जंगल ही खेत, प्रकृति ही गुरु: गोवा के एक किसान का खेती का अनोखा मॉडल

Gaon Connection | Nov 25, 2025, 17:48 IST

गोवा की पहाड़ियों में एक किसान पिछले 38 सालों से नंगे पाँव प्राकृतिक खेती कर रहा है- बिना जुताई, बिना केमिकल, बिना पेड़ काटे। संजय पाटिल ने 10 एकड़ जंगल को खेती में बदल दिया और साबित किया कि प्रकृति को न छेड़ें, तो वह दोगुना लौटाती है।

घने जंगल की पगडंडियों पर नंगे पाँव चलते ये कदम… 38 सालों से बिना थके, बिना रुके, बस चलते जा रहे हैं। कभी कंकड़ चुभे होंगे, कभी पत्ती की नोक लगी होगी, पर ये पैर रुके नहीं, क्योंकि ये सिर्फ पाँव नहीं हैं, ये संकल्प हैं… एक ऐसी खेती का संकल्प, जो प्रकृति को चोट नहीं पहुँचाती।

गोवा के सावई-वेरे गाँव में रहते हैं संजय पाटिल और जिस पहाड़ी जंगल में वे घूमते हैं, वही जंगल उनका खेत है। जी हाँ, खेत! जहाँ लोग हल चलाते हैं, वहाँ संजय ने जंगल को ही खेती में बदल दिया।

यह कोई आम खेती नहीं। यह Natural Farming (प्राकृतिक खेती) है और उसका भी सबसे सादा, सबसे सच्चा रूप। “Do Nothing… but never Do Anything Against Nature” (कुछ भी न करो, लेकिन प्रकृति के ख़िलाफ कुछ मत करो)

संजय पाटिल का फार्मूला सुनकर लोग अक्सर हँस पड़ते हैं। “कुछ मत करो”, यह कैसा खेती का तरीका है?

पर संजय का ‘कुछ मत करो’ आधा वाक्य है। पूरा वाक्य है- “Do Nothing Against Nature.” - प्रकृति के खिलाफ कुछ मत करो।

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यही सिद्धांत है उनकी 10 एकड़ की खेती का। यहाँ कुछ फेंका नहीं जाता, कुछ जलाया नहीं जाता, कुछ काटा नहीं जाता। जो घास बेकार लगती है, वही पेड़ों की जड़ों के पास डाल दी जाती है और धीरे-धीरे खाद में बदल जाती है। यहाँ कचरा नहीं बनता, सिर्फ पोषण बनता है।

नारियल, सुपारी, अनानास से लेकर काली मिर्च तक हर पौधा बिना केमिकल, बिना जहरीले स्प्रे और बिना जुताई के उग रहा है। और उपज? सामान्य खेती से कहीं बेहतर और गुणवत्ता? बहुत उम्दा।

38 साल पहले सब कहते थे-“पागलपन है”

संजय पाटिल याद करते हुए कहते हैं, “जब मैंने कहा कि मैं जमीन नहीं जोतूंगा, डाली नहीं काटूंगा, घास नहीं जलाऊंगा—लोग मुझे पागल समझते थे। सरकार भी भरोसा नहीं करती थी। सबको लगता था ये मूर्खता है।”

लेकिन प्रकृति समझती है कौन उसका मित्र है और कौन शत्रु। वक्त के साथ जंगल ने संजय का साथ दिया। पेड़ों ने छाया दी, जमीन ने उर्वरता दी, और पक्षियों ने कीट नियंत्रण।

उनके बेटे सुमय कहते हैं, “फिजिबिलिटी के हिसाब से भी नेचुरल फार्मिंग केमिकल फार्मिंग से बेहतर है। इन्वेस्टमेंट कम, मिट्टी स्वस्थ, इंसान स्वस्थ।”

एक गाय, 10 एकड़ खेत-बस इतना काफी

संजय बताते हैं, “मेरे 10 एकड़ खेत के लिए सिर्फ एक गाय का गोबर और गोमूत्र ही काफी है।” यह वाक्य भारतीय खेती की असली जादूगरी को समझाता है। जहाँ किसान कर्ज़ में डूबते हैं, वहीं एक गाय 10 एकड़ की जान बन सकती है, अगर प्रकृति पर भरोसा किया जाए।

वो पहाड़ जहाँ बारिश का पानी बह जाता था… आज वहीं बहती है जीवन की धारा

पहले इस पहाड़ी पर बारिश का पानी सीधे ढलान से नीचे बह जाता था। नमी नहीं बचती थी। पानी कभी टिकता नहीं था। पर संजय ने पहाड़ की भाषा समझी और पहाड़ ने बदले में संजय को पानी लौटा दिया।

उन्होंने बोरवेल सीधी नहीं, आड़ी खुदवाई ताकि पानी बहकर अंदर की ओर जाए, नीचे नहीं। फिर अपने हाथों से खाइयाँ खोदीं। उनमें रबर की परत बिछाई, ताकि पानी रिसे नहीं, रुके।

संजय बताते हैं, “ये खाई बारिश का पानी सोख लेती है। बारिश के बाद हम पंप चलाकर पानी वापस डालते हैं। ये खाई दिसंबर से फरवरी तक खुली रहती है—इससे हमारे सभी झरने ज़िंदा रहते हैं।”

यहाँ पहाड़ के गड्ढों से पानी बहकर एक तालाब में जमा होता है और नतीजा? मई-जून की भीषण गर्मी में भी पानी की एक बूंद की कमी नहीं पड़ती।

प्रकृति को छेड़ा नहीं… इसलिए प्रकृति ने लौटाया दोगुना

संजय ने कभी पेड़ों को काटा नहीं, जमीन को जहर नहीं दिया, मिट्टी को नहीं उलझाया और आज वही मिट्टी उन्हें भरपूर देती है, खाद, फसल, नमी, और जीवन।

उनकी कहानी उन लाखों किसानों के लिए सन्देश है, जो केमिकल खेती में अपनी मिट्टी, पानी और सेहत खोते जा रहे हैं।

संजय की पहाड़ी कहती है, “वापस आओ… प्रकृति से जुड़ो… गाँव से जुड़ो… मिट्टी से दोस्ती करो।”