छुट्टा पशु विशेष तौर पर संकर नस्ल की गाय एक बड़ी समस्या हैं, इनसे निपटना एक बड़ी चुनौती है। इन अनुत्पादक संकर नस्ल की गायों का उपयोग भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक से सरोगेट के रुप में इस्तेमाल करके उन्हें उत्पादक बनाया जा सकता है। सरकार इसको बढ़ावा देने के लिए एक योजना भी चला रही है।
एनिमल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंड फंड (एएचआईडीएफ) है यानि की पशुपालन अवसंरचना विकास फंड भारत सरकार की योजना है, जिसके लिए पूरे देश के लिए 15000 करोड़ रुपए के फंड का प्रावधान किया गया है।
पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश के उप निदेशक (नियोजन) डॉ वीके सिंह पशुपालन अवसंरचना विकास फंड (एएचआईडीएफ) के बारे में विस्तार से बताते हैं, “दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं हैं, इसी के तहत एक योजना भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक की है।”
भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक के बारे में वो विस्तार से समझाते हैं, “जो हमारे यहां कई नस्लें हैं, जो बढ़िया दूध उत्पादन तो देती हैं, लेकिन उस नस्ल के बच्चे हम खरीदना चाहे तो आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं। इसके लिए एक नई तकनीक आईवीएफ है, जोकि इंसानों में भी होता आ रहा है, वही तकनीक गायों में भी इस्तेमाल की जा रही है।”
क्या है भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer)
मल्टीपल ओव्यूलेशन और एम्ब्रियो ट्रांसफर (MOET) तकनीक के रूप में भी जाना जाता है, इसका उपयोग बेहतर मादा डेयरी जानवरों की प्रजनन दर को बढ़ाने के लिए किया जाता है। आम तौर पर, एक साल में एक गाय से एक बछड़ा/बछिया प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन एमओईटी तकनीक के इस्तेमाल से एक गाय/भैंस से एक साल में 10-20 बछड़े मिल सकते हैं। एक बढ़िया नस्ल की गाय/भैंस को सुपर-ओव्यूलेशन को प्रेरित करने के लिए एफएसएच जैसी गतिविधि वाले हार्मोन दिए जाते हैं। हार्मोन के प्रभाव में, मादा सामान्य रूप से उत्पादित एक अंडे के बजाय कई अंडे देती है। एस्ट्रस के दौरान 12 घंटे के बाद पर सुपर-ओवुलेटेड मादा का 2-3 बार गर्भाधान किया जाता है और फिर विकासशील भ्रूणों को फिर से प्राप्त करने के लिए इसके गर्भाशय को गर्भाधान के बाद मध्यम 7वें दिन से फ्लश किया जाता है। एक विशेष फिल्टर में फ्लशिंग माध्यम के साथ भ्रूण एकत्र किए जाते हैं और माइक्रोस्कोप के तहत भ्रूण की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है। अच्छी गुणवत्ता वाले भ्रूण या तो जमे हुए होते हैं और भविष्य में स्थानांतरण के लिए संरक्षित होते हैं या गर्मी की तारीख के लगभग सात दिनों के बाद प्राप्तकर्ता जानवरों में ताजा स्थानांतरित हो जाते हैं। इस प्रकार एक अच्छी नस्ल के डेयरी पशु से एक साल में कई बछड़ों का उत्पादन किया जा सकता है।
You can now avail the benefits of #AHIDF for the establishment of:
IVF centres for rapid genetic upgradation
Infrastructure for #ArtificialIinsemination with sex sorted semen
Breed Multiplication farms#FoodProcessing #AnimalHusbandry #AHIDFforNewIndia pic.twitter.com/aiyPG0GVog— Dept of Animal Husbandry & Dairying, Min of FAH&D (@Dept_of_AHD) June 24, 2021
देश में पहली भ्रूण हस्तांतरण प्रौद्योगिकी (ईटीटी) परियोजना की शुरुआत एनडीडीबी द्वारा 1987 में साबरमती आश्रम गौशाला (एसएजी), बिदाज में एक केंद्रीय ईटी प्रयोगशाला की स्थापना के द्वारा की गई थी। इस परियोजना को 5 वर्षों (अप्रैल 1987 – मार्च 1992) के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था। इस परियोजना के तहत, एनडीडीबी ने एसएजी बिदाज में एक मुख्य ईटी लैब और सीएफएसपी एंड टीआई, हेसरघट्टा (कर्नाटक), एबीसी, सैलून (यूपी), श्री नासिक पंचवटी पंजरापोल, नासिक (महाराष्ट्र) और भैंस प्रजनन केंद्र, नेकारिकल्लु (एपी) में चार क्षेत्रीय ईटी लैब की स्थापना की। ) एनडीडीबी ने देश भर में 14 राज्य ईटी केंद्रों की स्थापना में भी सहायता की।
