ग्लेशियरों की चेतावनी: अगर अब नहीं संभले, तो सदी नहीं बचेगी
Gaon Connection | Nov 13, 2025, 12:59 IST
नई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट State of the Cryosphere 2025 ने चेतावनी दी है कि धरती की बर्फ़ पहले से कहीं तेज़ पिघल रही है। अगर मौजूदा उत्सर्जन दर जारी रही, तो आने वाले दशकों में अरबों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। लेकिन रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर दुनिया अभी निर्णायक कदम उठाए, तो उम्मीद अब भी बची है।
दुनिया की बर्फ़ अब इतिहास की नहीं, आज की चिंता बन चुकी है। State of the Cryosphere 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ़ की चादरों का पिघलना अब रुकने का नाम नहीं ले रहा। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उत्सर्जन इसी रफ़्तार से चलता रहा, तो यह बर्फ़ अरबों लोगों के जीवन और जल संसाधनों के लिए विनाश का संकेत होगी।
रिपोर्ट बताती है कि केवल 1°C तापमान वृद्धि पर ही ध्रुवीय बर्फ़ की स्थिरता डगमगा चुकी है, और कई ग्लेशियर इससे भी कम तापमान पर अस्थिर हो रहे हैं। इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है — अगर दुनिया तुरंत और सख़्त कदम उठाए, तो तापमान को इस सदी के अंत तक 1.5°C से नीचे और अगले शताब्दी तक 1°C तक लाया जा सकता है।
यह रिपोर्ट International Cryosphere Climate Initiative (ICCI) की है, जिसमें दुनिया के 50 से ज़्यादा अग्रणी वैज्ञानिक शामिल हैं।
हमारे पास वक्त है लेकिन बहुत कम
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर तापमान 3°C तक बढ़ गया, तो समुद्र का स्तर इतना बढ़ेगा कि कोई नीति, कोई बांध उसे रोक नहीं सकेगा।
रिपोर्ट का यह वाक्य भविष्य की भयावह झलक देता है,“जब COP30 अमेज़न के पास आयोजित होगा, तब यह याद रखना चाहिए कि जिस ज़मीन पर हम चर्चा कर रहे होंगे, वह आने वाली सदियों में समुद्र के किनारे हो सकती है।”
Ambition on Melting Ice (AMI) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जेम्स किर्खम कहते हैं, “आज का तापमान भी बर्फ़ को स्थिर रखने के लिए बहुत ज़्यादा है। अगर हम धरती की बर्फ़ को बचाना चाहते हैं, तो हमें इस सदी में 1.5°C और अगले में 1°C तक पहुँचना ही होगा।”
बर्फ़ का पिघलना सिर्फ़ समुद्र का नहीं, इंसान का संकट है
रिपोर्ट के अनुसार,
1.2°C की मौजूदा गर्मी आने वाले सदियों में कई मीटर समुद्र-स्तर वृद्धि तय कर चुकी है।
यूरोप के आल्प्स, स्कैंडिनेविया, रॉकी पर्वत और आइसलैंड का आधा हिमावरण सिर्फ़ 1°C पर ही खत्म हो जाएगा।
अगर तापमान 2°C तक गया, तो यह बर्फ़ लगभग पूरी तरह पिघल जाएगी।
आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों ध्रुवों पर 2025 में अब तक का सबसे कम समुद्री बर्फ़ क्षेत्र दर्ज हुआ।
समुद्री जल अब इतना अम्लीय (acidic) हो गया है कि कई इलाकों में सीप, शंख और छोटे जीव मर रहे हैं।
पर्माफ्रॉस्ट अब कार्बन का स्रोत बन गया है, यानी वह अब कार्बन को सोख नहीं रहा, बल्कि छोड़ रहा है।
उम्मीद की किरण: अभी भी वक्त है
हालांकि रिपोर्ट के साथ जारी Climate Analytics और Potsdam Institute के वैज्ञानिकों का नया मॉडल -“Highest Possible Ambition (HPA)” — दिखाता है कि अगर उत्सर्जन तुरंत और बड़े पैमाने पर घटाया जाए, तो तापमान को इस सदी के भीतर वापस गिराया जा सकता है।
बर्फ़ पिघलने के साथ बदलती दुनिया
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बहता मीठा पानी महासागरों की धाराओं को धीमा कर रहा है। इससे उत्तरी यूरोप में अप्रत्याशित ठंड बढ़ सकती है और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र अस्त-व्यस्त हो सकते हैं।
यूके की वैज्ञानिक डॉ. हेलेन फिंडले के शब्दों में, “हमारे ध्रुवीय महासागर अब ऐसे बदलाव से गुजर रहे हैं जो हज़ारों साल तक रहेगा - इसका असर हवा, मौसम, भोजन और भविष्य — सब पर पड़ेगा।”
कॉप30: बर्फ़ बचाने की आख़िरी पुकार
ब्राज़ील के बेलेम में होने वाला COP30 सम्मेलन अब सिर्फ़ एक राजनीतिक बैठक नहीं, बल्कि धरती की ठंडी सांसों की आख़िरी पुकार बन गया है। वैज्ञानिकों ने देशों से अपील की है कि वे “भौतिक सच्चाई से मुंह न मोड़ें” और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को गहरे, तेज़ और टिकाऊ स्तर पर घटाने का संकल्प लें।
