गाँव के स्कूल से विश्व मंच तक: डॉ. एसबी मिश्रा को मिला अमेजिंग इंडियन अवार्ड 2025
Gaon Connection | Aug 11, 2025, 19:21 IST
पृथ्वी के सबसे प्राचीन बहुकोशिकीय जीवन की खोज करने वाले और ग्रामीण भारत में शिक्षा की अलख जगाने वाले वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद डॉ. एसबी मिश्रा को टाइम्स नाऊ अमेजिंग इंडियन अवार्ड 2025 से सम्मानित किया गया।
गाँव की पगडंडियों से निकल कर देश विदेश में अपनी मेधा का परचम लहराने के बाद वापस गाँव में लौट कर सामाजिक कार्यों के प्रति पूरा जीवन समर्पित करने वाले वैज्ञानिक, और शिक्षाविद् डॉ एसबी मिश्र को टाईम्स नाऊ अमेजिंग इंडियन अवार्ड-2025 से सम्मानित किया गया है। गाँव कनेक्शन के फ़ाउंडिंग एडिटर चीफ डॉ मिश्र को यह पुरस्कार ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए दिया गया।
पृथ्वी के सबसे प्राचीन बहुकोशिकीय जीवन की खोज से लेकर ग्रामीण भारत के भविष्य के निर्माण तक, डॉ. एसबी मिश्र की जीवन यात्रा वैज्ञानिक खोज और सामाजिक उत्थान का एक दुर्लभ संगम है। भूविज्ञानी, शिक्षक और समाज सुधारक के रूप में डॉ. मिश्र का कार्य पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के प्राचीन रहस्यों से लेकर ग्रामीण भारत की तात्कालिक आवश्यकताओं से जोड़ता है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के एक गाँव में वर्ष 1940 में जन्मे डॉ. एसबी मिश्र का प्रारंभिक जीवन कठिनाई भरा रहा। जब बुनियादी शिक्षा एक सपना भर थी, डॉ. मिश्रा रोज़ाना 12 किलोमीटर पैदल चलकर नज़दीकी स्कूल जाते थे। डॉ. मिश्रा के ये कदम ग्रामीण गुमनामी की जिंदगी से वैश्विक वैज्ञानिक बनने की उठे थे।
कठिनाइयों में गढ़ा उनका यह सपना, एक दिन वापस लौटकर अपने गाँव में एक स्कूल खोलने की वजह बना। ताकि किसी भी बच्चे को उनके जैसी तकलीफ न उठानी पड़े।
डॉ. एसबी मिश्रा को लखनऊ विश्वविद्यालय से भूविज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि के बाद कनाडा में एमएस करने के लिए एक प्रतिष्ठित छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। यहीं उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत का मान बढ़ाया। मेमोरियल यूनिवर्सिटी, न्यूफ़ाउंडलैंड में अपने शोध के दौरान, उन्होंने पृथ्वी पर सबसे पुराने (लगभग 56.5 करोड़ वर्ष) ज्ञात बहुकोशिकीय जीव की खोज की। उनकी खोज ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में एक महत्वपूर्ण रहस्य को उजागर किया और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदायों द्वारा इसकी सराहना की गई।
उनका शोध विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे द जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका और नेचर (लंदन) और जर्नल ऑफ द जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ, जिससे उन्हें विभिन्न महाद्वीपों में प्रशंसा मिली।
कनाडा में एमएस पूरा करने के बाद, डॉ. मिश्रा ने एक जीवन-परिवर्तनकारी निर्णय लिया। शोध क्षेत्र में काम करने के लिए अमेरिका और कनाडा में मिले अवसरों को छोड़ अपने वतन लौटने का संकल्प लिया। वर्ष 1972 में अपनी पत्नी स्वर्गीय निर्मला मिश्रा के साथ उन्होंने यूपी की राजधानी लखनऊ के पास सुदूर कुनौरा गाँव में भारतीय ग्रामीण विद्यालय की स्थापना की।
यह स्कूल एक शैक्षणिक संस्थान भर नहीं था - यह हजारों लोगों के लिए आशा की किरण थी। डॉ. मिश्रा के द्वारा खोला गया ये स्कूल परिवर्तन का एक इंजन बन गया है, जिसने क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया। इस संस्थान के माध्यम से, अनगिनत बच्चों– जिनमें से कई हाशिए के समुदायों से थे– को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हुई, जिससे वो गरीबी और अभाव के चक्र को तोड़ पाए। उनके द्वारा खोला गया ये स्कूल, केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है; यह एक आंदोलन है, ग्रामीण शिक्षा में एक क्रांति है। आज भी 85 वर्ष की आयु में डॉ. मिश्रा ख़ुद के शुरू किए स्कूल में ग़रीब और ज़रूरतमंद बच्चों के लिए कार्य कर रहे हैं।
