जंगल जैसा खेत: 1000 पेड़-पौधों के साथ खेती का नया मॉडल

Gaon Connection | Dec 02, 2025, 10:40 IST

मेहसाणा के लुनासन गाँव में एक किसान ने खेती को जंगल में बदल दिया और जंगल की तरह खेती को। अमोल खडसरे ने पर्माकल्चर मॉडल अपनाते हुए 1000 से अधिक पेड़-पौधों, औषधियों, सब्जियों और जंगली घासों को एक साथ उगाया, बिना केमिकल, बिना तनाव और बिना अत्यधिक पानी के। आज उनका खेत सिर्फ कृषि उत्पादन नहीं, बल्कि एक जीवित इकोसिस्टम है

दुनिया भर के जंगल सदियों से ज़िंदा हैं। यह बात सिर्फ़ किताबों में लिखी कोई काव्य-पंक्ति नहीं, बल्कि प्रकृति का वह सच है जिसे इंसान अक्सर अनदेखा कर देता है। जंगल सिर्फ़ पेड़ों का समूह नहीं होते, वे ज्ञान की एक मौन किताब हैं। मिट्टी की गंध, पत्तों का गिरना, फलों का उगना, पक्षियों का लौटना, मौसमों का बदलना… सब एक लय में, एक सामंजस्य में होता है।

खेतों में दिखाई देने वाली पौधों की वो लंबी कतारें, जो धीरे-धीरे बढ़कर जंगल का आकार लेती हैं, प्रकृति की उस विरासत का हिस्सा हैं जिसे हम अक्सर विकास की दौड़ में पीछे छोड़ देते हैं। फूल, फल, पेड़–पौधे, धरती और जानवर एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं, जैसे किसी परिवार के सदस्य। किसी की कमी होती है तो पूरा तंत्र हिल जाता है, और जब यह संतुलन बचा रहता है तो जीवन फलता-फूलता है।

जंगल अपने नियम खुद बनाता है और फिर उनसे कभी विचलित नहीं होता, न वह रासायनिक खाद मांगता है, न कीटनाशकों की ज़रूरत होती है, न ही कोई मेहनत। वो अपनी ही व्यवस्था में उगता, फलता-फूलता, और गिरते-बिखरते जीवन को दोबारा नई मिट्टी में बदल देता है। अगर जंगल से पूछो “कृत्रिमता के बिना कैसे जिया जाए?” तो उसका जवाब होगा: “प्रकृति को अपना शिक्षक बना लो।” लेकिन हमने मनुष्य की प्रगति के नाम पर कितना सीखा? हमने जंगलों को काटा, अकाल और बंजरपन बढ़ाया, और फिर उसी मिट्टी से जीवन की पुकार की उम्मीद की। पर सौभाग्य से, दुनिया में अभी भी कुछ लोग हैं जो जंगल को सिर्फ़ जंगल नहीं, बल्कि गुरु मानते हैं।

यह कहानी सिर्फ खेती की नहीं, बल्कि एक भविष्य की है, जहाँ पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य एक ही ख
ऐसा ही एक गाँव है, गुजरात के मेहसाणा ज़िले का लुनासन। इस शांत, साधारण-से दिखने वाले गाँव ने आज भारत की खेती की दुनिया में एक क्रांति खड़ी कर दी है। इस क्रांति के केंद्र में हैं एक सादे, शांत, लेकिन अत्यंत दूरदर्शी किसानए अमोल खडसरे। अमोल उन लोगों में से हैं जो मानते हैं कि “जंगल का उपज, जंगल में ही वापस जाना चाहिए।” यानी जो प्रकृति देती है, उसे प्रकृति को वापस लौटाना भी जरूरी है। इसी दर्शन पर आधारित है पर्माकल्चर फार्मिंग, जिसे वे प्रेम से कहते हैं मुनाफ़े का जंगल।

अमोल खडसरे खेती को नौकरी नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ साझेदारी मानते हैं। वह कहते हैं, “जंगल जैसी खेती में करना ही क्या है? बीज लगाओ, पेड़ लगाओ, झाड़ लगाओ… और फिर प्रकृति को करने दो।” कोई रसायन नहीं, कोई कीटनाशक नहीं, न कटिंग, न छंटाई, न पेड़ों का जबरन नियंत्रण। पेड़ अपने चक्र से बढ़ेंगे, सूखेंगे, गिरेंगे, और फिर अपने ही पतझड़ से नई मिट्टी बनाएँगे। उनके खेत में आज 1000 से अधिक तरह के पौधे, पेड़, झाड़ियां, घास, सब्जियाँ, वनस्पतियाँ और मेडिसिनल प्लांट्स एक साथ फल-फूल रहे हैं जैसे एक बड़ा, जीवित, साँस लेता हुआ जंगल।

