ज्यादा दूध देने वाली भैंस की इन 12 नस्लों के बारे में जानते हैं?

गाँव कनेक्शन | Feb 22, 2021, 10:58 IST
देश में भैंस की कई नस्ल हैं, हर एक की अपनी खूबियां हैं, कोई नस्ल किसी राज्य विशेष के लिए सही है तो कई नस्लें कई राज्यों में अच्छा दूध उत्पादन कर रही हैं।
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भारत, विश्व में भैंसों की सबसे अधिक आबादी वाला देश है और देश की एक बड़ी आबादी भैंस पालन से जुड़ी हुई है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश में कितनी तरह की भैंसे पायीं जाती हैं? कौन सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल है?

केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के अनुसार देश में भैंसों की मुर्रा, नीलीरावी, जाफराबादी, नागपुरी, पंढरपुरी, बन्नी, भदावरी, चिल्का, मेहसाणा, सुर्ती, तोड़ा, स्वैंप, तराई, जेरंगी, कालाहांडी, परालखेमुंडी, मंडल/गंजम, मराठवाड़ी, देशिला, असामी/मंगूस, संभलपुरी, कुट्टांड, धारावी, साउथ कन्नारा, सिकामीस और गोदावरी जैसी 26 तरह की नस्लें हैं। इनमें से 12 नस्ल की भैंसें रजिस्टर्ड नस्लें हैं, जोकि ज्यादा दूध देती हैं। इनमें ुर्रा, नीलीरावी, जाफराबादी, नागपुरी, पंढरपुरी, बन्नी, भदावरी, चिल्का, मेहसाणा, सुर्ती, तोड़ा, जैसी भैंस शामिल हैं।

20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में भैंसों की आबादी 109.9 मिलियन है, जबकि अगर प्रदेश के हिसाब से बात करें तो सबसे अधिक भैंसों की संख्या उत्तर प्रदेश में है, उसके बाद राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेश आते हैं। भारत में 12 तरह की भैंसों की नस्लें पायीं जाती हैं, हर भैंस की अपनी खासियत होती है, आइए जानते हैं कौन सी भैंस की क्या खूबियां हैं।

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मुर्रा भैंस, फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

मुर्रा भैंस

जब भी भैंसों की नस्लों की बात आती है, सबसे पहले मुर्रा भैंस का ही नाम आता है। ये सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल होती है। वैसे तो मुर्रा नस्ल की भैंस हरियाणा के रोहतक, हिसार व जींद और पंजाब के नाभा व पटियाला जिले में पायी जाती है, लेकिन अब तो कई राज्यों के पशुपालक मुर्रा भैंस को पालने लगे हैं। इसका रंग गहरा काला होता है और खुर और पूछ निचले हिस्सों पर सफेद धब्बा पाया जाता है। इसकी मुड़ी हुई छोटी सींग होती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1750 से 1850 लीटर प्रति व्यात होती है। इसके दूध में वसा की मात्रा 9 प्रतिशत के करीब होती है।

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सुर्ती भैंस, फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान,

सुर्ती भैंस (सुरती)

भैंस की यह नस्ल गुजरात के खेड़ा और बड़ौदा पायी जाती है। इसका रंग भूरे से सिल्वर सलेटी, काले या भूरे रंग का होता है। मध्यम आकार का नुकीला धड़, लंबा सिर और दराती के आकार की सींग होती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 900-1300 लीटर प्रति व्यात होती है, इसके दूध में वसा की मात्रा 8-12 प्रतिशत होती है।

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जाफराबादी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

जाफराबादी भैंस

यह देश की सबसे भारी नस्लों में से एक है, यह मूल से रूप से गुजरात के गिर के जंगलों में पायी जाती है, लेकिन अब इसका पालन कच्छ व जामनगर जिले में होता है। इसका सिर और गर्दन का आकार भारी होता है। इसका माथा काफी चौड़ा, सींग का आकार काफी बड़ा और पीछे की तरफ मुड़ा हुआ होता है। इसका रंग गहरा काला होता है, इसका औसत उत्पादन प्रति व्यात 1000 से 1200 लीटर होता है।

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मेहसाना भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

मेहसाना भैंस

भैंस की यह नस्ल गुजरात के मेहसाणा जिले और गुजरात से लगे महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका रंग ज्यादातर काला ही होता है, कुछ पशुओं का रंग काला-भूरा भी होता है। ये नस्ल कुछ-कुछ मुर्रा भैंस की तरह दिखती है, लेकिन इसका शरीर मुर्रा भैंस की तुलना में काफी बड़ा होता है, लेकिन वजन उससे कम होता है | नर मेहसाणा का औसत शारीरिक वजन 560 किलोग्राम और मादा का वजन 480 किलोग्राम के आसपास होता है, सींग आम तौर पर दरांती से आकार के होते हैं और वो मुर्रा भैंस से कम घूमी हुई रहती हैं। इसका औसत उत्पादन 1200 से 1500 किलो प्रति ब्यात होता है।

