लाल चंदन किसानों को 3 करोड़ का लाभ: जैव विविधता संरक्षण से आजीविका तक नई राह
Gaon Connection | Nov 04, 2025, 17:18 IST
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने आंध्र प्रदेश के 198 लाल चंदन किसानों और एक शिक्षण संस्थान को 3 करोड़ रुपये जारी किए हैं। ये राशि "मूल्यांकन और लाभ साझा करने" ढांचे के तहत दी गई है, जो जैव विविधता संरक्षण और ग्रामीण समुदायों की आजीविका सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
भारत की सबसे कीमती वन प्रजातियों में से एक - लाल चंदन (Pterocarpus santalinus) - न केवल जैविक दृष्टि से, बल्कि आर्थिक रूप से भी अत्यंत मूल्यवान है। अब इसी लाल चंदन की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने आंध्र प्रदेश में इस पेड़ के संरक्षण और सतत उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए 3 करोड़ रुपये की राशि जारी की है।
ये राशि "मूल्यांकन और लाभ साझा करने (Access and Benefit Sharing - ABS)" तंत्र के अंतर्गत दी गई है, जो भारत के जैव विविधता अधिनियम, 2002 का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पहल का उद्देश्य है — स्थानीय समुदायों और किसानों को उस जैविक संपदा के संरक्षण के लिए आर्थिक प्रोत्साहन देना, जिससे वे जुड़े हैं।
48 गाँवों के किसानों को मिला लाभ
इस योजना के लाभार्थी आंध्र प्रदेश के चार जिलों - चित्तूर, नेल्लोर, तिरुपति और कडप्पा - के 48 गाँवों के 198 किसान हैं। इसके अलावा आंध्र विश्वविद्यालय को भी एक शैक्षणिक संस्था के रूप में लाभ दिया गया है।
किसानों को दी गई राशि उनकी उपज और आपूर्ति पर आधारित है — यानी जिसने जितनी अधिक मात्रा में लाल चंदन की लकड़ी उपयोगकर्ताओं को दी, उसे उतना ही अधिक लाभ मिला। किसी को ₹33,000 से लेकर ₹22 लाख तक की राशि प्राप्त हुई। उल्लेखनीय बात यह है कि किसानों को यह लाभ लकड़ी के विक्रय मूल्य से भी अधिक मिला, जो इस नीति की सफलता और पारदर्शिता को दर्शाता है।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी और सशक्तिकरण
इस योजना से जुड़े गाँव जैसे — एगुवेरेड्डी, वारिपल्ले, नल्लामनुक्लुवा, वेंगलराजुकुप्पम, पेरुमल्लापल्ली, मम्बेडु, सीतारामपुरम, मितापलेम, चिन्नाटाय्युरु, थल्लापल्ली, चेरलोपल्ली, पुलिकुंद्रम, पिचातुर, गडंकी, कल्याणपुरम, वेंकटमपल्ली, पुथनवारिपल्ली, वल्लुरुपल्ली और कई अन्य — यह दिखाते हैं कि स्थानीय समुदाय कैसे लाल चंदन जैसी दुर्लभ और कीमती प्रजाति के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
ये किसान न केवल इस पेड़ को उगाते हैं, बल्कि इसकी स्थानीय पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं। अब जब उन्हें उनके योगदान का सीधा आर्थिक लाभ मिल रहा है, तो यह मॉडल संरक्षण और आजीविका दोनों का संतुलित उदाहरण बन गया है।
संरक्षण से लेकर कानूनी व्यापार तक
एनबीए की यह पहल 2015 में गठित लाल चंदन विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर आधारित है। इस समिति ने “लाल चंदन के संरक्षण, सतत उपयोग और उचित लाभ साझा करने की नीति” तैयार की थी।
इस नीति का एक बड़ा परिणाम 2019 में देखने को मिला, जब विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए खेती वाले स्रोतों से लाल चंदन के निर्यात की अनुमति दी। यह कदम न केवल कानूनी व्यापार को बढ़ावा देता है, बल्कि अवैध कटाई और तस्करी को भी रोकने में मदद करता है।
इससे पहले, एनबीए ने आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के वन विभागों को 48 करोड़ रुपये तथा तमिलनाडु के किसानों को 55 लाख रुपये जारी किए थे। यह दिखाता है कि यह केवल एक राज्य की पहल नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के वन-संपन्न क्षेत्रों में साझा संरक्षण प्रयासों की श्रृंखला है।
जैव विविधता की रक्षा से विकास की दिशा में
यह पहल इस बात का उदाहरण है कि कैसे नीतिगत उपकरण जैसे “Access and Benefit Sharing (ABS)” जैव विविधता को सिर्फ पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक आजीविका विकल्प बना सकते हैं।
एनबीए का यह कदम स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाते हुए यह सुनिश्चित करता है कि वे जैविक संसाधनों के असली संरक्षक के रूप में उनके उचित लाभ और अधिकारों को प्राप्त करें।
यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारता है, बल्कि भारत की सबसे प्रतिष्ठित और लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक — लाल चंदन — के दीर्घकालिक संरक्षण को भी मजबूत करता है।
