ट्रैफिक पुलिस की नौकरी : ना तो खाने का ठिकाना, ना सोने का वक्त

Abhishek PandeyAbhishek Pandey   15 Sep 2017 7:17 PM GMT

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ट्रैफिक पुलिस की नौकरी : ना तो खाने का ठिकाना, ना  सोने का वक्तजाम लगने पर या ट्रैफिक कंट्रोल के लिए ट्रैफिक पुलिस को ऐसे भी काम करने होते हैं।

लखनऊ। जिनके ऊपर पूरे शहर का जिम्मा रहता है वह खुद अपनी दुश्वारियों से रोजाना दो-चार होते हैं। हम बात कर रहे हैं उन ट्रैफिक कर्मियों के जिनके कंधे पर उत्तर प्रदेश की ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने का जिम्मा है।
रोजाना सुबह 9 बजे से रात के 10 बजे तक ट्रैफिक पुलिस ड्यूटी के दौरान ना तो ठीक से खाना खा पाते है ना ही सोने का वक्त मिल पाता है। ट्रैफिक पुलिस कर्मी अपना दर्द बयां करते हुए बताते हैं कि, ड्यूटी पूरी करते-करते घर परिवार को कही पीछे छोड़ आते हैं और घर के ज्यादातर जरुरी काम पड़ोसी के भरोसे छोड़ देते हैं। बीमार होने पर भी अवकाश के लिए दो पहले मुख्यालय को सूचना देना पड़ता है कि हम बीमार होने वाले हैं।

ट्रैफिक कर्मी अपनी ड्यूटी को लेकर इतने मशगूल होते है कि, कम उनके घर में बच्चा बड़ा हो जाता है उन्हें खुद को नहीं मालूम होता। इसके पीछे ट्रैफिक पुलिस का तर्क है कि, जब सुबह होने पर सो कर उठते हैं तब बेटा और बेटी स्कूल चले जाते हैं, जबकि रात को ड्यूटी कर घर पहुंचते है तब बच्चे खाना खा कर सोते रहते हैं। ट्रैफिक कर्मियों के बच्चे अक्सर घर में अपनी मां से कहते हैं कि, क्या मम्मी और माता-पिता की तरह हम भी अपने पापा के साथ बाहर कभी एक साथ घूमने जा पायेगे।

रोजाना ट्रैफिक ड्यूटी करने के चलते आंखों में जलन और मानसिक अवसाद संबंधित बीमारी तो आम बात सी हो गई है। अपने ही घर में बच्चों से पापा शब्द सुने तो महीनों बीत जाते हैं।”
प्रेम शंकर शाही, टीएसआई, लखनऊ ट्रैफिक पुलिस

टीएसआई प्रेम शंकर शाही कहते हैं, “रोजाना ट्रैफिक ड्यूटी करने के चलते आंखों में जलन और मानसिक अवसाद संबंधित बीमारी तो आम बात सी हो गई है, फिर भी अपने ड्यूटी तो करते ही हैं।अपने ही घर में बच्चों से पापा शब्द सुने तो महीनों बीत जाते हैं।” ये दर्द सिर्फ प्रेम शाही का ही नहीं बल्कि सभी ट्रैफिक कर्मियों का है, जो सबकुछ सह कर भी अपना दर्द नहीं बयां कर पाते।

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वहीं ट्रैफिक सिपाही आरके यादव कहते हैं, “पत्नी और बच्चे अगर बीमार पड़ जाये तो उन्हें वक्त न मिलने के चलते डॉक्टर के यहां ले जाने के लिए सोचना पड़ता है।”
देश की सुरक्षा के लिए हमारे सैनिक सियाचीन का बर्फीला तूफान हो या फिर राजस्थान की रेत में चिलचिलाती धूप को भी मात दे देते हैं। कमोबेश ऐसे ही हालात प्रदेश के ट्रैफिक कर्मियों का भी है। ट्रैफिक कर्मी शहर की यातायात व्यवस्था को दुरस्त रखने के लिए 50 डिग्री तापमान में बिना बैठे, बिना छाव के लगातार आठ से 10 घंटे तक ड्यूटी करते हैं। तेज धूप हो या, कड़ाके की सर्दी या फिर बारिश। यातायात सिपाहियों को ड्यूटी के दौरान कोई भी सुविधा मुहैया नहीं कराई जाती। जबकि राजधानी के 70 चौराहों पर आईलैंड बनवाने के लिए पिछले कई सालों से शासन को प्रस्ताव भेजा जा रहा है, लेकिन देखने वाली बात यह है कि, इसे जमीन पर कब उतारा जायेगा।

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ड्यूटी के दौरान ट्रैफिक पुलिस ।


बीते कई सालों से जिस तरह से शहरों में लोगों का आगमन हो रहा है। गाडिय़ों की तादात बढ़ती जा रही है उससे ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा सी गई है। हर हथकंडे अपनाए जा चुके हैं,लेकिन शहरवासियों को जाम की समस्या से निजात नहीं मिल पाई है। यातायात को दुरुस्त रखने के लिए यातायात पुलिस कर्मी परिवार को पीछे छोड़ रात दिन लगे रहते हैं लेकिन उनकी कोशिशें नाकाफी साबित हो रही है। एक तो यातायात में पुलिस कर्मियों की कमी दूसरा संशाधनों की कमी इसकी सबसे बड़ी वजह बनी हुई है। बावजूद सीमित संशाधन के यातायात पुलिस कर्मी तेज धूप, बारिश और सर्दी में भी ड्यूटी कर यातायात को सुचारू रूप से चालू रखने की कोशिश करते हैं।

