रति एकड़ मुनाफा मेरा 4-5 गुना ज्यादा है।" उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में रहने वाले भारत भूषण त्यागी मिश्रित और सहफसली खेती करते हैं। यानि एक खेत में एक साथ कई फसलें।

जमीन की सेहत सुधारने के लिए सरकारी और गैर सरकारी कई प्रयासों ने पिछले कुछ वर्षों में रफ्तार पकड़ी है। एनडीए सरकार ने 2014 में सत्ता में आते ही स्वाइल हेल्थ कार्ड (Soil Health Card मृदा स्वास्थ कार्ड)

किसानों को सहफसली खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है तो कृषि विभाग और इफको जैसी संस्थाएं राइबोवियम कल्चर को बढ़ावा दे रही हैं। कई जागरुक किसान गाय आधारित खेती, जैविक खेती और शून्य बजट प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण दे रहे हैं।

क्योंकि गोबर को सड़ाने में समय लगता था और एक के बाद एक कई फसल लेने में कई फसल के अवशेष बाधा बन रहे थे, इसलिए कृषि मंत्रालय राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से उन तरीकों को किसानों तक पहुंचा रहे हैं, जिससे मिट्टी की सेहत सुधरे। राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र के सहायक निदेशक डॉ. जगत बताते हैं, हमने पारंपरिक नुस्खों को आधुनिक शोध के साथ मिलकार कई उपाय खोजे हैं, वेस्ट डिकंपोजर उनमें से एक है। इससे कचरा तेजी से सड़ता है। इसमें मौजूद सूक्ष्य जीवाणु (carbon in soil) जमीन की सेहत को तेजी से दुरुस्त करते हैं।

वेस्ट डिकंपोजर का वैज्ञानिक आधार देते हुए वो बताते हैं, पौधे किसी उर्वरक को सीधे तो ग्रहण नहीं करते हैं, जमीन में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु खादों से पोषक तत्व निकालकर उसे पहुंचाते हैं, लेकिन उर्वरक की मात्रा ज्यादा होने से जीवाणु कम हुए तो उर्वरक के तत्व (नाइट्रोजन, लौह, तांबा, जस्ता, जिंक) जमीन में ठोस होकर जमा होने लगते हैं, इससे मिट्टी भी सख्त और कम उपजाऊ हो जाती है। इससे जमीन में कार्बन भी ज्यादा संचित होती है, ये पूरी प्रक्रिया ग्लोबर वार्मिग को भी बढ़ाती है।'

इसका उपाय बताते हुए वो कहते हैं, "लेकिन जैविक कल्चर (जैसे वेस्ट डिकंपोजर) के डालने से इसमें मौजूद सूक्ष्म जीव सेल्लुलोज खाकर बढ़ते हैं और वीक आर्गेनिक एसिड (हल्के जैविक एसिड यानि जैव पोषक तत्व) का निर्माण करते हैं, जिसमें उर्वरकों के ठोस तत्व घुल जाते हैं और फिर से जमीन में बिघर कर फसलों को ताकत देते हैं। जमीन में कार्बन तत्व बढ़ेंगे तो केचुएं पैदा होंगे, केचुए होंगे तो जमीन में छेद होंगे, यानि जमीन के फेफड़ों में हवा जाएगी यानि जमीन पोषक से भरपूर, स्वस्थ और ज्यादा उपज देने वाली होगी।'

जमीन को बंजर होने से बचाने के लिए ये करें

  • सबसे पहले मिट्टी की जांच कराएं, उसके मुताबिक उर्वरक डालें।
  • खेत में देसी खादों (गोबर, गोमूत्र, फसलों के अवशेष, हरी खादी) का इस्तेमाल करें, ताकि जीवाश्म कम न हों।
  • जिस जमीन में कार्बन तत्व .5 होते हैं वो जमीन उपजाउ होती है और जिसमें ये तत्व 0.75 होते हैं वो जैविक खेती योग्य हो जाती है।
  • मिश्रित खेती करें... गेहू से के साथ चना, गन्ने के सरसों आदि.. अरहर चना जैसी फसलें क्रमवार फसलों में बोएं।
  • कीट और फंफूदनाशी का कम प्रयोग करें, जरुरत होने पर जैविक कीटनाशक बनाएं।
  • खेती में ऊपर की करीब 4 इंच मिट्टी में खेती होती है, इसलिए कभी खेतों में पराली आदि न जलाएं, इससे जमीन की उपजाऊ परत और सूक्ष्म जीव दोनों नष्ट हो जाते हैं।

Tags:
  • Farming
  • Organic manure
  • Earthworm
  • Vermi Compost
  • story