वैज्ञानिकों ने खोजा हल, आर्सेनिक से नहीं प्रभावित होगी धान की खेती

Divendra Singh | May 15, 2018, 13:06 IST

चावल खाने वाले लोगों में आर्सेनिक से कई तरह की बीमारियां होने की समस्या बढ़ जाती है, क्योंकि धान की खेती में सबसे ज्यादा सिंचाई होती है, इसलिए पानी से आर्सेनिक फसल उत्पाद में पहुंच जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि कैसे इस समस्या से निपटा जा सकता है।

चावल खाने वाले लोगों में आर्सेनिक से कई तरह की बीमारियां होने की समस्या बढ़ जाती है, क्योंकि धान की खेती में सबसे ज्यादा सिंचाई होती है, इसलिए पानी से आर्सेनिक फसल उत्पाद में पहुंच जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि कैसे इस समस्या से निपटा जा सकता है।
देश में पश्चिम बंगाल, बिहार उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, असम, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश में आर्सेनिक की समस्या है। इनमें सबसे ज्यादा प्रभावति राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखण्ड हैं। कर्नाटक के इस किसान ने विकसित की धान की नई किस्म, अच्छी पैदावार के साथ ही स्वाद में है बेहतर
खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर व कल्याणी विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि धान के बीज को बीस घंटे तक सोडियम सेलेनाइट में भिगोने पर धान की फसल पर आर्सेनिक के दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। ऐसे में अगर धान के बीज को सेलेनियम में भिगोकर बुवाई करने से फसल पर प्रतिकूल असर पड़ता है। खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर के वैज्ञानिक डॉ. दिबाकर घोष बताते हैं, "आर्सेनिक पानी के जरिए पौधों तक पहुंचता है, उसके बाद अनाज के जरिए खाने की प्लेट में पहुंचता है। सेलेनियम में धान के बीज को भिगोने पर किसानों के लिए आर्सेनिक मुक्त चावल उपलब्ध हो जाता है। कम पानी में धान की ज्यादा उपज के लिए करें धान की सीधी बुवाई
गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र बेसिन पीने के पानी व सिंचाई का मुख्य स्रोत है, लेकिन आर्सेनिक एक बड़ी समस्या है। इंसानों में आर्सेनिक की समस्या प्रदूषित पानी के इस्तेमाल के साथ ही आर्सेनिक युक्त मिट्टी या आर्सेनिक युक्त पानी से उगाए गए अनाज के सेवन से भी होता है। आर्सेनिक की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्या हो जाती हैं। गंगा का मैदान हिमालय और प्रायद्वीपीय पठारों से निकली मिट्टी से तैयार हुआ है। हिमालय से लाये गए पदार्थ मैदानी भाग में जमा होते रहते हैं जहां वे फिर से रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से टूटते हैं, इससे उनमें कई बार ऋणायन और धनायन होता है। गंगा नदी के गाद में आर्सेनिक, क्रोमियम, कॉपर, लेड, यूरेनियम, थोरियम, टंगस्टन आदि पाये जाते हैं। धान की खेती की पूरी जानकारी, कैसे कम करें लागत और कमाएं ज्यादा मुनाफा
मिट्टी या पानी में आर्सेनिक की मात्रा बीज के अंकुरण को रोकता है, पौधों की ऊंचाई व उत्पादकता को कम करता है। वैज्ञानिकों ने देखा कि आर्सेनिक युक्त मिट्टी में सेलेनियम में भिगोकर बोई गई फसल में आर्सेनिक का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। जर्नल इकोटॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायरनमेंटल सेफ्टी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, आर्सेनिक की जड़ को कैद से पहले सोडियम सेलेनाइट के एक मिलीग्राम साल्यूशन में भिगोने पर अनाज में आर्सेनिक का संचय लगभग 38 प्रतिशत कम हो जाता है। साभार: इंडियन साइंस वायर
Tags:
  • Arsenic pollution
  • Ganga-Meghna-Brahmaputra basin
  • rice cutivation
  • rice
  • icar
  • Directorate of Weed Research