आईवीआरआई में एक साथ मरे सात पशु, अलर्ट जारी
दिति बाजपेई | Sep 16, 2016, 16:04 IST
बरेली। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में खुरपका-मुंहपका बीमारी से सात बछड़ों की मौत हो गई है और दर्जनों बीमारी की चपेट में आ गए है। संस्थान के डेयरी में कई गाय, बछड़े, भैंस, बैल आदि है जिनको इस बीमारी से बचाने के लिए अलर्ट जारी कर दिया गया है। वायरस को फैलने से रोकने के उपाय किए जाने लगे है।
आईवीआरआई के निदेशक डॉ आर के सिंह ने बताया कि संस्थान में बहुत दूर-दूर से लोग अपने पशुओं के इलाज के लिए आते है इस बीमारी का वायरस भी बाहर से आया है जिससे सात पशु की मौत खुरपका-मुंहपका और तीन पशु की मौत कोल्ड डायरिया से हुई है। एफएमडी का वायरस जल्दी पशुओं में पहुंचता है जिसके लिए संस्थान में काफी सावधानियां बरती जा रही है। जो सात पशु मरे है उनको पोस्टमार्टम के बाद जलाया गया है।"
लगभग पांच दिन पहले पशुओं में खुरपका-मुहंपका के लक्षण दिखाई देने लगे थे। कुछ पशु लंगड़ाते और उनके मुंह से लार बहती दिखी। पैरों में भी घाव जैसे थे। यह देख संस्थान के अधिकारियों ने जांच की तो पता चला कि जानवरों को खुरपका-मुंहपका बीमारी हो गई है। इसके बाद पशुओं को इस वायरस से बचाने के प्रयास शुरू कर दिए गए। लेकिन इससे पहले सात बछड़ों ने दम तोड़ दिया। इसके अलावा अभी करीब 30 पशु खुरपका-मुंहपका बीमारी की चपेट में हैं। वायरस से संक्रमित पशुओं से अन्य में बीमारी न फैले, इसके लिए उन्हें अलग कर दिया गया है।
मुंहपका-खुरपका विषाणुजनित रोग है। इस बीमारी से बचने के लिए पशुओं को साल में दो बार टीका लगाया जाता है।
मुक्तेश्वर लैब से हुई सैंपलों की पुष्टि
वैज्ञानिकों ने ग्रसित पशुओं के सेंपल लेकर जांच के लिए मुक्तेश्वर (उत्तराखंड) स्थित प्रयोगशाला में भेजे। वहां नमूनों की जांच के बाद पशुओं में इस बीमारी की पुष्टि हुई है। छह महीने तक के बछड़ों और गर्भ धारण करने वाले पशुओं को यह टीका नहीं लगाया जाता। यही कारण है कि वायरस का ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ा है।
संस्थान में अलर्ट
बीमारी के फैलने से संस्थान में अलर्ट हो गया है। अधिकारी सक्रिय हुए हैं। डेयरी में पशुओं के लिए चारा पहुंचाने वाले मुख्य मार्ग पर चूना डाला गया है। मुख्य मार्ग पर वाहन और कर्मचारी, अधिकारी चूने से होकर निकल रहे हैं। चूने से वायरस खत्म होता है। संक्रमित पशुओं को दूर शेड में रखकर इलाज शुरू कर दिया गया है।
आईवीआरआई के निदेशक डॉ आर के सिंह ने बताया कि संस्थान में बहुत दूर-दूर से लोग अपने पशुओं के इलाज के लिए आते है इस बीमारी का वायरस भी बाहर से आया है जिससे सात पशु की मौत खुरपका-मुंहपका और तीन पशु की मौत कोल्ड डायरिया से हुई है। एफएमडी का वायरस जल्दी पशुओं में पहुंचता है जिसके लिए संस्थान में काफी सावधानियां बरती जा रही है। जो सात पशु मरे है उनको पोस्टमार्टम के बाद जलाया गया है।"
लगभग पांच दिन पहले पशुओं में खुरपका-मुहंपका के लक्षण दिखाई देने लगे थे। कुछ पशु लंगड़ाते और उनके मुंह से लार बहती दिखी। पैरों में भी घाव जैसे थे। यह देख संस्थान के अधिकारियों ने जांच की तो पता चला कि जानवरों को खुरपका-मुंहपका बीमारी हो गई है। इसके बाद पशुओं को इस वायरस से बचाने के प्रयास शुरू कर दिए गए। लेकिन इससे पहले सात बछड़ों ने दम तोड़ दिया। इसके अलावा अभी करीब 30 पशु खुरपका-मुंहपका बीमारी की चपेट में हैं। वायरस से संक्रमित पशुओं से अन्य में बीमारी न फैले, इसके लिए उन्हें अलग कर दिया गया है।
मुंहपका-खुरपका विषाणुजनित रोग है। इस बीमारी से बचने के लिए पशुओं को साल में दो बार टीका लगाया जाता है।
मुक्तेश्वर लैब से हुई सैंपलों की पुष्टि
वैज्ञानिकों ने ग्रसित पशुओं के सेंपल लेकर जांच के लिए मुक्तेश्वर (उत्तराखंड) स्थित प्रयोगशाला में भेजे। वहां नमूनों की जांच के बाद पशुओं में इस बीमारी की पुष्टि हुई है। छह महीने तक के बछड़ों और गर्भ धारण करने वाले पशुओं को यह टीका नहीं लगाया जाता। यही कारण है कि वायरस का ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ा है।
संस्थान में अलर्ट
बीमारी के फैलने से संस्थान में अलर्ट हो गया है। अधिकारी सक्रिय हुए हैं। डेयरी में पशुओं के लिए चारा पहुंचाने वाले मुख्य मार्ग पर चूना डाला गया है। मुख्य मार्ग पर वाहन और कर्मचारी, अधिकारी चूने से होकर निकल रहे हैं। चूने से वायरस खत्म होता है। संक्रमित पशुओं को दूर शेड में रखकर इलाज शुरू कर दिया गया है।