सुबह के करीब आठ बजे, लहंगा-चोली पहने महिलाएं अपने घर के बाहर रसोई पर नाश्ता बना रहीं थीं, कुछ घरों में दोपहर के खाने की तैयारी हो रही थी।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ज़िले के कल्ली पश्चिम गाँव में बने ये घर सपेरों के हैं, कई साल पहले तक ये घुमंतू परिवार एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते, लेकिन अब ऐसा नहीं है, यहाँ बच्चों के लिए स्कूल भी और लोग अब दूसरे कामों में लग गए हैं।

सपेरा समुदाय के सूरज नाथ गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “हम लोग सपेरा समुदाय से हैं जो सांप का खेल दिखाते हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के हिसाब से ये गलत है। अभी इसी वजह से हम लोग दिहाड़ी का काम करते हैं। हमारे गाँव में आधे लोग यही करते हैं, और आधे लोग कभी-कभी सांप का खेल दिखाते हैं या फिर किसी के घर में सांप घुस जाए तो हमें बुलाते हैं। हम उन्हें पकड़कर जंगल में छोड़ देते हैं।”
लेकिन देश के ज़्यादातर घुमंतू परिवारों के साथ ऐसा नहीं है; आज भी वो इधर-उधर भटकते रहते हैं। कल्ली पश्चिम गाँव से लगभग 631 किमी दूर राजस्थान के टोंक ज़िले की मदारी बस्ती में अभी भी हालात वैसे ही हैं।
मदारी समुदाय के जगदीश के बच्चे उनके साथ ही दूसरे प्रदेशों में घूमते रहते हैं। न उनका कोई स्थायी घर है और न ही उनके बच्चे स्कूल जाते हैं। जगदीश आज यहाँ हैं तो कल कहीं और। जगदीश “सिंगीवाला” कहलाते हैं। ये लोग घुमंतू समुदाय से हैं, जिनका काम ही है दूसरे प्रदेशों में जाकर इलाज करना। इनका मुख्य काम है “सिंघी” लगाकर खून का जमाव निकालना।

अगस्त 1949 में जब 1924 के आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त किया गया, उसके बाद “आपराधिक” के रूप में अधिसूचित समुदायों को गैर-अधिसूचित किया गया। तभी से लगातार आयोगों ने इन समुदायों को वर्गीकृत करने की कोशिश की है — जैसे NT (नोमेडिक ट्राइब), DNT (डीनोटिफाइड ट्राइब), और SNT (सेमी नोमेडिक ट्राइब)।
जगदीश सिंगीवाल, गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “किसी के पास राशन कार्ड है तो किसी के पास नहीं, इसीलिए बहुत लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा है, पेंशन नहीं मिल रही है। ना मुझे राशन मिल रहा है, ना ही मेरे बच्चे स्कूल जा रहे हैं। इन्हीं सब समस्याओं के बारे में जब सरकारी दफ्तर में और मीडिया वाले आते हैं तो हम उन्हें बताते हैं, पर आज तक कुछ हुआ नहीं।”
वो आगे कहते हैं, “घुमंतू समाज का अर्थ है — घूम-घूमकर जीवन यापन करना, हमारा कोई स्थायित्व नहीं है। अगर सरकार की कोई योजना हो जिसे हम भी ले सकें… हमारा समाज ‘सिंगीवाल’ है, हम सिंघी लगाने का काम करते हैं। हम दूसरे प्रदेशों में जाकर काम करते हैं, जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार।”
भाषा अनुसंधान केंद्र द्वारा मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में 2019 और 2021 के बीच किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि गाड़िया लोहार समुदाय के 65.6 प्रतिशत बच्चों का कभी स्कूल में दाखिला नहीं हुआ था।
जगदीश के अनुसार उनके यहाँ शौचालय भी नहीं है। 15–20 बच्चों में अगर दो–तीन बच्चे ही स्कूल जा पा रहे हैं तो क्या फायदा? सबके बच्चे काबिल बनें, सबका एक स्थायी जगह हो। जिनके पास स्थायी घर नहीं है, वो अपने बच्चों को रखकर भी नहीं जा सकते।
जगदीश के तीन बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं — एक नौ साल का, एक पांच साल का और एक उनसे छोटी बच्ची है।
Wildlife protection Act कानून ने जंगली जानवरों के व्यापार या रोज़गार के लिए इस्तेमाल पर सख्त रोक लगा दी। इससे वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए अच्छा माहौल बना, लेकिन हजारों सपेरों की रोज़ी-रोटी गैरकानूनी हो गई।
