जलवायु परिवर्तन के कारण बदली पश्चिमी विक्षोभों की दिशा, हिमालयी राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन का बढ़ा खतरा

जलवायु परिवर्तन के चलते पश्चिमी विक्षोभों की दिशा और आवृत्ति में आए बदलाव ने हिमालयी क्षेत्रों में मौसम की चरम घटनाओं—जैसे भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन—की संभावना को बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ते वैश्विक तापमान और अरब सागर से आने वाली नमी इन विक्षोभों को अधिक तीव्र बना रही है, जिससे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में आपदाओं का खतरा बढ़ गया है। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय असंतुलन का संकेत है, बल्कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है।​
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जम्मू-कश्‍मीर के अनेक हिस्सों में पिछले हफ्ते भारी बारिश और आंधी-तूफान के बाद अचानक आयी बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचा दी। इस महीने के शुरू में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के अनेक हिस्‍सों में भी भारी बारिश के कारण बाढ़ और भूस्‍खलन की घटनाएं हुई हैं।

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार एक के बाद एक वेस्‍टर्न डिस्‍टर्बेंस (पश्चिमी विक्षोभ) के आने की वजह से पर्वतीय राज्‍यों में भारी बारिश हुई है। दूसरी ओर, नियमित अंतराल पर इन विक्षोभों के आगमन ने अभी तक उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों से लंबे समय तक चलने वाली ताप लहरों (हीट वेव्‍स) को दूर रखा है।

स्‍काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्‍यक्ष महेश पलावत ने कहा, “पश्चिमी विक्षोभ की बढ़ती आवृत्ति की वजह से सूखी और गर्म उत्तर-पश्चिमी हवाओं का प्रवाह प्रभावित हो रहा है, नतीजतन उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में बार-बार ताप लहरें उठ रही हैं। इन गर्म हवाओं की जगह पूर्वी हवाएं ले लेती हैं। वे तुलनात्मक रूप से ठंडी होती हैं और इस तरह वे तापमान को नीचे ले आती हैं। मध्य और पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में भी अब तक इस मौसम में लंबे समय तक गर्मी नहीं महसूस की गई है।”

पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति में बढ़ोत्‍तरी ने हिमालय क्षेत्र में बसे राज्यों को चरम मौसम की घटनाओं के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील बना दिया है जो सीधे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में मौसम विज्ञान के पूर्व निदेशक डॉक्‍टर के जे रमेश ने कहा, “जनवरी तक लगभग न के बराबर रहने के बाद जनवरी के आखिर से पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति बढ़ गई तथा वे नियमित अंतराल पर पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव काफी बढ़ गया है। वे हिमालयी क्षेत्र में अधिक वर्षा कर रहे हैं, जिसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।”

पश्चिमी विक्षोभ ऐसे चक्रवात हैं जो सर्दियों के दौरान मुख्य रूप से उत्तर भारत और पाकिस्तान को प्रभावित करते हैं। ये मौसम प्रणालियां भारतीय क्षेत्र में स्थित उष्णकटिबंधीय पश्चिमी क्षेत्र के भीतर समाहित हैं।

उन्होंने आगे बताया कि बढ़ता वैश्विक तापमान पश्चिमी विक्षोभ के कारण चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ाने में कैसे मददगार है।

डॉक्‍टर रमेश ने कहा, “ग्लोबल वार्मिंग के कारण अरब सागर में तेज़ी से गर्मी बढ़ रही है। इसकी वजह से उत्तर की ओर ज़्यादा नमी निकल रही है। पश्चिमी विक्षोभ का दायरा उत्तरी अरब सागर तक बढ़ रहा है तो सिस्टम में ज़्यादा नमी आ रही है। इसके परिणामस्वरूप पहाड़ों पर मौसम की तेज गतिविधि हो रही है। अगर हम देखें तो असामान्य बर्फबारी हो रही है। बड़े पैमाने पर इस साल उनके मौसम के पैटर्न एक अलग प्रवृत्ति दिखाते हैं।”

बर्फ के जल समतुल्य पानी की वह गहराई है जो बर्फ के आवरण के तरल अवस्था में होने पर जमीन को ढकती है। नीचे दिए गए चित्र दिसंबर (24-12-2024) और अप्रैल (15-04-2025) में हिमालयी क्षेत्र में नीले धब्बों के रूप में बर्फ के संचय को दर्शाते हैं।

