सरकार का मूल्यांकन करते समय उसे एकपक्षीय न देखकर सम्पूर्णता में देखना चाहिए

नेहरू सरकार को एक जर्जर राष्ट्र मिला था, जबकि मोदी सरकार को अपेक्षाकृत स्थिर बुनियादी ढाँचा मिला। धारा 370 हटाना और तीन तलाक समाप्त करना असंभव से लगते काम थे, जिन्हें वर्तमान सरकार ने किया।

भारत की आज़ादी के समय मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग भारत को विभाजित कर संपूर्ण मुस्लिम समाज के लिए एक अलग देश चाहती थी। इसके विपरीत, गांधी जी किसी भी कीमत पर भारत का विभाजन नहीं चाहते थे — चाहे मोहम्मद अली जिन्ना को ही अविभाजित भारत का प्रधानमंत्री क्यों न बनाना पड़े। नेहरू जी और वल्लभभाई पटेल को यह बड़ा त्याग स्वीकार नहीं था, और शायद नेहरू जी सोचते थे कि यदि भारत का विभाजन हो जाए तो खून-खराबा रुक जाएगा।

परंतु देश का बंटवारा भी हुआ और खून-खराबा भी नहीं रुका। लाखों लोग विस्थापित हुए और लाखों मारे गए। नेहरू जी ने माउंटबेटन और जिन्ना के साथ बैठकर भारत के विभाजन पर हस्ताक्षर किए और देश आज़ाद हुआ, लेकिन गांधी जी आज़ादी के जश्न में शामिल नहीं हुए।

जब देश का बंटवारा हुआ और मुस्लिम समाज के लिए अलग पाकिस्तान बन गया, तब भी पाकिस्तान से बड़ा मुस्लिम समाज भारत में रह गया। कुछ लोग स्वेच्छा से रुके और कुछ मजबूरी में। 1946 में सेपरेट इलेक्टोरेट के अंतर्गत जब मुस्लिम उम्मीदवारों को मुस्लिम और हिन्दू उम्मीदवारों को हिन्दुओं ने वोट दिया, तो कांग्रेस के किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार की जीत नहीं हो पाई थी। इससे लगता है कि अधिकांश मुस्लिम समाज अपने लिए अलग होमलैंड चाहता था, हालांकि सभी नहीं।

जो चाहते थे, वे यह नहीं जानते थे कि उन्हें घर, ज़मीन-जायदाद छोड़कर दूर जाना होगा। वे न जा सके, न गए। आज भी इंडोनेशिया के बाद सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भारत में है। ऐसी स्थिति में नेहरू जी ने मुस्लिम समाज में विश्वास जगाया कि उन्हें वही अधिकार मिलेंगे जो हिंदुओं को प्राप्त हैं। मुस्लिम समाज ने उन पर भरोसा किया और नेहरू जी ने भी उस भरोसे को निभाया।
यह स्पष्ट हो गया कि भारत का संचालन एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था के अंतर्गत होगा।

देश की नीतियाँ समय, परिस्थिति और आंशिक रूप से शासकों की सोच के आधार पर बनती हैं। नेहरू काल में विश्व राजनीति दो गुटों में विभाजित थी — साम्यवादी और पूंजीवादी। नेहरू जी ने इंडोनेशिया के सुकर्णो, घाना के क्वामे नक्रूमा, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन खड़ा किया।

यह आंदोलन कहने को तो गुटनिरपेक्ष था, लेकिन भारत का झुकाव सोवियत संघ की ओर अधिक था। कश्मीर के मुद्दे पर भारत को रूस का समर्थन मिला, जबकि पाकिस्तान को अमेरिका का। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष आंदोलन अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल सका।

नेहरू सरकार ने तटस्थ विदेश नीति अपनाई, जो दूरदर्शिता का संकेत था। परंतु समाजवादी सोच और सोवियत झुकाव के कारण अमेरिका ने भारत को कभी तटस्थ नहीं माना। परिणामस्वरूप अमेरिका ने पाकिस्तान को अपने गुट में मिला लिया, जबकि रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के पक्ष में, विशेष रूप से कश्मीर पर, वीटो का प्रयोग किया।

आज मोदी सरकार भी नेहरू की तटस्थ नीति को अपनाए हुए है, पर वैश्विक स्तर पर उस पर शंका नहीं होती।

1952 में स्वतंत्र भारत का पहला आम चुनाव हुआ, जिसमें नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार लागू किया। उस समय दुनिया के अधिकांश नवस्वतंत्र देशों में तानाशाही प्रचलित थी, जबकि भारत में जाति, लिंग और शिक्षा की बाधा से परे सभी को मताधिकार मिला।