राजस्थान के ही टोंक ज़िले में मदारी समुदाय के असरफ़ अली का परिवार कभी घूम-घूमकर भालू का खेल दिखाता लेकिन अब इस पर रोक लग गई ।

असरफ़ अली गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “हम लोग भालू का खेल दिखाते थे। पर जब से सरकार ने हमारा ये काम छीन लिया है, ना ही हमें कुछ रोजगार दिया है। हमारे समुदाय के लोग दर-दर भटक रहे हैं, उनके पास कोई रोजगार नहीं है। और जो प्रधानमंत्री आवास योजना से पैसे मिलते हैं उसका भी हमारे लोगों को लाभ नहीं मिल रहा है, क्योंकि हमारी बस्ती तक वो योजना पहुंच ही नहीं पा रही है।”
अली अपनी मांग रखते हुए कहते हैं, “सरकार ऐसी बस्तियों को चिन्हित करके लोगों को घर दे और बच्चों के लिए स्कूल बनाए। हमारे समुदाय के लोग शिक्षा से भी वंचित हैं, जिस कारण से वो काम नहीं कर पाते हैं, बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं, इसलिए रोजगार नहीं मिल पाता।”
मदारी समुदाय के नूर मोहम्मद कलंदर, घुमन्तु समुदाय के लिए लड़ते आ रहे हैं, उन्होंने इसके लिए घुमन्तु साझा मंच की शुरूआत की है, गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “यह बस्ती भालू और मदारी का खेल तमाशा करने वालों की है। पूरे भारत में अगर देखा जाए तो घुमंतू और मदारी समाज बहुत पिछड़ा हुआ है। हमारे राजस्थान में घुमंतू समुदाय की 50 जातियां हैं, जिनमें से 32 जातियां सरकार की सूची में हैं, बाकी जातियां सरकार की सूची में नहीं हैं। उन्हें भी सूची में लिया जाए।”
नूर आगे बताते हैं, “यह मदारी समाज की बस्ती है, यहाँ 60 परिवार डेरे और तंबू में रहते हैं। इनके पास कोई शौचालय की सुविधा नहीं है। बहन-बेटियों को बाहर जाना पड़ता है। हम लोग घुमंतू समाज से हैं, इसलिए कभी जंगल में, कभी नाले के पास रहते हैं। घुमंतू जीवन जीने की वजह से हमारे पास न खेती की जमीन है, न मकान। सरकार के रोक लगाने से बहुत सारे लोग बेरोजगार हो गए हैं। इसी कारण गलत लोग नशे का कारोबार करने लगे हैं, भीख मांगते हैं। हमारे पास कोई आधार कार्ड और ज़रूरी दस्तावेज नहीं हैं, इसलिए हम सरकार की कोई भी योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।”
हाल ही में एक प्रेस रिलीज़ आई है जो 1 अप्रैल को जारी हुई थी, जिसमें कहा गया कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में 268 समुदायों के वर्गीकरण के लिए एक समिति गठित की गई है जिन्हें अब तक वर्गीकृत नहीं किया गया है।
विमुक्त जनजातियों के आर्थिक सशक्तिकरण की योजना (SEED) के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में 15 करोड़ रुपये और 2024-25 में 32.43 करोड़ रुपये जारी किए गए, जिसमें आजीविका घटक के अंतर्गत 32,936 लाभार्थी, निःशुल्क कोचिंग घटक के तहत 551 लाभार्थी और स्वास्थ्य बीमा के तहत 2608 लाभार्थी शामिल हैं।
नूर अपनी मांग रखते हुए कहते हैं, “सरकार कैंप लगाकर घुमंतू समाज की बस्तियों में दस्तावेज़ बनवाए। यहां किसी का भी प्रधानमंत्री आवास पास नहीं हुआ है। सरकार हमारी तरफ ध्यान दे जिससे हम भी देश के विकास में योगदान दे सकें।”
प्रेम नट, नट समुदाय संघर्ष समिति के संयोजक, गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “पहले जो धब्बा ब्रिटिश समय में लगाया गया था, वो आज भी है। अगर कहीं जानवर चोरी हुए होंगे तो पुलिस अचानक आ जाती है और पूरा दोष नट समुदाय पर लग जाता है। हमारा समुदाय सदियों से पीड़ित है।”
प्रेम आगे बताते हैं, “बहुत सारी योजनाओं से भी हम वंचित हैं। हमारे पास खुद की भूमि भी नहीं है। हमारा समाज बहुत तकलीफ और परेशानी से गुजर रहा है। जब हम प्रशासन से मदद की गुहार लगाते हैं तो कोई नहीं सुनता। हम दोहरी परेशानियों से जूझ रहे हैं — एक तरफ समाज से और दूसरी तरफ प्रशासन से।”