यह इकोसिस्टम अपने आप एक-दूसरे को पोषण देता है। कुछ पौधे मिट्टी को नाइट्रोजन देते हैं, कुछ की छाँव दूसरे पौधों को जलने से बचाती है, कुछ मधुमक्खियों और पक्षियों को आकर्षित करते हैं जो परागण कराते हैं। किसी चीज़ की अधिकता कुछ और की कमी को भर देती है। यही जंगल का नियम है- “सामंजस्य”। इसी के कारण यहाँ सिंचाई कम लगती है, दवाइयों की ज़रूरत नहीं पड़ती, कीट खुद नियंत्रित हो जाते हैं और मिट्टी साल दर साल जवान होती जाती है।

जहाँ मिट्टी सांस लेती है, पक्षी लौटकर आते हैं और हर पौधा दूसरे पौधे का दोस्त बनकर बढ़ता है। आमदनी कई


लोग अक्सर पूछते हैं, “अगर रासायनिक खेती छोड़ दी… तो आमदनी कैसे होगी?” अमोल खडसरे इस सवाल पर मुस्कुरा देते हैं। उनके खेत में जामुन, सहजन (मोरिंगा), केला, अमरूद, बेल, धतूरा जैसी सैकड़ों चीजें पैदा होती हैं। ताज़ा सब्जियाँ, फल, मिलेट्स, औषधीय पौधें सब एक ही खेत से। उदाहरण के लिए जहाँ अधिकांश किसान घास को "अनचाही" चीज़ मानते हैं, वह घास अमोल जी के खेत में आय का स्रोत है। पुनर्नवा, आपामार्ग, नीम पाउडर जैसी औषधिक सामग्री भारत और विदेशों में बिक रही है।

वो कहते हैं, “घास को खत्म करने की ज़रूरत नहीं। उसी में भी दो पैसे हैं।” और इस मॉडल की खास बात यह है कि यहाँ उत्पादों की वैरायटी इतनी ज्यादा है कि यदि एक फसल नहीं चली तो दस और खड़ी हैं, यानी जोखिम लगभग शून्य।

सबसे प्रेरणादायक बात यह है कि जिस जगह आज पक्षी गाते हैं, पेड़ लहराते हैं और तितलियाँ उड़ती हैं, वहाँ कभी सूखी, बंजर ज़मीन थी। उस ज़मीन पर अमोल साहब ने जंगल उगाया। 13–14 साल पहले यहाँ चिड़ियों की आवाज़ सुनाई नहीं देती थी, आज यहाँ दर्जनों प्रजातियाँ देखने मिलती हैं। मिट्टी जो निर्जीव थी, अब उपजाऊ बन चुकी है। तालाब के पास पानी रुकता है, और भूजल स्तर बढ़ रहा है। खेत पहले सिर्फ़ खेती था - आज एक इकोसिस्टम, एक स्कूल और एक प्रेरणा बन चुका है।

अमोल खडसरे का सपना सिर्फ़ अपनी खुशहाली नहीं है, वो कहते हैं, “हर परिवार के पास जैसे एक फैमिली डॉक्टर होता है, वैसे ही एक फैमिली फ़ार्मर भी होना चाहिए।” वह चाहते हैं कि हर गाँव में पर्माकल्चर पहुँचे, क्योंकि इससे पैसे भी बचते हैं, खाना भी खुद का और शुद्ध मिलता है, और खेती भी आने वाली पीढ़ियों तक टिकाऊ बनी रहती है। “पर्यावरण, पक्षी, पशु, मनुष्य, सबको साथ लेकर चलना है” यही उनकी खेती का धर्म है।

आज जब आधुनिक कृषि रसायनों और कर्ज के बोझ से संघर्ष कर रही है, तब लुनासन गाँव के इस किसान ने एक अनोखा रास्ता दिखाया है, जंगल को शिक्षक बनाकर खेती करना। और सबसे खास बात ये खेती सिर्फ़ उपज नहीं देती, बल्कि धरती को जीवन वापस लौटाती है।
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