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वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के बीच पश्चिमी विक्षोभ की बढ़ती अनियमित प्रवृत्ति के प्रति चेतावनी दी है।

भारतीय भू चुम्‍बकत्‍व संस्‍थान के निदेशक प्रोफेसर ए पी डिमरी ने कहा कि बढ़ते हीट स्‍ट्रेस ने पश्चिमी विक्षोभ की खासियतों को भी बदल दिया है और अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रही तो ऐसा होता रहेगा। उन्‍होंने कहा, “बढ़ते हुए प्रमाण यह दिखाते हैं कि पश्चिमी विक्षोभों की वजह से गर्मी के मौसम से इतर प्रभाव पड़ रहा है। इसकी वजह से अत्‍यधिक बारिश की घटनाएं हो रही हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि बढ़ता हुआ हीट स्‍ट्रेस इस सबका मुख्‍य आधार है क्‍योंकि यह ज्‍यादा ऊर्जा पैदा कर रहा है और साथ ही साथ नमी को ऊपर की तरफ धकेल रहा है।”

पश्चिमी विक्षोभों की गति‍शीलता में बदलाव लाने में जलवायु परिवर्तन की भूमिका

पश्चिमी विक्षोभ उत्‍तर-पश्चिमी भारत में पूरे साल भर मौसम की तर्ज को संचालित करते हैं। सर्दियों और वसंत के महीनों के दौरान इसका खास महत्‍व होता है जो सालाना बारिश का 15 प्रतिशत हिस्‍सा होता है। जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती है वैसे-वैसे हम पश्चिमी विक्षोभ की गतिशीलता में परिवर्तन की उम्मीद करते हैं क्योंकि वायुमंडल के ऊपरी क्षोभमंडल में व्‍याप्‍त गर्मी दरअसल उपोष्णकटिबंधीय जेट को संशोधित करती है जिसमें ये पश्चिमी विक्षोभ अंतर्निहित होते हैं। इसके अलावा सतह के नजदीक गर्म परिस्थितियां स्थैतिक स्थिरता में बदलाव करती हैं और वायुमंडलीय नमी की मात्रा को बढ़ाती हैं। इससे पश्चिमी विक्षोभ के गुणों में फिर से परिवर्तन होता है।

ताजा शोध के मुताबिक ज्‍यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गर्म जलवायु में काफी ज्‍यादा बारिश होने की संभावना है। वहीं, तराई क्षेत्रों में सूखापन नगण्‍य होगा। साथ ही उत्तरी भारतीय और पाकिस्तानी मैदानों में वर्षा में वृद्धि होगी। बारिश का मौसम भी आगे खिसक गया है। 21वीं सदी के अंत तक सबसे ज्‍यादा बर्फबारी वाला महीना फरवरी से खिसक कर मार्च में पहुंच गया। इन प्रवृत्तियों का श्रेय पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति में बदलाव को जाता है।

पश्चिमी विक्षोभ में बढ़ती परिवर्तनशीलता के आधार पर जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में पहचाने गए तीन बड़े परिवर्तन इस प्रकार हैं :

  जलवायु परिवर्तन के कारण सब-ट्रॉपिकल वेस्‍टरली जेट (एसडब्‍ल्‍यूजे) का दायरा बढ़ गया है। एसडब्‍ल्‍यूजे एक जेट स्‍ट्रीम है जो वायुमंडल के ऊपरी स्तरों में मध्य अक्षांशों पर हिमालय और तिब्बती पर्वतीय क्षेत्रों के पास व्याप्त है। पश्चिमी विक्षोभ एसडब्‍ल्‍यूजे धारा में समाहित होकर पूरब की ओर यात्रा करते हैं जो उत्तरी गोलार्द्ध की सर्दियों में भारतीय क्षेत्र में 200 एचपीए स्तर पर मौजूद रहता है। दक्षिण-पश्चिमी जोन का विस्तार पश्चिमी विक्षोभों को ज्‍यादा व्यापक क्षेत्र मुहैया कराता है और उन्हें विभिन्न दिशाओं में यात्रा करने की इजाजत देता है।