प्रेम और नट समुदाय संघर्ष समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट के अनुसार, जून 2024 से दिसंबर 2024 तक राजातालाब ब्लॉक के कराची लाइन देकर बस्ती में किसी के पास राशन कार्ड नहीं है। लगभग 20 बच्चों के पास आधार कार्ड नहीं है। छह गाँवों — भरहरिया, नहवानीपुर, चक्का मुसहर बस्ती, गोकुलपुर, बारेमा, सिहोरवा उत्तरी — में लगभग 19 लोगों ने घर और शौचालय के लिए आवेदन किया, जिसमें से 9 लोगों का अनुरोध स्वीकार हुआ, लेकिन बाकी 10 लोगों को अभी तक कोई लाभ नहीं मिला। (Report, प्रेम और नट समुदाय संघर्ष समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट )
कई इलाकों में आधार कार्ड, राशन कार्ड और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। मुख्य रूप से दूरी के कारण बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं।
इदाते आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, यह ज़रूरी है कि प्रदेशों के पास राज्य/संघ शासित क्षेत्रों के विभिन्न जिलों में NT/DNTs की जनसंख्या की जानकारी हो। DNT परिवारों का एक सर्वे किया जाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि वे कहां रह रहे हैं। जाति आधारित जनगणना 2011 में हुई थी लेकिन उसके परिणाम अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। आयोग ने सिफारिश की है कि कम से कम DNT/NT समुदायों के संबंध में ये आंकड़े जारी किए जाएं ताकि केंद्र और राज्य को नीति बनाने में आसानी हो। इन समुदायों के लिए जो भी सिफारिशें की गई हैं, वे आज तक लागू नहीं हो पाई हैं।

सरकार ने फरवरी 2019 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों (DWBDNC) के लिए एक विकास और कल्याण बोर्ड का गठन किया है। इसके अलावा, विमुक्त और घुमंतू जनजातियों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए SEED योजना भी शुरू की गई है, जिसे DWBDNC द्वारा लागू किया जा रहा है।
प्रद्युत बोरदोलोई, सांसद, असम के नागांव संसदीय क्षेत्र से, उन्होंने लोकसभा में NT, DNT और SNT समुदायों के बारे में सवाल पूछे थे — जैसे कि क्या अभी तक नॉर्थ ईस्ट में इनके लिए कोई समिति गठित हुई है या नहीं, और क्या इन समुदायों का वर्गीकरण (classification) हुआ है या नहीं। इस पर लोकसभा ने उत्तर दिया कि अभी तक नॉर्थ ईस्ट में कोई विशेष समिति नहीं है और अभी तक इन समुदायों का वर्गीकरण नहीं हुआ है। हालांकि, SEED योजना के तहत 2023-24 में 15 करोड़ रुपये और 2024-25 में 32.43 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
वित्तीय वर्ष 2023-24 में डीनोटिफाइड जनजातियों (DNTs) के आर्थिक सशक्तिकरण की योजना (SEED) के तहत ₹15 करोड़ और वर्ष 2024-25 में ₹32.43 करोड़ जारी किए गए। इस योजना के तहत 32,936 लोगों को आजीविका, 551 लोगों को फ्री कोचिंग और 2,608 लोगों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिला।
2005 के रेनके आयोग ने उस समय उनकी जनसंख्या लगभग 10 से 12 करोड़ होने का अनुमान लगाया था, हालांकि समुदाय के नेताओं का अनुमान है कि अब तक उनकी जनसंख्या 25 करोड़ से अधिक हो गयी होगी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ANSI) और जनजातीय शोध संस्थानों (TRI) ने विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों पर एक व्यापक अध्ययन पूरा कर लिया है, जिसमें 268 पहले से अवर्गीकृत समुदायों का नया वर्गीकरण किया गया है। नीति आयोग द्वारा किए गए इस अध्ययन में 179 समुदायों को SC, ST और OBC की सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई है, जिनमें से कम से कम 85 सिफारिशें वर्तमान सूची में नए नाम जोड़ने के लिए हैं।
इदाते आयोग (Idate Commission) ने पूरे भारत में कुल 1,526 विमुक्त (DNT), घुमंतू (NT) और अर्ध-घुमंतू (SNT) जनजातियों की पहचान की, जिनमें से 269 समुदाय अभी भी SC, ST या OBC के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में इदाते आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 28 समुदाय ऐसे हैं जिन्हें अभी तक किसी भी श्रेणी में शामिल नहीं किया गया है।
