भेड़-बकरी पालकों के लिए अलर्ट: ‘गोट प्लेग’ से बढ़ता खतरा, जानिए कैसे बचें PPR से

Gaon Connection | Nov 05, 2025, 19:13 IST

PPR या “गोट प्लेग” भेड़-बकरियों में फैलने वाला घातक वायरस है, जो छोटे किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। भारत सरकार 2030 तक इस बीमारी को खत्म करने के मिशन पर काम कर रही है। टीकाकरण, साफ-सफाई और जागरूकता ही इसका सबसे प्रभावी बचाव है।

भेड़ और बकरी पालन भारत के करोड़ों छोटे किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है। लेकिन इन दिनों एक ऐसी बीमारी तेजी से फैल रही है, जो न सिर्फ इन जानवरों के लिए घातक है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ा खतरा बन चुकी है। इस बीमारी का नाम है पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (PPR) - जिसे आम भाषा में “गोट प्लेग” या बकरियों का प्लेग कहा जाता है। यह एक अत्यंत संक्रामक और जानलेवा रोग है, जो मॉर्बिली वायरस (Morbillivirus) के कारण होता है। यही वायरस परिवार इंसानों में खसरा जैसी बीमारी फैलाने के लिए भी ज़िम्मेदार है।

संक्रमण होने पर जानवरों को तेज बुखार आता है, मुँह और होंठों पर छाले या घाव बन जाते हैं, नाक और मुँह से झाग या स्राव निकलने लगता है। कई बार जानवर खाना पीना छोड़ देते हैं, और दस्त या निमोनिया जैसी जटिलताएं उभर आती हैं। यह वायरस इतनी तेजी से फैलता है कि एक संक्रमित जानवर पूरे झुंड को बीमार कर सकता है। कुछ ही दिनों में मौतें शुरू हो जाती हैं और किसान की सालभर की मेहनत पर पानी फिर जाता है।

भारत में बीमारी की स्थिति

भारत में PPR का असर कई दशकों से बना हुआ है। राष्ट्रीय पशु रोग सूचना प्रणाली (NIVEDI) के आँकड़े बताते हैं कि 1995 से 2019 के बीच देश में 8,000 से अधिक बार यह बीमारी फैल चुकी है। इस दौरान करीब 95,000 से ज़्यादा भेड़ और बकरियाँ मारी गईं — जिनमें लगभग 60% बकरियाँ और 24% भेड़ें थीं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, इस बीमारी से देश को हर साल लगभग ₹180 करोड़ का आर्थिक नुकसान होता है। नुकसान केवल पशु मृत्यु से नहीं होता, बल्कि दूध, मांस, ऊन और प्रजनन क्षमता में कमी से भी किसानों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित होती है।

छोटे किसानों पर सबसे बड़ा असर

ग्रामीण भारत में ज़्यादातर पशुपालक छोटे किसान हैं, जिनके पास 10–15 भेड़-बकरियाँ होती हैं। यही उनकी आमदनी का प्रमुख साधन है। लेकिन ये पशु अक्सर खुले में चरते हैं, जहाँ विभिन्न झुंडों का संपर्क एक-दूसरे से हो जाता है। यही वजह है कि संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल जाता है।

ppr in goats treatment (2)


कई बार जानकारी की कमी या आर्थिक तंगी के कारण किसान अपने जानवरों का टीकाकरण नहीं कराते। जब एक बार बीमारी फैलती है, तो पूरा झुंड खत्म हो जाता है और परिवार की आय पर सीधा असर पड़ता है। PPR इस लिहाज से सिर्फ़ पशु स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि किसान की जीविका सुरक्षा का मामला भी है।

सरकार की पहल: रोकथाम ही सबसे बेहतर उपाय

इस खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने “पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम (LHDCP)” के तहत PPR को 2030 तक पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है। पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) के अनुसार, अब तक देशभर में करोड़ों भेड़ और बकरियों का टीकाकरण किया जा चुका है।

PPR का टीका एक बार लगाने पर लगभग तीन वर्ष तक सुरक्षा देता है। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में नि:शुल्क टीकाकरण शिविर आयोजित कर रही है ताकि कोई भी पशुपालक पीछे न छूटे। पशु चिकित्सक और स्थानीय पंचायतें भी जागरूकता कार्यक्रम चला रही हैं ताकि किसान अपने झुंड को समय पर सुरक्षित कर सकें।

सफाई और सावधानी से बड़ी रोकथाम कोई नहीं

बीमारी से बचाव केवल टीके तक सीमित नहीं है। पशुपालकों को अपने पशुशाला या शेड की नियमित सफाई करनी चाहिए। गंदगी और नमी वायरस के पनपने की सबसे बड़ी वजह होती है। जानवरों के पानी और चारे के बर्तन रोज़ धोएं, और बीमार पशु को तुरंत स्वस्थ झुंड से अलग कर दें।

संक्रमित पशु के मुँह, नाक और मल से वायरस फैलता है, इसलिए शेड की साफ-सफाई और रोगी पशु से दूरी बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। अगर समय रहते संक्रमण पहचाना जाए तो बीमारी फैलने से पहले ही रोकी जा सकती है।

किसानों के लिए सुझाव

यदि आपके क्षेत्र में अभी तक PPR टीकाकरण नहीं हुआ है, तो आप अपने नज़दीकी पशु चिकित्सा अधिकारी, ग्राम पंचायत या कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) से संपर्क कर सकते हैं। सरकार की योजना के तहत टीके मुफ़्त उपलब्ध हैं। समय पर टीकाकरण कराने से न केवल आपके पशु सुरक्षित रहेंगे, बल्कि आसपास के गांवों में बीमारी फैलने का खतरा भी कम होगा।

PPR जैसी बीमारी भले ही वायरस से फैलती हो, लेकिन इसका असली समाधान हमारे साझा प्रयासों और जागरूकता में है। अगर किसान सतर्क रहें, समय पर टीकाकरण कराएँ और साफ-सफाई बनाए रखें, तो इस रोग को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

वैश्विक मोर्चे पर भारत की भूमिका

भारत अब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) के साथ मिलकर “Global Strategy for Control and Eradication of PPR” अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। लक्ष्य है — 2030 तक PPR को दुनिया से पूरी तरह खत्म करना।

इस दिशा में ICAR और राज्य पशुपालन विभाग मिलकर निगरानी, सर्वेक्षण और टीकाकरण के माध्यम से तेजी से प्रगति कर रहे हैं। भारत न सिर्फ अपने देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पशु स्वास्थ्य सुरक्षा का मजबूत उदाहरण पेश कर रहा है।

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