रबी की बुवाई में रिकॉर्ड बढ़ोतरी: 2025–26 में 8 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा इज़ाफा
Gaon Connection | Dec 23, 2025, 15:34 IST
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रबी सीजन 2025–26 में खेती के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चना, सरसों और गेहूं जैसी प्रमुख फसलों के चलते कुल रबी क्षेत्रफल 580.70 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है।
<p>कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, कुल रबी फसल क्षेत्रफल बढ़कर 580.70 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 572.59 लाख हेक्टेयर थ<br></p>
देश के खेतों में इस बार रबी सीज़न कुछ अलग कहानी लिख रहा है। 19 दिसंबर 2025 तक जारी सरकारी आँकड़े बताते हैं कि 2025-26 में रबी फसलों की बुवाई पिछले वर्ष की तुलना में 8 लाख हेक्टेयर से अधिक बढ़ गई है। यह सिर्फ़ एक सांख्यिकीय वृद्धि नहीं है, बल्कि यह संकेत है किसानों के उस भरोसे का, जो बेहतर मौसम, नीतिगत समर्थन और फसलों के अनुकूल बाजार संकेतों से उपजा है।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, कुल रबी फसल क्षेत्रफल बढ़कर 580.70 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 572.59 लाख हेक्टेयर था। यह बढ़ोतरी ऐसे समय में दर्ज की गई है, जब जलवायु अस्थिरता और लागत बढ़ने जैसी चुनौतियाँ लगातार किसानों को प्रभावित कर रही हैं।
रबी सीजन की रीढ़ माने जाने वाले गेहूं की बुवाई में इस साल स्थिर लेकिन सकारात्मक बढ़त देखने को मिली है। 2025-26 में गेहूं का क्षेत्रफल 301.63 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से अधिक है। गेहूं में यह बढ़ोतरी बताती है कि किसानों का भरोसा अभी भी इस फसल पर कायम है, खासकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सरकारी खरीद और अपेक्षाकृत स्थिर उत्पादन के कारण।
इस रबी सीजन की सबसे उल्लेखनीय कहानी दलहन फसलों की है। कुल दलहन क्षेत्रफल में 3.72 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका चना फसल की रही, जिसकी बुवाई में 4.89 लाख हेक्टेयर की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि चने की खेती में यह उछाल बेहतर कीमतों, कम पानी की जरूरत और मृदा स्वास्थ्य सुधारने की इसकी क्षमता के कारण आया है। इसके अलावा सरकारी प्रोत्साहन और पोषण सुरक्षा से जुड़ी नीतियों ने भी किसानों को दलहन की ओर आकर्षित किया है।
हालांकि मसूर, मटर, कुलथी और कुछ अन्य दालों के क्षेत्रफल में हल्की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन कुल मिलाकर दलहन क्षेत्र का बढ़ना देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिहाज़ से एक सकारात्मक संकेत है।
तिलहन फसलों के क्षेत्रफल में भी इस बार मजबूती दिखी है। सफेद सरसों और सरसों की वजह से तिलहन का कुल क्षेत्रफल 93.33 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है।
सरसों की बढ़ती खेती का सीधा संबंध खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की सरकारी रणनीति से भी है। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए किसानों को सरसों, कुसुम और अन्य तिलहनों की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है। हालांकि मूंगफली और अलसी जैसी कुछ फसलों के क्षेत्रफल में गिरावट आई है, लेकिन सरसों ने कुल तिलहन क्षेत्र को संतुलन में बनाए रखा है।
श्री अन्न और मोटे अनाजों का कुल क्षेत्रफल 45.66 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है। इसमें मक्का और जौ की खेती में वृद्धि हुई है, जबकि ज्वार में कुछ कमी देखने को मिली। पोषण, जलवायु अनुकूलता और कम लागत के कारण मोटे अनाजों को भविष्य की फसल माना जा रहा है, और यह रुझान आने वाले वर्षों में और मजबूत हो सकता है।
रबी चावल का क्षेत्रफल भी बढ़कर 13.35 लाख हेक्टेयर हो गया है। यह संकेत देता है कि सिंचाई सुविधाओं वाले इलाकों में किसान रबी चावल को एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, कुल रबी फसल क्षेत्रफल बढ़कर 580.70 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 572.59 लाख हेक्टेयर था। यह बढ़ोतरी ऐसे समय में दर्ज की गई है, जब जलवायु अस्थिरता और लागत बढ़ने जैसी चुनौतियाँ लगातार किसानों को प्रभावित कर रही हैं।
गेहूं बना रबी का मजबूत स्तंभ
दलहन में मजबूती, चने ने खींचा ग्राफ ऊपर
विशेषज्ञ मानते हैं कि चने की खेती में यह उछाल बेहतर कीमतों, कम पानी की जरूरत और मृदा स्वास्थ्य सुधारने की इसकी क्षमता के कारण आया है। इसके अलावा सरकारी प्रोत्साहन और पोषण सुरक्षा से जुड़ी नीतियों ने भी किसानों को दलहन की ओर आकर्षित किया है।
हालांकि मसूर, मटर, कुलथी और कुछ अन्य दालों के क्षेत्रफल में हल्की गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन कुल मिलाकर दलहन क्षेत्र का बढ़ना देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिहाज़ से एक सकारात्मक संकेत है।
तिलहन में सरसों की चमक
सरसों की बढ़ती खेती का सीधा संबंध खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की सरकारी रणनीति से भी है। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए किसानों को सरसों, कुसुम और अन्य तिलहनों की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है। हालांकि मूंगफली और अलसी जैसी कुछ फसलों के क्षेत्रफल में गिरावट आई है, लेकिन सरसों ने कुल तिलहन क्षेत्र को संतुलन में बनाए रखा है।