तब से लोकुर समिति (1965), मंडल आयोग (1980), रेनके आयोग (2008) और इदाते आयोग (2017) ने देश भर में इन जनजातियों को वर्गीकृत करने की कोशिश की है। लेकिन वे सभी समुदायों की पहचान करने में अब तक सफल नहीं हो पाए हैं।
रमा शंकर सिंह, इंडिपेंडेंट रिसर्च स्कॉलर, गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2022 में SEED योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य NT/DNT समुदायों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और आवास के लिए पांच सालों में ₹200 करोड़ देना है। ये समुदाय ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित, भूमिहीन और बुनियादी सुविधाओं से दूर रहे हैं। योजना एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन उनकी ज़रूरतों के मुकाबले ₹200 करोड़ बहुत कम है। इन समुदायों के लिए बेहतर संसाधन और सही तरीके से मदद पहुँचाना ज़रूरी है।”
रमा आगे कहते हैं, ‘स्मार्टफोन की मदद से अब NT/DNT समुदाय अपनी बात सामाजिक और सांस्कृतिक मंचों पर बेहतर ढंग से रख पा रहे हैं। हाल के सालों में कई युवा शोधकर्ताओं ने इन समुदायों पर काम किया है और उनकी माँगों को आगे बढ़ाया है। उत्तर प्रदेश में फील्डवर्क के दौरान मैंने देखा कि इन समुदायों में कई युवा नेता उभर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी भी ज़्यादा पहचान नहीं मिल पाई है।”
“यह बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है, जिसमें तकनीक और जमीनी प्रयास मदद कर रहे हैं। हालांकि असरदार बदलाव आने में अभी समय लगेगा। एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इन समुदायों पर गहराई से सर्वे कर रहा है। 2022 में उनके कुछ शोधकर्ताओं ने मुझसे भी संपर्क किया था। मेरा मानना है कि इनकी ज़िंदगी सुधारने के लिए एक मजबूत राजनीतिक और विकास योजना ज़रूरी है, ताकि इनकी आवाज़ सुनी जा सके” ,रमा शंकर ने आगे कहा।
सरकार ने फरवरी, 2019 में विमुक्त, घुमंतू और अर्ध घुमंतू समुदायों (DWBDNCs) के लिए एक विकास और कल्याण बोर्ड का गठन किया है। इसके अलावा, विमुक्त और घुमंतू जनजातियों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए योजना (एसईईडी) शुरू की गई है और इसे DWBDNCs द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
रेनके आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 42% डीएनटी समुदायों और 28% एनटी समुदायों के पास स्कूली शिक्षा तक पहुंच है। डीएनटी-एनटी परिवारों की आय और आजीविका की असुरक्षा को देखते हुए, बच्चों को परिवार की आय में वृद्धि करने के लिए बहुत कम उम्र से ही आय अर्जित करने वाली गतिविधियों में शामिल किया जाता है।
ग्लोबल कॉल टू एक्शन अगेंस्ट पावर्टी के रिपोर्ट के मुताबिक, “ विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास की योजना के लिए 2020-21 में 10 करोड़ रुपये (100 मिलियन रुपये) का बजटीय आवंटन था, केंद्रीय बजट 2021-22 में इस योजना के लिए कोई आवंटन नहीं था। हालाँकि 2020-21 के लिए विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों (DWBDNCs) के लिए विकास और कल्याण बोर्ड के लिए बजटीय आवंटन 1.24 करोड़ रुपये (12.4 मिलियन रुपये) था, 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान मात्र 0.30 करोड़ रुपये (3 मिलियन रुपये) थे। इसके अलावा, जबकि 2021-22 के केंद्रीय बजट में आवंटन 5 करोड़ रुपये (50 मिलियन रुपये) है, पिछले वित्तीय वर्ष में धन के कम उपयोग को देखते हुए, वास्तविक लागत अभी भी देखा जाना बाकी है। आवंटन और लागत में भारी अंतर समुदाय के लिए एक सुसंगत और सुविचारित कल्याण योजना के अभाव को दर्शाता है।“