कुड़ुख भाषा को गीतों में बुनकर बचा रहीं दो आदिवासी बहनें
Divendra Singh | Nov 29, 2025, 17:01 IST
जब लाल–सफेद पारंपरिक साड़ी, बालों में पंख, गले में जनजातीय आभूषण और दिल में सदियों पुरानी विरासत लिए दो बहनें मंच पर खड़ी होती हैं, तो ऐसा लगता है मानो जंगल की पत्तियाँ धीमे से सिहर उठी हों, नदी अपनी लहरों के साथ सुर मिलाने लगी हो और पहाड़ भी धड़कनों की ताल पर झूम रहे हों।
आदिवासी वाद्य यंत्रों की थाप के बीच जब वे गाती हैं - "एकसन कादर हो कुडखारो, एकसन काला लगदम" यानी कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव, कहाँ जा रहे हैं हम?
तो यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक पुकार, एक सवाल, एक चेतावनी बनकर गूंजता है, जैसे पूरी प्रकृति पूछ रही हो कि क्या हम अपने अस्तित्व, अपनी जड़ों और अपनी भाषा से दूर जा रहे हैं?
रांची ज़िले के ब्रांबे गाँव की उरांव जनजाति से आने वाली मानती तिग्गा और उनकी चचेरी बहन निक्की तिग्गा अपनी आवाज़ से सिर्फ संगीत नहीं रचतीं, वे विरासत बचाती हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता यही है, कुड़ुख भाषा कहीं आने वाले वक्त में सिर्फ किताबों में न रह जाए।
मानती और निक्की ने संगीत की कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं की। उनकी संगीत की गुरु थीं, उनकी माँ, दादी और गांव की औरतें, जो खेतों में काम करते हुए, त्योहारों में नाचते हुए और रात के सन्नाटों में कहानी सुनाते हुए गीत गाती थीं। उन्हीं गीतों को सुनते–सुनते ये दोनों बहनें बड़ी हुईं और यही गीत कुछ साल बाद उनके जीवन का उद्देश्य बन गया।
वर्ष 2022 वह मोड़ था जहां किस्मत ने इनके लिए एक दरवाज़ा खोला। टाटा स्टील फाउंडेशन के कार्यक्रम 'संवाद' में वे पहली बार पहुँचीं। अखड़ा कार्यक्रम में आईं, वहाँ गाया, और फिर सिलसिला यहीं नहीं रुका। लगातार भागीदारी और प्रभावशाली प्रस्तुति के बाद उन्हें Rhythm of the Earth बैंड का हिस्सा बनने का मौका मिला, मानो बैंड उनके ही इंतज़ार में हो।
24 वर्षीय मानती तिग्गा, जिन्होंने ट्राइबल रीजनल लैंग्वेज में मास्टर्स किया है, आज उसी बैंड की सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में शामिल हैं। वह कहती हैं, "मैंने कभी स्टेज पर गाया नहीं था। पहली बार तो बहुत डर लग रहा था। लेकिन जब पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा, तो लगा कि मेरी भाषा की आवाज़ दबेगी नहीं और यही मेरा हौसला बढ़ गया।"
भाषा सिर्फ शब्द नहीं: पहचान, अस्तित्व और आत्मा होती है
कुड़ुख या कुरुख - भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में बोली जाने वाली द्रविड़ भाषा - उरांव जनजाति की पहचान है। इस भाषा में तमिल और कन्नड़ प्रभाव भी मिलता है। पश्चिम बंगाल में इसे 2018 में आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला, लेकिन इसके बावजूद शहरों और नई पीढ़ी में कुड़ुख का उपयोग घट रहा है।
यही चिंता 26 वर्षीय निक्की तिग्गा के मन में भी है। कॉमर्स में मास्टर्स करने के बावजूद, गीत उनका सबसे बड़ा मिशन हैं।
वह कहती हैं, "आज की पीढ़ी शहरों में जाते ही अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस करती है। भाषा भूली तो पहचान भी भूली। इसलिए मैं गीतों के ज़रिए इसे बचाने की लड़ाई लड़ रही हूँ।"
इस साल उनके लिखे और गाए गीत "एकसन कादर हो कुडखारो, एकसन काला लगदम" को टाटा स्टील फाउंडेशन के यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया गया और यह गीत सिर्फ सुना नहीं गया, महसूस किया गया।
लोगों ने इसे अपने दुख, गर्व और स्मृतियों से जोड़ा, क्योंकि यह गीत हर उस समुदाय की आवाज़ है जो अपनी भाषा और संस्कृति के खोने से डरता है।
ये सिर्फ़ दो बहनों की कहानी नहीं, पूरी पीढ़ी की लड़ाई है
आज उनके गाँव में बच्चे और युवाओं में बदलाव दिख रहा है। वे अपने कार्यक्रमों में आधुनिक गानों के साथ कुड़ुख गीत भी शामिल कर रहे हैं। बुज़ुर्ग और पुरानी पीढ़ी गर्व से कहती है- "हमारी बोली फिर गूँजने लगी है।"
और शायद यही दोनों बहनों की सबसे बड़ी जीत है।
वे सिर्फ गा नहीं रहीं, वे एक विरासत को बचा रही हैं। वे साबित कर रही हैं कि संस्कृति के लिए सबसे बड़ा हथियार भाषा है, और गीत उसका सबसे सुंदर पुल।
हर बार जब वे मंच पर गाती हैं और लोग शांत होकर सुनने लगता है तो ऐसा लगता है जैसे आज की दुनिया तेज़ दौड़ में भी थोड़ा रुककर अपनी जड़ों की ओर देखने लगी है।
और तब कुड़ुख भाषा, पहाड़ों, जंगलों और नदियों की तरह, धीमे से मुस्कुरा उठती है, क्योंकि उसे पता है कि अभी भी ऐसे दिल धड़कते हैं जो उसे कभी खोने नहीं देंगे।
आप भी गीतों के बोल के साथ गुनगुना लीजिए..