 प्रोफेसर डिमरी ने कहा, “पश्चिमी विक्षोभों में अब ज्‍यादा मेरीडियोनल ऑसिलेशंस (मध्याह्नीय दोलन) होंगे। इसका मतलब है कि वे अब जेट की उत्तरी सीमा के साथ-साथ दक्षिणी सीमा तक भी जा सकते हैं। पूर्व में, मौजूदा स्थिति की तुलना में इस तरह के उतार-चढ़ाव के लिए पर्याप्त गुंजाइश नहीं थी। वे भी ऊपर उठकर अब काराकोरम पर्वतमाला तक पहुंच रहे हैं जिससे वहां और अधिक बर्फबारी हो रही है।”

वेस्‍टर्न डिस्‍टर्बेंसेज एंड क्‍लाइमेट वेरियेबिलिटी : रीव्‍यू ऑफ रीसेंट डेवलपमेंट्स’ (पश्चिमी विक्षोभ और जलवायु परिवर्तनशीलता: हाल के घटनाक्रमों की समीक्षा) विषयक शोध पत्र में इस गहरे विश्वास (मजबूत साक्ष्य, मध्यम सहमति) का हवाला दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पश्चिमी हिमालय के क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान ज्‍यादा वर्षा होगी मगर तराई में कमी आएगी। बर्फबारी में कमी आएगी। इसकी वजह से तलहटी के इलाकों में बारिश बढ़ेगी लेकिन कराकोरम और तिब्बती पठार पर बर्फबारी में बढ़ोत्‍तरी होगी। बर्फबारी में अनुमानित वृद्धि वाले हिमाच्छादित क्षेत्र यानी कराकोरम का ज्‍यादातर हिस्सा वही क्षेत्र है जहां वर्तमान जलवायु में ग्‍लेशियर क्षेत्र में असामान्य वृद्धि महसूस की जा रही है।

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     पश्चिमी विक्षोभों के रास्‍ते में विभाजन : दोलन (ऑसिलेशन) के लिए ज्‍यादा जगह मिलने की वजह से पश्चिमी विक्षोभ अब अपना रास्‍ता विभाजित कर पा रहे हैं। वहीं, एशिया के ऊंचे पहाड़ों पर उत्तर की ओर बढ़ने वाले पश्चिमी विक्षोभ उत्तरी जम्मू और कश्मीर में बारिश करते हैं। दूसरी ओर, दक्षिण की ओर बढ़ने वाले पश्चिमी विक्षोभ हिमालय की तलहटी में ज्‍यादा बारिश और बर्फबारी की वजह बनते हैं।

    सभी पश्चिमी विक्षोभों के कारण वर्षा नहीं होती, तथा गैर-पश्चिमी विक्षोभ वाले दिनों में वर्षा दर्ज की जाती है: उत्तर-पश्चिम भारत में कम अवधि वाली भारी वर्षा की परिवर्तनशीलता में बढ़ोत्‍तरी की प्रवृत्ति देखी गई है। इसका कारण आंशिक रूप से पश्चिमी विक्षोभ को माना गया है। किसी क्षेत्र में बारिश में समग्र वृद्धि उपोष्णकटिबंधीय जेट की मजबूती और अरब सागर पर दक्षिणी नमी प्रवाह में वृद्धि की वजह से हो सकती है। पश्चिमी विक्षोभ एक बार जब वे भारतीय क्षेत्र में पहुंच जाते हैं तो अरब सागर से नमी हासिल करते हैं। इसके अलावा, यह देखा गया है कि पश्चिमी विक्षोभ की गैर मौजूदगी वाले दिनों के दौरान भी बारिश दर्ज की जाती है। इस दौरान, हम बंगाल की खाड़ी से नमी के दाखिल होने को देखते हैं।

हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 1950 से 2020 के दौरान हिंद महासागर 1.2 डिग्री सेल्सियस प्रति शताब्दी की दर से गर्म हुआ जबकि जलवायु मॉडल इस बात की भविष्‍यवाणी करते हैं कि यह महासागर साल 2020 से 2100 के दौरान 1.7 डिग्री सेल्सियस-3.8 डिग्री सेल्सियस प्रति शताब्दी की दर से तेजी से गर्म होगा। हालांकि गर्मी बेसिनव्यापी है लेकिन अधिकतम गर्मी अरब सागर सहित उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में है।