इन- विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) प्रौद्योगिकी (In- Vitro Fertilization (IVF) Technology)
ओवम पिक-अप और इन विट्रो एम्ब्रियो प्रोडक्शन (ओपीयू-आईवीईपी) टेक्नोलॉजी के रूप में भी जाना जाता है। MOET तकनीक का उपयोग करके एक वर्ष में एक बेहतर मादा डेयरी पशु से 10-20 बछड़ा प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन ओपीयू-आईवीईपी तकनीक का इस्तेमाल करके एक गाय/भैंस से एक साल में 20-40 बछड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। एनडीडीबी ने भारतीय डेयरी किसानों के लिए प्रौद्योगिकी को वहनीय बनाने के अंतिम लक्ष्य के साथ मार्च 2018 में आरएंडडी और प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए आणंद में एक अत्याधुनिक ओपीयू-आईवीईपी सुविधा स्थापित की है। प्रौद्योगिकी की जानकारी हासिल करने के लिए, एनडीडीबी ने एम्ब्रापा डेयरी कैटल, ब्राजील के साथ सहयोग किया था।
एनडीडीबी ने अब तक यौन या पारंपरिक वीर्य का उपयोग करके आठ सौ से अधिक मवेशी आईवीएफ भ्रूण का उत्पादन किया है और ताजा और साथ ही जमे हुए आईवीएफ भ्रूण से 50 से अधिक गर्भधारण की स्थापना की है और कई आईवीएफ बछड़ों का उत्पादन किया है। गिर गाय में से एक ने 22 ओपीयू से 135 भ्रूणों का उत्पादन किया, जिसमें औसतन 26.7 अंडाणु/सत्र और 6.13 व्यवहार्य भ्रूण/सत्र थे। 16 गर्भधारण की पुष्टि हो चुकी है और 10 बछड़े पहले ही पैदा हो चुके हैं।
ऐसे ले सकते हैं इस योजना का लाभ
इस योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होता है, ये पूरी तरह से पेपरलेस प्रक्रिया है, जिस बैंक से लोन लेना चाहता हैं पहले से उस बैंक से बात कर लें अगर बैंक से परमिशन मिल जाती है तो ऑनलाइन उसे भी सबमिट कर दे। इसके आवेदन का एप्रूव करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें भारत और प्रदेश दोनों सरकार की तरफ से सदस्य होते हैं।
सबसे जरूरी बात अगर आप आवेदन कर रहे हैं तो आपके पास अपनी जमीन होनी चाहिए, या फिर लीज पर भी ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए कम से कम 30 साल का लीज होना चाहिए। सारे पेपर ऑनलाइन सबमिट करने के बाद अब कमेटी की तरफ से अप्रूवल मिल जाता है, तो आपको इसका लाभ मिल जाएगा।
पशुपालन अवसंरचना विकास निधि योजना से मिलने वाले लाभ
लाभार्थी को निवेश के रूप में न्यूनतम 10 प्रतिशत मार्जिन मनी का योगदान करना होता है। बाकी 90 प्रतिशत राशि अनुसूचित बैंकों द्वारा ऋण के रुप में उपलब्ध कराई जाएगी।। भारत सरकार द्वारा पात्र लाभार्थी को 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान दिया जाएगा। मूल ऋण राशि पर 2 वर्ष की मोहलत अवधि और उसके बाद 6 वर्ष की पुनर्भुगतान करने की अवधि होगी। एमएसएमई द्वारा निर्धारित सीमा के अंतर्गत आने वाली स्वीकृत परियोजनाओं को क्रेडिट गारंटी फंड की तरफ से क्रेडिट गारंटी उपलब्ध कराई जाएगी। दी जाने वाली गारंटी उधारकर्ता की क्रेडिट सुविधा का 25 प्रतिशत तक होगी।
योजना का लाभ लेने के लिए कैसे करें आवेदन
सबसे पहले उद्यमी पोर्टल https://ahidf.udyamimitra.in/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना होगा।
इसके बाद आपके सामने आवेदन प्रक्रिया शुरू करने के लिए पेज खुल जाएगा जहां आपको ऋण के लिए आवेदन करना होगा।
उसके बाद पशुपालन विभाग की ओर से आपके आवेदन की समीक्षा की जाएगी।
बैंक/ऋणदाता विभाग से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ऋण स्वीकृत किया जाएगा।