इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग को क्लीन एनर्जी से जोड़ने का अभी है सही वक्त: रिपोर्ट
Seema Javed | Jul 29, 2025, 19:19 IST
ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि भारत 2032 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग जरूरतें सिर्फ 3% नवीकरणीय ऊर्जा से पूरी कर सकता है। यानी EV अपनाने से बिजली ग्रिड पर बोझ नहीं पड़ेगा, अगर स्मार्ट नीति और चार्जिंग समय का सही समन्वय हो। रिपोर्ट दिन के समय चार्जिंग को बढ़ावा देने, Time-of-Day टैरिफ और डेटा-आधारित नीतियों को अपनाने की सिफारिश करती है।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का चलन तेजी से बढ़ रहा है। सरकार की नीतियों और जलवायु लक्ष्यों के चलते ईवी एक बेहतर और साफ़ विकल्प बनते जा रहे हैं। लेकिन इनके बढ़ते उपयोग के साथ-साथ एक बड़ा सवाल भी सामने आता है- क्या देश की बिजली व्यवस्था इतनी मजबूत है कि वह ईवी की चार्जिंग जरूरतों को संभाल सके? ऊर्जा क्षेत्र की थिंक टैंक संस्था 'एम्बर' की ताज़ा रिपोर्ट इस सवाल का सकारात्मक और आशाजनक उत्तर देती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2032 तक भारत की कुल सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का महज तीन प्रतिशत हिस्सा ही देश की सभी ईवी की चार्जिंग ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा। यह अनुमान भारत की राष्ट्रीय बिजली योजना (NEP-14) में निर्धारित 468 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में दिया गया है।
कैसे निकला यह अनुमान?
एम्बर ने 2030 और 2032 को ध्यान में रखकर दो परिदृश्य तैयार किए। रिपोर्ट बताती है कि 2032 तक देश को इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिए लगभग 15 गीगावॉट बिजली की जरूरत होगी। यह मात्रा देश की उस समय की कुल निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का सिर्फ 3% हिस्सा होगी। इसका मतलब यह है कि अगर भारत अपनी योजनानुसार सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन बढ़ाता है, तो सिर्फ उसका एक छोटा सा अंश ही ईवी चार्जिंग में लगेगा और शेष ऊर्जा अन्य आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध रहेगी।
रात में चार्जिंग और जीवाश्म ईंधन की समस्या
हालांकि तकनीकी रूप से क्षमता पर्याप्त है, लेकिन रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि जब और कैसे चार्जिंग होती है, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। वर्तमान में ज्यादातर ईवी मालिक अपने वाहनों को रात या शाम के समय चार्ज करते हैं, जब ग्रिड में जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली की हिस्सेदारी ज्यादा होती है। ऐसे में ईवी का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से कोयले जैसे प्रदूषणकारी स्रोतों पर निर्भर करता है।
एम्बर की विश्लेषक रुचिता शाह के अनुसार, यदि दिन के समय यानी "सोलर ऑवर्स" में चार्जिंग को बढ़ावा दिया जाए, तो अधिकतम साफ ऊर्जा का उपयोग संभव है। इसके लिए कार्यस्थलों, मॉल्स, और सार्वजनिक पार्किंग क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों को बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। कुछ राज्य पहले ही इस दिशा में पहल कर चुके हैं।
‘टाइम ऑफ डे टैरिफ’ का प्रभावी इस्तेमाल
असम, गुजरात, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्यों ने ‘टाइम ऑफ डे टैरिफ’ (ToD Tariff) को लागू किया है। इसके तहत दिन के समय चार्जिंग करने पर उपभोक्ताओं को रियायती दर पर बिजली दी जाती है। यह उपाय उपभोक्ताओं को दिन के समय चार्जिंग के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे ग्रिड पर दबाव भी संतुलित होता है और प्रदूषण भी कम होता है।
डेटा से होगी नीति और पूर्वानुमान में मदद
रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर चार्जिंग पैटर्न से संबंधित डेटा को सुरक्षित और गोपनीय तरीके से संग्रहित किया जाए, तो बिजली वितरण कंपनियां (DISCOMs) ईवी चार्जिंग की मांग का पूर्वानुमान बेहतर तरीके से लगा सकती हैं। इसके जरिए टैरिफ योजनाएं और नीति निर्माण अधिक प्रभावी हो सकेंगी। डेटा विश्लेषण से यह भी पता चलेगा कि किन इलाकों में चार्जिंग की अधिक जरूरत है, जिससे वहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाया जा सकेगा।
ग्रीन टैरिफ और घरेलू चार्जिंग की चुनौती
कई राज्य अब ‘ग्रीन टैरिफ’ के जरिए उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा से चार्जिंग की सुविधा दे रहे हैं। लेकिन यह सुविधा अभी सिर्फ बड़े वाणिज्यिक चार्जिंग स्टेशनों पर सीमित है। घरेलू चार्जिंग स्टेशनों पर इसकी पहुंच नहीं है, और जहां है भी, वहां इसकी लागत अपेक्षाकृत अधिक है, जिससे मध्यमवर्गीय या संवेदनशील उपभोक्ता इससे बचते हैं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ईवी और अक्षय ऊर्जा नीति में बेहतर समन्वय बनाना होगा, ताकि चार्जिंग प्रणाली को अधिक सुलभ और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभकारी बनाया जा सके।
ईवी नीति और ऊर्जा नीति में समन्वय की आवश्यकता
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कई प्रकार की प्रोत्साहन योजनाएं चला रही हैं—जैसे FAME योजना, सब्सिडी, रोड टैक्स में छूट आदि। अगर इन प्रयासों के साथ ही चार्जिंग को अक्षय ऊर्जा से जोड़ने की रणनीति भी तैयार की जाए, तो ईवी अपनाने से न केवल प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि बिजली ग्रिड अधिक लचीला और भविष्य के लिए तैयार भी बन सकेगा।
बड़ी संभावना, लेकिन सतर्क नीति की ज़रूरत
एम्बर की यह रिपोर्ट न केवल यह दिखाती है कि ईवी चार्जिंग से ग्रिड पर बोझ नहीं पड़ेगा, बल्कि यह भी बताती है कि थोड़ी सी समझदारी और सही नीति से हम ईवी क्रांति को और हरित बना सकते हैं। भारत यदि 2032 तक अपने निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य की ओर बढ़ता है और ईवी चार्जिंग को साफ ऊर्जा स्रोतों से जोड़ता है, तो न केवल कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी, बल्कि ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भी एक बड़ा कदम होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2032 तक भारत की कुल सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का महज तीन प्रतिशत हिस्सा ही देश की सभी ईवी की चार्जिंग ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा। यह अनुमान भारत की राष्ट्रीय बिजली योजना (NEP-14) में निर्धारित 468 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में दिया गया है।
कैसे निकला यह अनुमान?