पश्चिमी देशों में महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं था, भारत ने उन्हें यह अधिकार दिया। फिर भी सनातन हिंदू समाज पूरी तरह संतुष्ट नहीं था और 1952 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने नेहरू जी के खिलाफ चुनाव लड़ा। वे हार गए, लेकिन मुकाबला रोचक रहा।

नेहरू जी के नेतृत्व में जब “हिंदी-चीनी भाई-भाई” के नारे लगे और चीन से मैत्री बढ़ी, तब यह कल्पना भी नहीं थी कि वही चीन 1962 में भारत से युद्ध करेगा। भारत की पराजय ने नेहरू सरकार की साख को धक्का पहुँचाया। माना जाता है कि सेना ने वायुसेना की मदद माँगी थी, लेकिन अनुमति नहीं मिली।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन विकासशील और निर्धन देशों का मंच था, जिनके पास न सैन्य शक्ति थी, न धनबल। 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय अमेरिका ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना युद्धपोत भेजा, जवाब में रूस ने भारत के पक्ष में ताकत दिखाई। कश्मीर पर कई बार रूस ने भारत के लिए वीटो का इस्तेमाल किया।

नेहरू अपने जीवन में अत्यंत लोकतांत्रिक सोच वाले व्यक्ति थे, लेकिन उनका प्रधानमंत्री बनना पूरी तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नहीं हुआ था। देश की अधिकांश कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं, पर गांधी जी ने पटेल को नाम वापस लेने के लिए राज़ी किया और नेहरू जी को उत्तराधिकारी बना दिया।

स्वतंत्रता के बाद भारत आर्थिक रूप से बेहद जर्जर स्थिति में था। खेतों के लिए पानी और उद्योगों के लिए बिजली की भारी कमी थी। नेहरू सरकार ने दूरदर्शिता दिखाते हुए भाखड़ा नांगल, रिहंद, कोयना जैसे बड़े बाँध बनाए। इससे जलविद्युत और सिंचाई दोनों की व्यवस्था बनी।

लेकिन ग्रामीण विकास उपेक्षित रह गया। गाँव बिजली, सड़क और संस्थानों से वंचित रहे। 60 के दशक में जब देश में खाद्यान्न संकट आया और चीन से युद्ध हुआ, तब तक नेहरू नहीं रहे। लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान जय किसान” का नारा देकर ग्राम विकास पर ध्यान केंद्रित किया।

नेहरू सरकार ने योजना आयोग का गठन किया और पंचवर्षीय योजनाएँ लागू कीं। परंतु धन आवंटन में शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को उपेक्षित किया गया। बड़े बाँधों से कई गाँव उजड़े, जिन्हें मुआवज़ा भी ठीक से नहीं मिला। छोटे बाँधों की ओर रुख किया गया होता तो लागत कम और लाभ अधिक हो सकता था।

सरकार ने बड़े-बड़े स्टील प्लांट (भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला) शुरू किए, IITs खोले — पर ये संस्थान गाँवों की पहुँच से दूर थे। मंडल कमीशन को नजरअंदाज किया गया। नेहरू के बाद जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी, तब मंडल की सिफारिशें लागू की गईं।

जहाँ दुनिया की अधिकतर जगहों पर महिलाएँ अधिकारों से वंचित थीं, भारत में उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए। मोदी सरकार ने तीन तलाक समाप्त कर मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाया।

इंदिरा गांधी के शासन में आपातकाल लगा, जिससे लोकतंत्र और जनमत का दमन हुआ। जेलों में यातनाएँ दी गईं, ज़बरन नसबंदी कराई गई। लोगों ने इस अन्याय का जवाब अगली सरकार में दिया। जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल के समय के संविधान संशोधनों को रद्द किया।

नेहरू सरकार को एक जर्जर राष्ट्र मिला था, जबकि मोदी सरकार को अपेक्षाकृत स्थिर बुनियादी ढाँचा मिला। धारा 370 हटाना और तीन तलाक समाप्त करना असंभव से लगते काम थे, जिन्हें वर्तमान सरकार ने किया।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था, “एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे।” वह बात अब पूरी होती दिख रही है। देश समान नागरिक संहिता की ओर आशाभरी नजरों से देख रहा है।

भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। प्रति व्यक्ति आय में सुधार हुआ है, और लोगों के लिए भोजन, वस्त्र और आवास की स्थिति पहले से बेहतर है।

हो सकता है भारत फिर “सोने की चिड़िया” न बने, पर ज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बनने की दिशा में निरंतर कदम बढ़ा रहा है — और यही उम्मीद की जाती है कि ये प्रगति अविराम बनी रहेगी।

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