उत्तर प्रदेश में मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को किया जाएगा जागरूक
Divendra Singh | Jul 20, 2019, 12:22 IST
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में खरीफ में धान के बाद मक्का मुख्य फसल है, लेकिन जितना उत्पादन मिलना चाहिए उतना नहीं हो पाता है, ऐसे में प्रदेश में मक्का की खेती का रकबा और उत्पादन बढ़ाने के पहल की जा रही है।
उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) द्वारा किसान मण्डी भवन में ''उत्तर प्रदेश के कृषकों की आय बढ़ाने हेतु मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन की उन्नत तकनीकों का प्रोत्साहन'' विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
प्रदेश में मक्का की खेती तीनों मौसमों खरीफ, रबी और जायद में की जाती है। वर्ष 2017-18 में प्रदेश में 7.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मक्का की फसल की बुवाई की गयी, जिससे 15.99 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त हुआ और उत्पादकता 22.07 कुन्तल प्रति हेक्टेयर रही।
कार्यशाला में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा, "हमारे प्रदेश में खरीफ मौसम में बोये जाने वाली मक्का के क्षेत्रफल का आच्छादन सबसे अधिक है किन्तु इसकी उत्पादकता रबी मौसम में बोऐ जाने वाली मक्का से कम है। हमें खरीफ मौसम में बोये जाने वाली मक्का की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ रबी मौसम में उगायी जाने वाली मक्का के क्षेत्रफल में वृद्धि पर विचार करना होगा।
कृषि मंत्री ने आगे कहा, "प्रदेश के कुछ जनपदों की मक्के की औसत उत्पादकता देश की औसत उत्पादकता से अधिक है लेकिन कुछ जनपदों की उत्पादकता बहुत ही कम है, जिनको चिन्हित कर उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। मक्के में गेहूं और धान की अपेक्षा लगभग 90 प्रतिशत तक कम पानी तथा 70 प्रतिशत तक कम ऊर्जा लगती है।"
प्रदेश के गोरखपुर, झांसी, ललितपुर, सोनभद्र, बस्ती, संतकबीरनगर, श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, अमेठी, बाराबंकी, सुल्तानपुर, खीरी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, सिद्धार्थ नगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, मिर्जापुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली और सीतापुर जनपदों की उत्पादकता प्रदेश औसत से कम है।
प्रदेश में मक्के की उत्पादकता 24 कुंतल प्रति हेक्टेयर है जो बहुत कम है जिसे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है, खरीफ में उगाये गये मक्के की उत्पादकता रबी के मक्के से 7-8 कुंतल कम है अतः हमें रबी मे मक्के का आच्छादन बढ़ाने के प्रयास करने होंगे जबकि खरीफ मक्का की उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। कानपुर मंडल में मक्के की उत्पादकता सबसे अधिक है जबकि फैजाबाद कृषि वि.वि. द्वारा मक्के का अनुसंधान कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
मक्के का इस्तेमाल रोटी, कॉर्न फ्लेक्स और पॉप कॉर्न अलावा भी होता है। किसान व्यापार को ध्यान में रखकर मक्के का उत्पादन बढ़ाएं। प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर किसानों की आमदनी बिल्कुल बढ़ाई जा सकती है।
किसानों को मक्के की बुवाई की नई तकनीक, बुवाई का सही तरीका, कीट और खरपतवार प्रबंधन की जानकारी दी गई। फर्रुखाबाद के प्रगतिशील किसान अशोक कटियार ने कहा, "हमारे जिले में मक्का की खेती बहुत से किसान करते हैं, लेकिन अभी भी हम दूसरे प्रदेशों से मक्का की खेती में पीछे हैं, इस कार्यक्रम से शायद आने वाले समय में यहां के किसानों को भी नई तकनीक मिल जाएगी।"