एम्बर ने 2030 और 2032 को ध्यान में रखकर दो परिदृश्य तैयार किए। रिपोर्ट बताती है कि 2032 तक देश को इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिए लगभग 15 गीगावॉट बिजली की जरूरत होगी। यह मात्रा देश की उस समय की कुल निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का सिर्फ 3% हिस्सा होगी। इसका मतलब यह है कि अगर भारत अपनी योजनानुसार सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन बढ़ाता है, तो सिर्फ उसका एक छोटा सा अंश ही ईवी चार्जिंग में लगेगा और शेष ऊर्जा अन्य आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध रहेगी।
रात में चार्जिंग और जीवाश्म ईंधन की समस्या
हालांकि तकनीकी रूप से क्षमता पर्याप्त है, लेकिन रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि जब और कैसे चार्जिंग होती है, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। वर्तमान में ज्यादातर ईवी मालिक अपने वाहनों को रात या शाम के समय चार्ज करते हैं, जब ग्रिड में जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली की हिस्सेदारी ज्यादा होती है। ऐसे में ईवी का इस्तेमाल अप्रत्यक्ष रूप से कोयले जैसे प्रदूषणकारी स्रोतों पर निर्भर करता है।
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‘टाइम ऑफ डे टैरिफ’ का प्रभावी इस्तेमाल
असम, गुजरात, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्यों ने ‘टाइम ऑफ डे टैरिफ’ (ToD Tariff) को लागू किया है। इसके तहत दिन के समय चार्जिंग करने पर उपभोक्ताओं को रियायती दर पर बिजली दी जाती है। यह उपाय उपभोक्ताओं को दिन के समय चार्जिंग के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे ग्रिड पर दबाव भी संतुलित होता है और प्रदूषण भी कम होता है।
डेटा से होगी नीति और पूर्वानुमान में मदद
रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर चार्जिंग पैटर्न से संबंधित डेटा को सुरक्षित और गोपनीय तरीके से संग्रहित किया जाए, तो बिजली वितरण कंपनियां (DISCOMs) ईवी चार्जिंग की मांग का पूर्वानुमान बेहतर तरीके से लगा सकती हैं। इसके जरिए टैरिफ योजनाएं और नीति निर्माण अधिक प्रभावी हो सकेंगी। डेटा विश्लेषण से यह भी पता चलेगा कि किन इलाकों में चार्जिंग की अधिक जरूरत है, जिससे वहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाया जा सकेगा।
ग्रीन टैरिफ और घरेलू चार्जिंग की चुनौती
कई राज्य अब ‘ग्रीन टैरिफ’ के जरिए उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा से चार्जिंग की सुविधा दे रहे हैं। लेकिन यह सुविधा अभी सिर्फ बड़े वाणिज्यिक चार्जिंग स्टेशनों पर सीमित है। घरेलू चार्जिंग स्टेशनों पर इसकी पहुंच नहीं है, और जहां है भी, वहां इसकी लागत अपेक्षाकृत अधिक है, जिससे मध्यमवर्गीय या संवेदनशील उपभोक्ता इससे बचते हैं।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ईवी और अक्षय ऊर्जा नीति में बेहतर समन्वय बनाना होगा, ताकि चार्जिंग प्रणाली को अधिक सुलभ और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभकारी बनाया जा सके।
ईवी नीति और ऊर्जा नीति में समन्वय की आवश्यकता
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कई प्रकार की प्रोत्साहन योजनाएं चला रही हैं—जैसे FAME योजना, सब्सिडी, रोड टैक्स में छूट आदि। अगर इन प्रयासों के साथ ही चार्जिंग को अक्षय ऊर्जा से जोड़ने की रणनीति भी तैयार की जाए, तो ईवी अपनाने से न केवल प्रदूषण में कमी आएगी, बल्कि बिजली ग्रिड अधिक लचीला और भविष्य के लिए तैयार भी बन सकेगा।
बड़ी संभावना, लेकिन सतर्क नीति की ज़रूरत
एम्बर की यह रिपोर्ट न केवल यह दिखाती है कि ईवी चार्जिंग से ग्रिड पर बोझ नहीं पड़ेगा, बल्कि यह भी बताती है कि थोड़ी सी समझदारी और सही नीति से हम ईवी क्रांति को और हरित बना सकते हैं। भारत यदि 2032 तक अपने निर्धारित नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य की ओर बढ़ता है और ईवी चार्जिंग को साफ ऊर्जा स्रोतों से जोड़ता है, तो न केवल कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी आएगी, बल्कि ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भी एक बड़ा कदम होगा।