स्कूली वाहन की चेकिंग करती ट्रैफिक पुलिस। फाइल फोटो

आलम यह है कि यातायात कर्मियों को किसी चौराहे पर छाव नसीब नहीं होती, जिसके चलते आठ से 10 घंटे तक लगातार खड़े होकर यातायात चलाना पड़ता है। इन सबसे के बीच अगर कोई भी कर्मी दो मिनट के लिए भी छाव ढूंढता आईलैंड छोड़ता है तो उसे सीधे तौर पर निलंबित कर दिया जाता है। अपनी इन दिक्कतों को अधिकारी के सामने बताने पर उनके खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई करने से भी उच्चधिकारी बाज नहीं आते। वहीं इस मुद्दे पर एडीजी ट्रैफिक एमके बसाहाल ने कहा कि, जल्द ही प्रदेश में ट्रैफिक कर्मियों की दुश्वरियों को सुधारने के लिए कई उठाये जायेगे, जो आने वाले वक्त पर जमीन पर दिखाई देखा।

ट्रैफिक आईलैंड महज तमाशा


प्रदेश में करीब 180 चौराहों में तकरीबन 134 चौराहें पर आईलैंड तो बना दिए गए, जहां ट्रैफिक कर्मी धूप, बारिश व सर्दी से बचकर ड़्यूटी कर सके, लेकिन अगर इन आईलैंडों की सच्चाई देखी जाए तो ये आईलैंड महज शोपीस बनकर रह गए है। जहां ट्रैफिक कर्मी को धूप से बचत होती है न बारिश व सर्दी से। इतना ही नहीं सूबे में कई ऐसे प्वाइंट भी हैं, जहां वीवीआईपी मूवमेंट सबसे अधिक होता है, लेकिन वहां पर तो आईलैंड तक नहीं बनाए गए, जिससे परेशानियों का समाना ट्रैफिक कर्मियों को करना पड़ता है। वहीं यातायात विभाग की दुश्वारियां व ट्रैफिक कर्मियों को सुविधाएं देने के लिए हर साल लाखों रुपए का बजट आता है, लेकिन आला अफसरों की उदासीनता का आलम यह है कि यह बजट कहां खर्च होता है और उसका विभाग पर कितना असर दिखता है यह बड़ा सवाल है, जिसे न कोई देखने वाला है और ना ही सुनने वाला।

तेज गर्मी से हो गई मौतें

लगातार तेज धूप में ड्यूटी करने के दौरान बीते साल दो यातायात पुलिस कर्मियों की मौत हो चुकी है। इतना ही नहीं कई कर्मी बीमार पड़ चुके हैं। लेकिन विभाग के लिए यातायात कर्मियों की दुश्वारियां आम बात हो चुकी है।

प्रदेश में ट्रैफिक कर्मियों का आंकड़ा

ट्रैफिक इंस्पेक्टर-9
टीएसआई-90
हेड कांस्टेबल-501
कांस्टेबल-3056
राजधानी लखनऊ का आंकड़ा
ट्रैफिक इंस्पेक्टर-8
टीएसआई-30
हेड कांस्टेबल-123
कांस्टेबल-718

ट्रैफिक के सहयोग के लिए दिए गये इतने पुलिस कर्मी
इंस्पेक्टर -86
सब-इंस्पेक्टर-1069
हेड कांस्टेबल-3431
सिपाही-8595

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बिहार ट्रैफिक पुलिस पर आई रिसर्च रिपोर्ट


बिहार की राजधानी पटना में 26 फीसदी पुलिसकर्मी मानसिक अवसाद से ग्रसित हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सोशिएक्ट्रिस कंसल्टेंसी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के खुलासे के बाद मिली है। इसके साथ ही विभागीय हेल्थ जांच रिपोर्ट के अनुसार लगभग 68 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिसकर्मी आंख की जलन और घुटने के दर्द से परेशान रहते हैं। जबकि, 46 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिस कर्मी कंधे और गर्दन की समस्या से ग्रसित हैं। लगभग 52 प्रतिशत ट्रैफिक पुलिस कर्मी सुनने की समस्या से त्रस्त हैं। साथ ही माइग्रेन व पेट दर्द की आम बीमारी हो गयी है।

यूपी के मुकाबले बिहार में ट्रैफिक पुलिस को मिलती है अधिक सुविधाएं


ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को पूरे साल के मेटनेंस के लिए सरकार आठ हजार रुपए देती है। जिसमें सौ रुपये प्रतिमाह पैंट-शर्ट की धुलाई के साथ जूते की पॉलिश भी शामिल है। इसके अतरिक्त चार हजार रुपए प्रति वर्ष गरमी और ठंड के लिए कपड़ों की सिलाई शामिल है। साथ ही, 2800 रुपये अन्य मद में खर्च के लिए दिये जाते हैं। जबकि, सिपाही रैंक के अधिकारी को लगभग 5200 रुपये प्रति वर्ष मिलते हैं। इससे बिल्कुल उलट यूपी में ट्रैफिक कर्मियों को बहुत कम भत्ता मिलता है, जिससे उनकी रोमर्रा की जरुरते भी पूरी नहीं हो पाती।

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