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कैसे हुई थी दुनिया भर में प्रसिद्ध देव दीपावली की शुरुआत?

#Dev Deepawali

वाराणसी, एक ऐसा शहर जिसके बारे में माना जाता ये शहर इतिहास से भी ज़्यादा पुराना है, जहाँ शिव का वास है वो है काशी।

इसी काशी से शुरू हुई थी देव दीपावली, जो दिवाली के ठीक 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, पंचांग के हिसाब से इस बार देव दीपावली 26 नवंबर को मनाई जाएगी।

सरयू नदी के किनारे बसे शहर अयोध्या ने दीपोत्सव में इस बार 22 लाख मिट्टी के दिए जला कर विश्व रिकॉर्ड कायम किया। वो नज़ारा इतना खूबसूरत और आकर्षक था कि सिर्फ देश ही नहीं पूरी दुनिया से लोग उस नज़ारे को देखने आए थे, लेकिन आपको बता दें कि दीपोत्सव पिछले सात वर्षों से मनाया जा रहा है, जबकि वाराणसी में देव दीपावली हमेशा से काशी का हिस्सा रही है और हर साल देश दुनिया की भीड़ देव दीपावली मनाने वाराणसी पहुँचती है और देव दीवाली का हिस्सा बनती है।

गंगा किनारे बसी काशी, देव दिवाली के दिन एक दुल्हन की तरह लगती है, जिसका श्रृंगार गहनों की बजाए मिट्टी के दिए और लोगों के कोलाहल से हुआ लगता है।

गंगा के किनारे पर बने 84 घाट रौशनी से जगमगाते हैं और आसमान के अंधेरे को आतिशबाज़ी से रोशन कर दिया जाता है, जिसे देख कर ऐसा लगता है की देवताओं का स्वागत काशी से बेहतर कोई कर ही नहीं सकता।

इस दिन से पहले शहर के सारे होटल, धर्मशाला लोगों की भीड़ का स्वागत करते हैं और देव दीवाली के दिन ये भीड़ घाटों पर उमड़ पड़ती है; जिसमें भक्त, पर्यटक सभी शामिल होते हैं।

गंगा पर तैरती नावों और नाविक दोनों को पहले से लोगों द्वारा चुन लिया जाता है, ताकि गंगा आरती और आतिशबाज़ी का नज़ारा सुकून से देख सकें और दूसरी तरफ फूल और दिए भी अपना स्थान चुन लेते हैं कि उन्हें घाट के कौन से कोने की शोभा बढ़ानी है अब बस इंतज़ार रहता है शाम होने का।

क्यों मनाई जाती है देव दीपावली ?

मान्यता है की भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस का वध कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को किया था, जिसके बाद देवताओं में ख़ुशी का माहौल था जिसके चलतें भगवान शिव के साथ सभी देवी देवता धरती पर आए और दीप जला के खुशियाँ मनाई गयी।

इसीलिए आज भी कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली मनाई जाती है, विशेष तौर पर वाराणसी में इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है की इस दिन भगवान शिव समेत सभी देवी देवता गणों का आगमन काशी में होता है।

हिन्दू धर्म में देव दिवाली का बहुत महत्व है और शास्त्रों के अनुसार इस दिन दीपदान का भी प्रावधान है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने से पूरे वर्ष शुभ फल मिलता है।

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