काला गाउन पहन डिग्री लेना शिक्षा का अपमान: महंत अवधेशपुरी

गाँव कनेक्शन | Feb 05, 2017, 10:04 IST

भोपाल (आईएएनएस/आईपीएन)। दीक्षांत समारोह में गाउन पहनने की बाध्यता न हो, इस विदेशी पंरपरा को तुरंत खत्म किया जाए। इस मुद्दे को लेकर लंबे समय से अपनी आवाज बुंलद करने वाले मध्यप्रदेश के महंत डॉ. अवधेशपुरी महाराज की मांग पर केंद्र सरकार की विश्वविद्यालय समन्वय समिति ने एक कमेटी का गठन किया।

गाउन पर बैन को लेकर उनकी मांग इस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में भी गूंज रही है। हो सकता है कि किसी भी वक्त गाउन पहनने को लेकर केंद्र सरकार बंदी के आदेश पारित कर दे। इस मुद्दे पर संवाददाता रमेश ठाकुर ने डॉ. अवधेशपुरी महाराज से विस्तृत बातचीत की।

जब उनसे पूछा गया कि गाउन बंदी को लेकर आपकी मांग मध्यप्रदेश से दिल्ली तक पहुंच गई है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ''2014 में मुझे अपनी पीएचडी की उपाधि लेनी थी। मुझे गाउन पहनने को कहा गया, मैंने मना कर दिया। मैंने भारतीय परिधान में डिग्री लेने का आग्रह किया। उसी दिन मैंने मध्यप्रदेश सरकार को एक खत लिखा, जिसमें पूरे प्रदेश भर के विश्वविद्यालयों में डिग्री ग्रहण के दौरान गाउन पहनने पर प्रतिबंध की मांग की।''

महंत डॉ. अवधेशपुरी महाराज

अवधेशपुरी ने कहा, ''अब मामला प्रधानमंत्री के पास पहुंच गया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि गाउन पर बैन को लेकर देर-सबेर फैसला ले लिया जाएगा। रोहतक की एमडीयू और रेवाड़ी की इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय ने तो ऐलान भी कर दिया है कि वे अब इस परिधान को लागू नहीं करेंगे।''

दीक्षांत समारोह में डिग्रियां लेते वक्त काला गाउन पहनने की परंपरा दशकों पुरानी है, आखिर इसमें दिक्कत क्या है? इसके जवाब में कहा, ''दिक्कत नहीं है, लेकिन संस्कृति के खिलाफ है। दरअसल काला गाउन हमें आज भी गुलामी का अहसास कराता है। दीक्षांत समारोह में डिग्री लेने के दौरान जो गाउन (रोब) डाला जाता है वह पाश्चात्य संस्कृति का प्रतीक है। एक तरफ हम स्वदेशी होने की बात करते हैं दूसरी तरह हम अंग्रेजों द्वारा स्थापित रिवाज को अब भी मनाते हैं। आखिर क्यों?''

उन्होंने कहा, ''हिंदुस्तान जब अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों में बंधा था तब लार्ड मैकाले की शिक्षा शुरू की गई थी। तब यहां इंग्लैंड की परंपराओं को लागू किया गया और तभी से भारत में उन्हीं की रिवाजों को निभाया जाता रहा है। जो भी विद्यार्थी स्नातक करने के बाद डिग्री लेता है तो उसे काला गाउन पहनने पर बाध्य किया जाता है। इसे रोब भी कहा जाता है। हालांकि संकाय के हिसाब से इसका रंग भी बदला जाता रहा है। लेकिन इस रिवाज को बदलने की आवाज अब चारों ओर उठ खड़ी हुई है। मुझे उम्मीद है केंद्र की मोदी सरकार जल्द अंग्रेजी परंपरा को खत्म कर देशी ड्रेस कोड लागू करेगी।''

कई राज्यों द्वारा समर्थन के मांग पर उन्होंने कहा, ''कोई विरोध करेगा इसका सवाल ही नहीं उठता। आप जल्द देखेंगे, वह दिन दूर नहीं जब भारतीय परिधान में विद्यार्थियों को डिग्रियां दी जाएंगी। जल्द ही पूरा भारत एक ही रंग में रंगा नजर आएगा। राजस्थान सरकार ने दीक्षांत समारोह में काले गाउन की जगह सफेद ड्रेस पहनने के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। उनके शिक्षा मंत्री कालीचरण सर्राफ ने पिछले साल ही ऐलान कर दिया था कि अंग्रेजों के समय से चलती आ रही यह ड्रेस रिवाज जल्द ही इतिहास बनने जा रही है। नया ड्रेस कोड निजी विश्वविद्यालयों पर भी लागू होगा।''

महंत डॉ. अवधेशपुरी महाराज

गाउन की जगह क्या उपयोग करने की मांग है, के जवाब में अवधेशपुरी ने कहा, ''गाउन की जगह भारतीय परिधान में डिग्रियां दी जाएं। डिग्री लेते वक्त विद्यार्थियों के गले में हमारी देशी संस्कृति के अनुरूप लाल रंग के पटके होने चाहिए। छात्रों के लिए सफेद पैंट और शर्ट और छात्राओं के लिए सलवार-कुर्ता ड्रेस कोड तय करने की मांग की है। गाउन न अपनाने की मांग मेरे अकेले की नहीं है। कई विश्वविद्यालयों में इस परंपरा को खत्म ही कर दिया है।''

उन्होंने कहा, ''हरियाणा सरकार के मौजूदा वित्तमंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने भी गाउन पहनने से मना कर दिया था। उस वक्त उन्होंने भी कहा था कि पुराने प्रतीक और चिह्न् छोड़कर मौलिक संस्कृति के प्रतीकों को स्वीकार किया जाए। इसके बाद हरियाणा की कई विशविद्यालय में गाउन पहनने का चलन बंद हो गया। गाउन का समर्थन कोई भी नहीं कर रहा। देश में कोई भी मुद्दा होता है उसे हिंदू-मुस्लिम बना दिया जाता है, लेकिन इस मुद्दे पर सभी समुदाय एक साथ खड़े हैं।''



उन्होंने कहा, ''काला गाउन जब भी हम देखते हैं तो गुलामी की तस्वीर अनायास हमारे आंखों के आगे तैरने लगती है। इसलिए अंग्रेजों की परंपरा को बंद करने का समय है। बड़ी बात यह है कि इसके लिए खुद विश्वविद्यालयों के वीसी आगे रहे हैं। इस मुद्दे पर अगर वोटिंग कराई जाए तो मत शत-प्रतिशत पक्ष में पड़ेंगे।''

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