By Anil Tiwari
पर्यावरणविदों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ रही खनन गतिविधियों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास खत्म होते जा रहे हैं। इन जंगली हाथियों ने वहां से पलायन कर अब मध्य प्रदेश के जंगलों में स्थित गांवों की और रुख किया है। जिस वजह से इंसान और हाथी के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
पर्यावरणविदों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ रही खनन गतिविधियों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास खत्म होते जा रहे हैं। इन जंगली हाथियों ने वहां से पलायन कर अब मध्य प्रदेश के जंगलों में स्थित गांवों की और रुख किया है। जिस वजह से इंसान और हाथी के बीच संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
By Anil Tiwari
मध्य प्रदेश में अब तक कम से कम 2,500 डेंगू के मामले सामने आ चुके हैं। और इधर वायरल बुखार के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। ऐसे में सीधी जिले के लोग ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे के न होने की शिकायत कर रहे हैं। वे इलाज के लिए बंगाली या फिर झोलाछाप डॉक्टरों के पास जा रहे हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र जर्जर हैं और केविड-19 की दूसरी लहर से कोई सबक नहीं सीखा गया है।
मध्य प्रदेश में अब तक कम से कम 2,500 डेंगू के मामले सामने आ चुके हैं। और इधर वायरल बुखार के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। ऐसे में सीधी जिले के लोग ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे के न होने की शिकायत कर रहे हैं। वे इलाज के लिए बंगाली या फिर झोलाछाप डॉक्टरों के पास जा रहे हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र जर्जर हैं और केविड-19 की दूसरी लहर से कोई सबक नहीं सीखा गया है।
By Anil Tiwari
मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में कई आदिवासी भूमिहीन किसानों के पास एक जबानी (मौखिक) करार है, जिसे तिहैया के रूप में जाना जाता है। ‘तिहैया’ किसानों को फसल का कुछ हिस्सा उन जमींदारों को देने के लिए बाध्य करता है, जो उन्हें जमीन पट्टे पर देते हैं। इसके तहत किसानों द्वारा उगाई जाने वाली उपज का दो-तिहाई हिस्सा जमीदारों को देना पड़ता है। तिहैया किसान अक्सर कर्ज के जाल में फंसे रहते हैं।
मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में कई आदिवासी भूमिहीन किसानों के पास एक जबानी (मौखिक) करार है, जिसे तिहैया के रूप में जाना जाता है। ‘तिहैया’ किसानों को फसल का कुछ हिस्सा उन जमींदारों को देने के लिए बाध्य करता है, जो उन्हें जमीन पट्टे पर देते हैं। इसके तहत किसानों द्वारा उगाई जाने वाली उपज का दो-तिहाई हिस्सा जमीदारों को देना पड़ता है। तिहैया किसान अक्सर कर्ज के जाल में फंसे रहते हैं।