पिछले कुछ महीनों में देश भर में फाल आर्मा वर्म नाम के कीट मक्का की फसल में देखें गए हैं, लेकिन सही जानकारी न होने पर किसान इस कीट को पहचान पाते हैं, ऐसे में किसानोंं को कैसे सही कीट की पहचान करें, इसकी भी जानकारी भी दी गई।
उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद (उपकार) द्वारा किसान मण्डी भवन में ''उत्तर प्रदेश के कृषकों की आय बढ़ाने हेतु मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन की उन्नत तकनीकों का प्रोत्साहन'' विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
प्रदेश में मक्का की खेती तीनों मौसमों खरीफ, रबी और जायद में की जाती है। वर्ष 2017-18 में प्रदेश में 7.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर मक्का की फसल की बुवाई की गयी, जिससे 15.99 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त हुआ और उत्पादकता 22.07 कुन्तल प्रति हेक्टेयर रही।
कार्यशाला में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा, "हमारे प्रदेश में खरीफ मौसम में बोये जाने वाली मक्का के क्षेत्रफल का आच्छादन सबसे अधिक है किन्तु इसकी उत्पादकता रबी मौसम में बोऐ जाने वाली मक्का से कम है। हमें खरीफ मौसम में बोये जाने वाली मक्का की उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ रबी मौसम में उगायी जाने वाली मक्का के क्षेत्रफल में वृद्धि पर विचार करना होगा।
कृषि मंत्री ने आगे कहा, "प्रदेश के कुछ जनपदों की मक्के की औसत उत्पादकता देश की औसत उत्पादकता से अधिक है लेकिन कुछ जनपदों की उत्पादकता बहुत ही कम है, जिनको चिन्हित कर उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। मक्के में गेहूं और धान की अपेक्षा लगभग 90 प्रतिशत तक कम पानी तथा 70 प्रतिशत तक कम ऊर्जा लगती है।"
प्रदेश के गोरखपुर, झांसी, ललितपुर, सोनभद्र, बस्ती, संतकबीरनगर, श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, अमेठी, बाराबंकी, सुल्तानपुर, खीरी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, सिद्धार्थ नगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, मिर्जापुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली और सीतापुर जनपदों की उत्पादकता प्रदेश औसत से कम है।
प्रदेश में मक्के की उत्पादकता 24 कुंतल प्रति हेक्टेयर है जो बहुत कम है जिसे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है, खरीफ में उगाये गये मक्के की उत्पादकता रबी के मक्के से 7-8 कुंतल कम है अतः हमें रबी मे मक्के का आच्छादन बढ़ाने के प्रयास करने होंगे जबकि खरीफ मक्का की उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। कानपुर मंडल में मक्के की उत्पादकता सबसे अधिक है जबकि फैजाबाद कृषि वि.वि. द्वारा मक्के का अनुसंधान कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
मक्के का इस्तेमाल रोटी, कॉर्न फ्लेक्स और पॉप कॉर्न अलावा भी होता है। किसान व्यापार को ध्यान में रखकर मक्के का उत्पादन बढ़ाएं। प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर किसानों की आमदनी बिल्कुल बढ़ाई जा सकती है।
किसानों को मक्के की बुवाई की नई तकनीक, बुवाई का सही तरीका, कीट और खरपतवार प्रबंधन की जानकारी दी गई। फर्रुखाबाद के प्रगतिशील किसान अशोक कटियार ने कहा, "हमारे जिले में मक्का की खेती बहुत से किसान करते हैं, लेकिन अभी भी हम दूसरे प्रदेशों से मक्का की खेती में पीछे हैं, इस कार्यक्रम से शायद आने वाले समय में यहां के किसानों को भी नई तकनीक मिल जाएगी।"
पिछले कुछ महीनों में देश भर में फाल आर्मा वर्म नाम के कीट मक्का की फसल में देखें गए हैं, लेकिन सही जानकारी न होने पर किसान इस कीट को पहचान पाते हैं, ऐसे में किसानोंं को कैसे सही कीट की पहचान करें, इसकी भी जानकारी भी दी गई।