एकसन कादर हो कुडखारो
एकसन काला लगदम
(कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव
कहाँ जा रहे हैं हम)
एंदेर तूंगुल रहचा नम्हाय पुरखर घी
एंदेर घोख रहचा नम्हाय पुरखर घी
एंदेर नाम नना लगदम
(क्या सपना था हमारे पुरुखों का
क्या सोच थी हमारे पुरखों की
क्या हम कर रहे हैं)
पुरखर एमागे चीच्चर उज्जा खेप्पा गे
खल्ल उखड़ीन चीच्चार उज्जा खप्पा गे
अदिन नाम अम्बा लगदम
(पुरुखों ने हमें खाने जीने को
खेत-खलिहान दिया जीने खाने को
उसको हम छोड़ रहे हैं)
आर घी चीच्चकन नाम बीसा लगदत
एड़पा पलिलन नाम अम्बा लगदम
एंदेर नाम नना लगदम
(उनका दिया हम बेच रहे हैं
घर बार हम छोड़ रहे हैं
क्या हम कर रहे हैं)
एकसन कादर हो कुड़खारो
एकसन काला लगदम
(कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव
कहाँ जा रहे हैं हम)
आदिवासी वाद्य यंत्रों की थाप के बीच जब वे गाती हैं - "एकसन कादर हो कुडखारो, एकसन काला लगदम" यानी कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव, कहाँ जा रहे हैं हम?
तो यह सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक पुकार, एक सवाल, एक चेतावनी बनकर गूंजता है, जैसे पूरी प्रकृति पूछ रही हो कि क्या हम अपने अस्तित्व, अपनी जड़ों और अपनी भाषा से दूर जा रहे हैं?
रांची ज़िले के ब्रांबे गाँव की उरांव जनजाति से आने वाली मानती तिग्गा और उनकी चचेरी बहन निक्की तिग्गा अपनी आवाज़ से सिर्फ संगीत नहीं रचतीं, वे विरासत बचाती हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता यही है, कुड़ुख भाषा कहीं आने वाले वक्त में सिर्फ किताबों में न रह जाए।
मानती और निक्की ने संगीत की कोई औपचारिक पढ़ाई नहीं की। उनकी संगीत की गुरु थीं, उनकी माँ, दादी और गांव की औरतें, जो खेतों में काम करते हुए, त्योहारों में नाचते हुए और रात के सन्नाटों में कहानी सुनाते हुए गीत गाती थीं। उन्हीं गीतों को सुनते–सुनते ये दोनों बहनें बड़ी हुईं और यही गीत कुछ साल बाद उनके जीवन का उद्देश्य बन गया।
oraon tribe kurukh folk singer (1)
वर्ष 2022 वह मोड़ था जहां किस्मत ने इनके लिए एक दरवाज़ा खोला। टाटा स्टील फाउंडेशन के कार्यक्रम 'संवाद' में वे पहली बार पहुँचीं। अखड़ा कार्यक्रम में आईं, वहाँ गाया, और फिर सिलसिला यहीं नहीं रुका। लगातार भागीदारी और प्रभावशाली प्रस्तुति के बाद उन्हें Rhythm of the Earth बैंड का हिस्सा बनने का मौका मिला, मानो बैंड उनके ही इंतज़ार में हो।
24 वर्षीय मानती तिग्गा, जिन्होंने ट्राइबल रीजनल लैंग्वेज में मास्टर्स किया है, आज उसी बैंड की सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में शामिल हैं। वह कहती हैं, "मैंने कभी स्टेज पर गाया नहीं था। पहली बार तो बहुत डर लग रहा था। लेकिन जब पूरा मैदान तालियों से गूंज उठा, तो लगा कि मेरी भाषा की आवाज़ दबेगी नहीं और यही मेरा हौसला बढ़ गया।"
भाषा सिर्फ शब्द नहीं: पहचान, अस्तित्व और आत्मा होती है
