जनता दल के टुकड़े कभी पास आते हैं तो कभी दूर जाते हैं

Dr SB Misra | Nov 28, 2016, 20:26 IST

मौजूदा हालत में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी, बिहार में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल, बिहार में ही नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड, उड़ीसा में बीजू जनता दल, कर्नाटक में देवी गौड़ा का जनता दल सेकुलर, चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह का राष्ट्रीय लोक दल, बिहार में राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और ना जाने कितने खंड बन चुके हैं और काम कर रहे हैं। ये सभी जनता दल के अंग रह चुके हैं इस सीमा तक वे एक ही सोच के वंशज हैं। इनमें एक ही समानता है ये सब मोदी विरोधी हैं।

चुनावी गणित में एक समय कांग्रेस को परास्त करने के लिए सभी पार्टियां एक हो जाया करती थीं, यहां तक कि धुर विराधी दल भी एकजुट होते थे। अब समय बदला है और पुराने जमाने की भारतीय जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी के रूप में देश की राजनीति पर अपना वर्चस्व कायम किया है। परिणाम यह हुआ कि लम्बे समय तक अलग रहने के बाद लालू यादव का जनता दल और नीतीश का जनता दल एक हो गए और बिहार में सरकार बना ली। साथ में उसी कांग्रेस को भी शामिल किया जिसका जिन्दगी भर विरोध करते रहे थे। आखिर उनकी मंजिल क्या है कुर्सी या इससे आगे भी कुछ।

भारतीय जनता पार्टी के वर्चस्व को समाप्त करना विरोधी दलों की प्राथमिकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राजनीति के दो मंझे नेताओं उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव और बिहार के लालू यादव नें पारिवारिक संबंध में बंधने का फैसला किया। देश भर की समाजवादी पृष्ठभूमि की पार्टियों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व में एकजुट होने का निर्णय लिया। बात कहां पर रुक गई किसी को पता नहीं, शायद नीतीश की प्रधानमंत्री बनने की पुरानी महत्वाकांक्षा अभी बाकी है और वह बीच में आई हो।

मोरारजी देसाई की सरकार गिरने के बाद जयप्रकाश नारायण की जनता पार्टी के खंडों का तथाकथित जनता परिवार बना। वर्षों बाद जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अस्सी के दशक में कांग्रेस छोड़कर बोफोर्स तोप सौदे में कमीशनखोरी का सवाल उठाया तो फिर से जनता पार्टी के विभाजित अंग इकट्ठे हुए, इस बार जनता दल के नाम से। वीपी सिंह के साथ सरकार बनाई परन्तु यह प्रयोग भी अधिक दिन नहीं चला। फिर से जनता दल के अनेक टुकड़े हुए, क्योंकि सब तो लीडर हैं यहां लेकिन सिपाही कोई नहीं है।

जनता दल के इन टुकड़ों को मिलाकर कुछ लोग जनता दल परिवार कहते हैं। यह शब्दावली संघ परिवार के लिए प्रयोग में लाई जाती है जहां करीब 50 संगठन हैं जो अलग-अलग काम तो करते हैं लेकिन बराबर एक-दूसरे के काम आते हैं, अनेक बार सामूहिक कार्यक्रम भी चलाते हैं जैसे जन्मभूमि आन्दोलन। ध्यान रखना चाहिए परिवार एक जीवंत कल्पना है जिसकी निरंतर वृद्धि होती है इसलिए जनता दल के टुकड़ों को मिलाकर परिवार नहीं बनता। किसी परिवार की एक सामूहिक सोच होती है, उनके अस्तित्व का एक उद्देश्य होता है लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं होता। यहां सभी को एक सूत्र में बांधने के लिए सामूहिक स्वार्थ के अलावा कुछ नहीं। जनता दलों का भविष्य क्या है यह तो पता नहीं लेकिन भारतीय राजनीति में उनका वर्तमान अधिक अच्छा नहीं है।

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