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पंढरपुरी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

पंढरपुरी भैंस

यह नस्ल महाराष्ट्र के सोलापुर, कोल्हापुर, रत्नागिरी जैसे जिलों में पायी जाती है, इसका नाम सोलापुर के पंढरपुर गाँव के नाम पर पड़ा है। इसकी सींग काफी लंबी करीब 45-50 सेमी तक होती है। यह गहरे और काले रंग की भैंस होती है। कुछ पंढरपुरी भैंसों के सिर और सफेद निशान भी होते हैं। इनकी प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होती है, हर वर्ष इसका व्यात होता है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1700-1800 किलोग्राम प्रति व्यात होती है।

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चिल्का भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

चिल्का भैंस

यह भैंस उड़ीसा कटक, गंजम, पुरी और खुर्दा जिलों में पायी जाती है, इसका नाम उड़ीसा के चिल्का के झील के नाम पर पड़ा है। इस भैंस को 'देशी' नाम से जाना जाता है। यह खारे क्षेत्रों में पायी जाती है, जिसका भूरा-काला या काला होता है। मध्यम आकार इस भैंस का औसत उत्पादन 500-600 किलोग्राम प्रति व्यात होता है।

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तोड़ा भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

तोड़ा भैंस

भैंस की इस नस्ल का नाम तोड़ा आदिवासियों के नाम पर रखा गया है। यह नस्ल तमिलनाडु के नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती है, इनके शरीर पर काफी मोटा बालकोट पाया जाता है। इनकी औसत उत्पादन क्षमता प्रति व्यात 500-600 किलोग्राम होती है और इनके दूध में वसा की मात्रा 8 प्रतिशत होती है।

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भदावरी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

भदावरी भैंस

यह नस्ल उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा और मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में पायी जाती है। इनके सिर का आकार छोटा और पैर भी छोटे-छोटे होते हैं। इस नस्ल के खुर का रंग काला और गर्दन के निचले हिस्सों पर दो सफेद निशान पाए जाते हैं। इनकी औसत उत्पादन क्षमता प्रति व्यात 1250-1350 किलोग्राम होती है।

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कालाखंडी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

कालाखंडी भैंस

यह नस्ल उड़ीसा के गाजापति, गंजाम, रायगड़ा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में पायी जाती है। इस नस्ल की भैंसा का रंग काला-भूरा होता है। माथे का आकार चपटा और माथे पर सुनहरे बाल होते हैं। इनकी औसत उत्पादन क्षमता 700-800 किलोग्राम प्रति व्यात होती है।

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नागपुरी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

नागपुरी भैंस

भैंस की इस नस्ल को एलिचपुरी या फिर बरारी के नाम से भी जाना जाता है। यह महाराष्ट्र के नागपुर, अकोला और अमरावती जिले में पायी जाती है। इनकी सींघ तलवार की तरह लंबी होती हैं। इनके नर भैंसों को भारी काम में प्रयोग किया जाता है। इनकी उत्पादन क्षमता 700-1200 किलोग्राम प्रति व्यात होती है।

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नीली रावी। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

नीली रावी भैंस

इस नस्ल की भैंस मूल रूप से रावी नदी के किनारे की हैं, जोकि फिरोजपुर जिले के सतलज घाटी और पाकिस्तान के साहिवाल में पायी जाती हैं। इनका सिर छोटा और दोनों आंखों के बीच छोटा गड्ढा होता है। इनके नर भैंसों को भारी काम के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी औसत उत्पादन क्षमता 1500-1800 किलोग्राम प्रति व्यात होती है।

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बन्नी भैंस। फोटो- केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान

बन्नी भैंस

गुजरात के कच्छ क्षेत्र में पायी जाने वाली बन्नी भैंस को कुंडी नाम से भी जाना जाता है। इस भैंस की कई खासियतें होती हैं। ये भैंस अधिक गर्मी और सर्दी दोनों को बर्दाश्त कर लेती हैं। कड़ाके के धूप में चारे की तलाश में दूर तक निकल जाती हैं। इनका रंग गहरा काला होता, कभी-कभार हल्का भूरा भी होता है। इनकी सींग अंदर की तरफ घूमी रहती हैं। इनकी उत्पादन क्षमता 1100-2800 किलोग्राम प्रति व्यात होती है।

(साभार: केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार, हरियाणा)

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