कुड़ुख या कुरुख - भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में बोली जाने वाली द्रविड़ भाषा - उरांव जनजाति की पहचान है। इस भाषा में तमिल और कन्नड़ प्रभाव भी मिलता है। पश्चिम बंगाल में इसे 2018 में आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला, लेकिन इसके बावजूद शहरों और नई पीढ़ी में कुड़ुख का उपयोग घट रहा है।
यही चिंता 26 वर्षीय निक्की तिग्गा के मन में भी है। कॉमर्स में मास्टर्स करने के बावजूद, गीत उनका सबसे बड़ा मिशन हैं।
oraon tribe kurukh folk singer
वह कहती हैं, "आज की पीढ़ी शहरों में जाते ही अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस करती है। भाषा भूली तो पहचान भी भूली। इसलिए मैं गीतों के ज़रिए इसे बचाने की लड़ाई लड़ रही हूँ।"
इस साल उनके लिखे और गाए गीत "एकसन कादर हो कुडखारो, एकसन काला लगदम" को टाटा स्टील फाउंडेशन के यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया गया और यह गीत सिर्फ सुना नहीं गया, महसूस किया गया।
लोगों ने इसे अपने दुख, गर्व और स्मृतियों से जोड़ा, क्योंकि यह गीत हर उस समुदाय की आवाज़ है जो अपनी भाषा और संस्कृति के खोने से डरता है।
ये सिर्फ़ दो बहनों की कहानी नहीं, पूरी पीढ़ी की लड़ाई है
आज उनके गाँव में बच्चे और युवाओं में बदलाव दिख रहा है। वे अपने कार्यक्रमों में आधुनिक गानों के साथ कुड़ुख गीत भी शामिल कर रहे हैं। बुज़ुर्ग और पुरानी पीढ़ी गर्व से कहती है- "हमारी बोली फिर गूँजने लगी है।"
और शायद यही दोनों बहनों की सबसे बड़ी जीत है।
वे सिर्फ गा नहीं रहीं, वे एक विरासत को बचा रही हैं। वे साबित कर रही हैं कि संस्कृति के लिए सबसे बड़ा हथियार भाषा है, और गीत उसका सबसे सुंदर पुल।
हर बार जब वे मंच पर गाती हैं और लोग शांत होकर सुनने लगता है तो ऐसा लगता है जैसे आज की दुनिया तेज़ दौड़ में भी थोड़ा रुककर अपनी जड़ों की ओर देखने लगी है।
और तब कुड़ुख भाषा, पहाड़ों, जंगलों और नदियों की तरह, धीमे से मुस्कुरा उठती है, क्योंकि उसे पता है कि अभी भी ऐसे दिल धड़कते हैं जो उसे कभी खोने नहीं देंगे।
आप भी गीतों के बोल के साथ गुनगुना लीजिए..
एकसन कादर हो कुडखारो
एकसन काला लगदम
(कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव
कहाँ जा रहे हैं हम)
एंदेर तूंगुल रहचा नम्हाय पुरखर घी
एंदेर घोख रहचा नम्हाय पुरखर घी
एंदेर नाम नना लगदम
(क्या सपना था हमारे पुरुखों का
क्या सोच थी हमारे पुरखों की
क्या हम कर रहे हैं)
पुरखर एमागे चीच्चर उज्जा खेप्पा गे
खल्ल उखड़ीन चीच्चार उज्जा खप्पा गे
अदिन नाम अम्बा लगदम
(पुरुखों ने हमें खाने जीने को
खेत-खलिहान दिया जीने खाने को
उसको हम छोड़ रहे हैं)
आर घी चीच्चकन नाम बीसा लगदत
एड़पा पलिलन नाम अम्बा लगदम
एंदेर नाम नना लगदम
(उनका दिया हम बेच रहे हैं
घर बार हम छोड़ रहे हैं
क्या हम कर रहे हैं)
एकसन कादर हो कुड़खारो
एकसन काला लगदम
(कहाँ जा रहे हो कुरुख मानव
कहाँ जा रहे हैं हम)