भारती इंस्‍टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में क्‍लीनिकल एसोसिएट प्रोफेसर (शोध) एवं रिसर्च डायरेक्‍टर प्रोफेसर अंजल प्रकाश ने कहा, “जलवायु परिवर्तन की वजह से पश्चिमी विक्षोभ की पारंपरिक गतिशीलता में भारी बदलाव आ रहा है। साल भर नमी की यह मात्रा हिमालय क्षेत्र को बाढ़ और भारी बर्फबारी जैसी चरम मौसमी घटनाओं के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील बना रही है। हम जो देख रहे हैं वह मौसमी सीमाओं का धुंधला होना और वायुमंडलीय व्यवहार का पुनर्गठन है। ये कोई अलग-थलग विसंगतियाँ नहीं हैं। बल्कि ये बदलती जलवायु के संकेत हैं जो भारत की मौसम प्रणालियों को फिर से तैयार कर रही हैं। नीति निर्माताओं, आपदा प्रबंधन अधिकारियों और समुदायों को इस नई सामान्य स्थिति के साथ तेजी से तालमेल बैठाना होगा।”

प्रोफेसर डिमरी ने कहा, “जलवायु मॉडल पश्चिमी विक्षोभ के रास्‍ते का पता लगाने में सक्षम होते हैं। यही वजह है कि निगरानी अधिकारियों के लिए पूर्वानुमान कार्य में इन जलवायु मॉडल को शामिल करना बहुत अहम हो जाता है। यह मॉडल उस क्षेत्र का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम होता है जहां पर्याप्त बारिश होने की संभावना है। इससे हमें नुकसान को सीमित करने और चरम मौसम की घटना के लिए समय पर तैयारी करने में मदद मिल सकती है।”

आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्‍लाइमेट चेंज) के छठे असेसमेंट साइकिल के वर्किंग ग्रुप 1 की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र के ज्‍यादातर हिमाच्‍छादन में 21वीं सदी के शुरू से कमी आ रही है। साथ ही ग्‍लेशियर्स भी पिघल रहे हैं और 1970 के दशक से उसके आकार में कमी आ रही है। कराकोरम ग्लेशियर या तो संतुलित अवस्था में बने हुए हैं या उनका द्रव्यमान थोड़ा बढ़ गया है। 21वीं सदी के दौरान हिन्दूकुश हिमालय के ज्‍यादातर हिस्‍से में बर्फ से ढके क्षेत्रों और बर्फ की मात्रा में कमी आएगी। साथ ही हिमरेखा की ऊंचाई बढ़ने से ग्लेशियर की मात्रा में कमी आएगी। पूरे तिब्बती पठार और हिमालय में सामान्य नमी व्‍याप्‍त होने का अनुमान है।

साथ ही 21वीं सदी में भारी वर्षा में इजाफा होगा। पूर्वी विक्षोभ सर्दियों में होने वाली बारिश में अहम भूमिका निभाते हैं जिससे पूरे क्षेत्र में पानी और खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त होती है। वे जो बर्फ लाते हैं वह वसंत में पिघलने के दौरान जलाशयों को बनाए रखती है। इससे जौ और गेहूं जैसी रबी की फसलों के लिए जरूरी सिंचाई होती है। ये उपमहाद्वीप में खाद्य सुरक्षा के लिहाज से प्रमुख हैं। बर्फ पिघलने से मिलने वाला पानी मई और जून के मानसून-पूर्व महीनों के सूखे को खत्‍म करने में भी मदद करता है।

इसके अलावा देर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ धान और मक्का जैसी खरीफ फसलों को प्रभावित कर सकते हैं। इससे कृषि परिणाम प्रभावित होते हैं। वे लंबे समय तक असामान्य हिमनद स्थिरता के लिए जाने जाने वाले क्षेत्र में ग्लेशियर द्रव्यमान संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। नतीजतन पश्चिमी विक्षोभ का भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से आर्थिक प्रभाव पड़ता है।

(लेखिका डॉ. सीमा जावेद जलवायु परिवर्तन और साफ़ ऊर्जा की कम्युनिकेशन विशेषज्ञ हैं)

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