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान टाइम्स नाऊ द्वारा, विकलांगता, समावेशन और सुगम्यता, मानवाधिकार और कानूनी सहायता, ग्रामीण एवं मलिन बस्ती विकास, प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सामाजिक नवाचार, जल एवं स्वच्छता, खाद्य प्रबंधन एवं पोषण कृषि, शिक्षा एवं कौशल विकास, पर्यावरण स्थायित्व, स्वास्थ्य सेवा, पशु कल्याण बालिका एवं महिला अधिकार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए दिया गया। विजेताओं को पुरस्कार श्रम एवं रोजगार व युवा एवं खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने दिया।
पृथ्वी के सबसे प्राचीन बहुकोशिकीय जीवन की खोज से लेकर ग्रामीण भारत के भविष्य के निर्माण तक, डॉ. एसबी मिश्र की जीवन यात्रा वैज्ञानिक खोज और सामाजिक उत्थान का एक दुर्लभ संगम है। भूविज्ञानी, शिक्षक और समाज सुधारक के रूप में डॉ. मिश्र का कार्य पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के प्राचीन रहस्यों से लेकर ग्रामीण भारत की तात्कालिक आवश्यकताओं से जोड़ता है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के एक गाँव में वर्ष 1940 में जन्मे डॉ. एसबी मिश्र का प्रारंभिक जीवन कठिनाई भरा रहा। जब बुनियादी शिक्षा एक सपना भर थी, डॉ. मिश्रा रोज़ाना 12 किलोमीटर पैदल चलकर नज़दीकी स्कूल जाते थे। डॉ. मिश्रा के ये कदम ग्रामीण गुमनामी की जिंदगी से वैश्विक वैज्ञानिक बनने की उठे थे।
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डॉ. एसबी मिश्रा को लखनऊ विश्वविद्यालय से भूविज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि के बाद कनाडा में एमएस करने के लिए एक प्रतिष्ठित छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया। यहीं उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत का मान बढ़ाया। मेमोरियल यूनिवर्सिटी, न्यूफ़ाउंडलैंड में अपने शोध के दौरान, उन्होंने पृथ्वी पर सबसे पुराने (लगभग 56.5 करोड़ वर्ष) ज्ञात बहुकोशिकीय जीव की खोज की। उनकी खोज ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में एक महत्वपूर्ण रहस्य को उजागर किया और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदायों द्वारा इसकी सराहना की गई।
उनका शोध विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे द जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका और नेचर (लंदन) और जर्नल ऑफ द जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ, जिससे उन्हें विभिन्न महाद्वीपों में प्रशंसा मिली।
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यह स्कूल एक शैक्षणिक संस्थान भर नहीं था - यह हजारों लोगों के लिए आशा की किरण थी। डॉ. मिश्रा के द्वारा खोला गया ये स्कूल परिवर्तन का एक इंजन बन गया है, जिसने क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया। इस संस्थान के माध्यम से, अनगिनत बच्चों– जिनमें से कई हाशिए के समुदायों से थे– को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हुई, जिससे वो गरीबी और अभाव के चक्र को तोड़ पाए। उनके द्वारा खोला गया ये स्कूल, केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है; यह एक आंदोलन है, ग्रामीण शिक्षा में एक क्रांति है। आज भी 85 वर्ष की आयु में डॉ. मिश्रा ख़ुद के शुरू किए स्कूल में ग़रीब और ज़रूरतमंद बच्चों के लिए कार्य कर रहे हैं।
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान टाइम्स नाऊ द्वारा, विकलांगता, समावेशन और सुगम्यता, मानवाधिकार और कानूनी सहायता, ग्रामीण एवं मलिन बस्ती विकास, प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सामाजिक नवाचार, जल एवं स्वच्छता, खाद्य प्रबंधन एवं पोषण कृषि, शिक्षा एवं कौशल विकास, पर्यावरण स्थायित्व, स्वास्थ्य सेवा, पशु कल्याण बालिका एवं महिला अधिकार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए दिया गया। विजेताओं को पुरस्कार श्रम एवं रोजगार व युवा एवं खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने दिया।