डॉ. किर्खम के शब्दों में, “अगर हमने अब भी वक्त गंवाया, तो कुछ सौ सालों में नहीं, कुछ दशकों में ही धरती का नक्शा बदल जाएगा।”
उम्मीद की बर्फ़ अब भी बाकी है
यह रिपोर्ट याद दिलाती है कि जलवायु संकट भविष्य की चेतावनी नहीं, आज की सच्चाई है।
और यही वजह है कि वैज्ञानिक अब भी कहते हैं -“बर्फ़ पिघल रही है, लेकिन उम्मीद अब भी जमी हुई है।”
रिपोर्ट बताती है कि केवल 1°C तापमान वृद्धि पर ही ध्रुवीय बर्फ़ की स्थिरता डगमगा चुकी है, और कई ग्लेशियर इससे भी कम तापमान पर अस्थिर हो रहे हैं। इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है — अगर दुनिया तुरंत और सख़्त कदम उठाए, तो तापमान को इस सदी के अंत तक 1.5°C से नीचे और अगले शताब्दी तक 1°C तक लाया जा सकता है।
यह रिपोर्ट International Cryosphere Climate Initiative (ICCI) की है, जिसमें दुनिया के 50 से ज़्यादा अग्रणी वैज्ञानिक शामिल हैं।
State-of-Cryosphere-2025-Report-Cover
हमारे पास वक्त है लेकिन बहुत कम
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर तापमान 3°C तक बढ़ गया, तो समुद्र का स्तर इतना बढ़ेगा कि कोई नीति, कोई बांध उसे रोक नहीं सकेगा।
रिपोर्ट का यह वाक्य भविष्य की भयावह झलक देता है,“जब COP30 अमेज़न के पास आयोजित होगा, तब यह याद रखना चाहिए कि जिस ज़मीन पर हम चर्चा कर रहे होंगे, वह आने वाली सदियों में समुद्र के किनारे हो सकती है।”
Ambition on Melting Ice (AMI) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जेम्स किर्खम कहते हैं, “आज का तापमान भी बर्फ़ को स्थिर रखने के लिए बहुत ज़्यादा है। अगर हम धरती की बर्फ़ को बचाना चाहते हैं, तो हमें इस सदी में 1.5°C और अगले में 1°C तक पहुँचना ही होगा।”
बर्फ़ का पिघलना सिर्फ़ समुद्र का नहीं, इंसान का संकट है
रिपोर्ट के अनुसार,
1.2°C की मौजूदा गर्मी आने वाले सदियों में कई मीटर समुद्र-स्तर वृद्धि तय कर चुकी है।
यूरोप के आल्प्स, स्कैंडिनेविया, रॉकी पर्वत और आइसलैंड का आधा हिमावरण सिर्फ़ 1°C पर ही खत्म हो जाएगा।
अगर तापमान 2°C तक गया, तो यह बर्फ़ लगभग पूरी तरह पिघल जाएगी।
आर्कटिक और अंटार्कटिक दोनों ध्रुवों पर 2025 में अब तक का सबसे कम समुद्री बर्फ़ क्षेत्र दर्ज हुआ।
समुद्री जल अब इतना अम्लीय (acidic) हो गया है कि कई इलाकों में सीप, शंख और छोटे जीव मर रहे हैं।
पर्माफ्रॉस्ट अब कार्बन का स्रोत बन गया है, यानी वह अब कार्बन को सोख नहीं रहा, बल्कि छोड़ रहा है।
उम्मीद की किरण: अभी भी वक्त है
हालांकि रिपोर्ट के साथ जारी Climate Analytics और Potsdam Institute के वैज्ञानिकों का नया मॉडल -“Highest Possible Ambition (HPA)” — दिखाता है कि अगर उत्सर्जन तुरंत और बड़े पैमाने पर घटाया जाए, तो तापमान को इस सदी के भीतर वापस गिराया जा सकता है।
बर्फ़ पिघलने के साथ बदलती दुनिया
रिपोर्ट चेतावनी देती है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका से बहता मीठा पानी महासागरों की धाराओं को धीमा कर रहा है। इससे उत्तरी यूरोप में अप्रत्याशित ठंड बढ़ सकती है और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र अस्त-व्यस्त हो सकते हैं।
यूके की वैज्ञानिक डॉ. हेलेन फिंडले के शब्दों में, “हमारे ध्रुवीय महासागर अब ऐसे बदलाव से गुजर रहे हैं जो हज़ारों साल तक रहेगा - इसका असर हवा, मौसम, भोजन और भविष्य — सब पर पड़ेगा।”
कॉप30: बर्फ़ बचाने की आख़िरी पुकार
ब्राज़ील के बेलेम में होने वाला COP30 सम्मेलन अब सिर्फ़ एक राजनीतिक बैठक नहीं, बल्कि धरती की ठंडी सांसों की आख़िरी पुकार बन गया है। वैज्ञानिकों ने देशों से अपील की है कि वे “भौतिक सच्चाई से मुंह न मोड़ें” और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को गहरे, तेज़ और टिकाऊ स्तर पर घटाने का संकल्प लें।
डॉ. किर्खम के शब्दों में, “अगर हमने अब भी वक्त गंवाया, तो कुछ सौ सालों में नहीं, कुछ दशकों में ही धरती का नक्शा बदल जाएगा।”
उम्मीद की बर्फ़ अब भी बाकी है
यह रिपोर्ट याद दिलाती है कि जलवायु संकट भविष्य की चेतावनी नहीं, आज की सच्चाई है।
और यही वजह है कि वैज्ञानिक अब भी कहते हैं -“बर्फ़ पिघल रही है, लेकिन उम्मीद अब भी जमी हुई है।”