प्लास्टिक मानव जीवन और पर्यावरण के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों के लिए भी हानिकारक

Diti Bajpai | Jun 07, 2018, 16:06 IST

पिछले एक दशक में पशु पक्षियों से मानव में संक्रमित होने वाली कई बीमारियां बढ़ी है। प्रदूषण, वृक्षों के अंधाधुध कटने और वनों में मानव अतिक्रमण के कारण परिस्थियां और भी जटिल होती जा रही है।

लखनऊ। देशभर में प्लास्टिक कचरा आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। गली, मोहल्लों, घर, दफ्तर हर जगह आपको प्लास्टिक देखने को मिल जाएगी। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र व राज्य सरकार के साथ-साथ कई प्राइवेट संस्थाएं भी काम कर रही हैं।

राज्य पशु चिकित्सा विभाग और पशु कल्याण संगठन के मुताबिक राज्य की राजधानी लखनऊ शहर में अंदाज़न हर साल 1000 गायें पॉलीथिन खाकर मर जाती हैं। इसमें मरने वाली गायों की तादाद कहीं ज़्यादा है। पॉलीथिन खाने से कुछ समय बाद गायों के अंग काम करना बंद कर देते है। वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट के अनुमान के अनुसार भारत में औसतन प्रति वर्ष प्रत्येक व्यक्ति तीन किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है और हर साल धरती पर 500 बिलियन से ज्यादा पॉलीथिन बैग्स इस्तेमाल में लाए जाते हैं।

"प्लास्टिक सिर्फ मानव जीवन और पर्यावरण को ही नहीं जानवरों के लिए भी बेहद हानिकारक है। हमारे यहां अभी भी जैविक और प्लास्टिक कूड़े को अलग नहीं किया जाता है जिसको सड़क पर घूम रही गाय खाती है और बीमार पड़ रही है। इसी समस्या से निपटने के लिए हमारी संस्था द्वारा पेड़ लगाने और लोगों को प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने के लिए अभियान चलाया गया।" ऐसा बताते हैं हेस्टर कंपनी के सहायक उपाध्यक्ष डॉ राहुल श्रीवास्तव।

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हेस्टर भारत में पशु एवं पोल्ट्री की दवा और वैक्सीन निर्माण में काम कर रही संस्था है। प्लास्टिक का पर्यावरण और पशुओं में होने वाले हानिकारक प्रभाव पर हेस्टर बायोसाइयन्सेस कम्पनी की वेटरिनेरी सोशल बिज़नेस विभाग ने उत्तर प्रदेश और बिहार के पशुचिकित्सालयों, प्रशिक्षण केन्द्र एवं पशु चिकित्सा महाविद्यालय में वृक्षरोपण का कार्य किया और प्लास्टिक के उपयोग को बंद करना, ज़्यादा वृक्ष लगाना और पशु-पर्यावरण-मानव एकीकृत स्वास्थ्य के विषय पर ज़्यादा चर्चा के ऊपर ज़ोर दिया गया ।

"पिछले एक दशक में पशु पक्षियों से मानव में संक्रमित होने वाली कई बीमारियां बढ़ी है। प्रदूषण, वृक्षों के अंधाधुध कटने और वनों में मानव अतिक्रमण के कारण परिस्थियां और भी जटिल होती जा रही है।" राहुल ने बताया, "शहरी और निकट शहरी क्षेत्रों में गाय और भैंसों को सब्ज़ी मंडी या कूड़े के ढेर की जगह कुछ खाते हुए देखा जाता है, जिसमें की प्लास्टिक में फेंकी गई सब्ज़ियों, फलों के अवशेष और घरों और होटल की ख़राब खाद्य सामग्री होती है। पशु तो पूरा खाद्य सामग्री को प्लास्टिक सहित ही खा लेता है, जिससे कि प्लास्टिक पशुओं पेट और आंत में फंस के पाचन क्रिया को अवरोधित कर देती है। इससे जानवरों की मौत भी हो जाती है।"

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पशुपालकों को जागरूक करने के लिए"वेटरिनेरी सोशल बिजनेस" का किया गठन

अहमदाबाद स्थित हेस्टर संस्था ने छोटे और असंगठित पशुपालकों के लिए एक समर्पित विभाग "वेटरिनेरी सोशल बिजनेस" का गठन किया है जो की भारत के उन राज्यों में काम करेगा जहां सबसे ज़्यादा लोग ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है जैसे की पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखंड एवं छत्तीसगढ़। इस विभाग का प्रमुख उद्देश्य लघु पशुपालकों को पशु स्वस्थ्य, पोषण और पालन के क्षेत्र में जागरूक करना है।



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