जैव विविधता से जुड़ी आशा की नई कहानी
आंध्र प्रदेश के इन किसानों के लिए यह सिर्फ आर्थिक मदद नहीं, बल्कि प्राकृतिक संपदा के सम्मान की पहचान है। एनबीए की यह पहल दिखाती है कि जब विज्ञान, नीति और समुदाय साथ आते हैं, तो जैव विविधता का संरक्षण सिर्फ पर्यावरणीय लक्ष्य नहीं, बल्कि स्थानीय विकास और आत्मनिर्भरता की प्रेरक कहानी बन जाता है।
ये राशि "मूल्यांकन और लाभ साझा करने (Access and Benefit Sharing - ABS)" तंत्र के अंतर्गत दी गई है, जो भारत के जैव विविधता अधिनियम, 2002 का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस पहल का उद्देश्य है — स्थानीय समुदायों और किसानों को उस जैविक संपदा के संरक्षण के लिए आर्थिक प्रोत्साहन देना, जिससे वे जुड़े हैं।
48 गाँवों के किसानों को मिला लाभ
इस योजना के लाभार्थी आंध्र प्रदेश के चार जिलों - चित्तूर, नेल्लोर, तिरुपति और कडप्पा - के 48 गाँवों के 198 किसान हैं। इसके अलावा आंध्र विश्वविद्यालय को भी एक शैक्षणिक संस्था के रूप में लाभ दिया गया है।
किसानों को दी गई राशि उनकी उपज और आपूर्ति पर आधारित है — यानी जिसने जितनी अधिक मात्रा में लाल चंदन की लकड़ी उपयोगकर्ताओं को दी, उसे उतना ही अधिक लाभ मिला। किसी को ₹33,000 से लेकर ₹22 लाख तक की राशि प्राप्त हुई। उल्लेखनीय बात यह है कि किसानों को यह लाभ लकड़ी के विक्रय मूल्य से भी अधिक मिला, जो इस नीति की सफलता और पारदर्शिता को दर्शाता है।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी और सशक्तिकरण
इस योजना से जुड़े गाँव जैसे — एगुवेरेड्डी, वारिपल्ले, नल्लामनुक्लुवा, वेंगलराजुकुप्पम, पेरुमल्लापल्ली, मम्बेडु, सीतारामपुरम, मितापलेम, चिन्नाटाय्युरु, थल्लापल्ली, चेरलोपल्ली, पुलिकुंद्रम, पिचातुर, गडंकी, कल्याणपुरम, वेंकटमपल्ली, पुथनवारिपल्ली, वल्लुरुपल्ली और कई अन्य — यह दिखाते हैं कि स्थानीय समुदाय कैसे लाल चंदन जैसी दुर्लभ और कीमती प्रजाति के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
ये किसान न केवल इस पेड़ को उगाते हैं, बल्कि इसकी स्थानीय पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं। अब जब उन्हें उनके योगदान का सीधा आर्थिक लाभ मिल रहा है, तो यह मॉडल संरक्षण और आजीविका दोनों का संतुलित उदाहरण बन गया है।
संरक्षण से लेकर कानूनी व्यापार तक
एनबीए की यह पहल 2015 में गठित लाल चंदन विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर आधारित है। इस समिति ने “लाल चंदन के संरक्षण, सतत उपयोग और उचित लाभ साझा करने की नीति” तैयार की थी।
इस नीति का एक बड़ा परिणाम 2019 में देखने को मिला, जब विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए खेती वाले स्रोतों से लाल चंदन के निर्यात की अनुमति दी। यह कदम न केवल कानूनी व्यापार को बढ़ावा देता है, बल्कि अवैध कटाई और तस्करी को भी रोकने में मदद करता है।
इससे पहले, एनबीए ने आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के वन विभागों को 48 करोड़ रुपये तथा तमिलनाडु के किसानों को 55 लाख रुपये जारी किए थे। यह दिखाता है कि यह केवल एक राज्य की पहल नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के वन-संपन्न क्षेत्रों में साझा संरक्षण प्रयासों की श्रृंखला है।
जैव विविधता की रक्षा से विकास की दिशा में
यह पहल इस बात का उदाहरण है कि कैसे नीतिगत उपकरण जैसे “Access and Benefit Sharing (ABS)” जैव विविधता को सिर्फ पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक आजीविका विकल्प बना सकते हैं।
एनबीए का यह कदम स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाते हुए यह सुनिश्चित करता है कि वे जैविक संसाधनों के असली संरक्षक के रूप में उनके उचित लाभ और अधिकारों को प्राप्त करें।
यह न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारता है, बल्कि भारत की सबसे प्रतिष्ठित और लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक — लाल चंदन — के दीर्घकालिक संरक्षण को भी मजबूत करता है।
जैव विविधता से जुड़ी आशा की नई कहानी
आंध्र प्रदेश के इन किसानों के लिए यह सिर्फ आर्थिक मदद नहीं, बल्कि प्राकृतिक संपदा के सम्मान की पहचान है। एनबीए की यह पहल दिखाती है कि जब विज्ञान, नीति और समुदाय साथ आते हैं, तो जैव विविधता का संरक्षण सिर्फ पर्यावरणीय लक्ष्य नहीं, बल्कि स्थानीय विकास और आत्मनिर्भरता की प्रेरक कहानी बन जाता है।