डिप्रेशन कई बार आत्महत्या का कारण भी बन जाता है, और ये किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है, चाहे वो बच्चा हो या फिर बुजुर्ग। इसका 100 प्रतिशत इलाज भी है, बस कुछ बातों को समझना होगा।
डिप्रेशन और एंग्जायटी (उदासी) में अंतर समझिए
डिप्रेशन की समस्या समय के साथ बढ़ती जा रही है, ऐसे में उदासी यानी एंग्जायटी और डिप्रेशन में फर्क समझना ज़रूरी है। दोनों के लक्षण एक जैसे होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है, जैसे कि डायबिटीज, थायराइड को लेकर लोग जागरूक हैं और डॉक्टर के पास जाते हैं। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी लोग डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं।
उदासी एक नार्मल इमोशन हैं, जो जिन्दगी में हम सब अनुभव करते हैं। जैसे खुशी एक्सपीरिएंस होती है उसी तरह से उदासी एक्सपीरिएंस होती है। उदासी नार्मल (सामान्य) हैं लेकिन डिप्रेशन नहीं हैं।
डिप्रेशन के लक्षण
अगर दो महीने से ज़्यादा समय से आपका चीजों में इंटरेस्ट कम हो रहा है, कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है जो चीजें पहले बहुत अच्छी लगती थी, मसलन घूमना-फिरना, दोस्तों से बातचीत करना उसमें कमी आ गई है, बस ऐसा लगता है बंद कमरे में बैठे रहो और ज़िन्दगी बिल्कुल नीरस लगने लगती है ये डिप्रेशन के लक्षण हैं।
इसमें निगेटिव (नकारात्मक) चीजें हावी होने लगती हैं। शरीर में कमजोरी महसूस होने लगती है, ताकत का अनुभव नहीं होता है। आप वही खाना खा रहें हैं, लेकिन कमजोरी का एहसास हो रहा है। ऐसा लग रहा है बस बिस्तर पर ही जीवन बीत जाए तो बेहतर है। कभी कभी ऐसा लगता है ज़िंदगी में कुछ बचा ही नहीं है, सब कुछ खत्म हो गया है। नकारात्मक सोच डिप्रेशन का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण होता है।
डिप्रेशन में लड़ाई-झगड़ा, बॉस की डाँट, सबसे हम प्रभावित होने लगते हैं, ऐसा लगता है कि जीवन खत्म हो गया है। पहले जो लड़ाई-झगड़ा हो रहा था, उसे हम आसानी से हैंडल कर लेते थे, लेकिन अब सहन शक्ति कम हो रही है। अगर ऐसे लक्षण दिखाई दे तो समझिए कि आप डिप्रेशन के शिकार हैं।
कोई भी ऐसा काम जिसमें अटेंसन (ध्यान) और कंसंट्रेशन (एकाग्रता) की ज़रूरत हो, आप वैसे तो आसानी से कर लेंगे, लेकिन जैसे कोई आपसे खाना बनाने को कहे तो नहीं हो पाता है। आप किसी चीज में ध्यान ही नहीं लगा पाते हैं।
अगर आपको लग रहा है आपका बच्चा उदास है, आपसे बातचीत नहीं करता है, उसके स्कूल से शिकायतें आ रही हैं, और अकेला अकेला रहता हैं। तो ऐसे में ज़रूरी है कि आप किसी डॉक्टर से मिलें जो आपको ये बता पाए कि ये डिप्रेशन के लक्षण हैं या टीनएज (किशोरावस्था) की वजह से हो रहा है।
अगर युवा है और आपको लग रहा है आज कल वो मरने की ज़्यादा बातें कर रहा है या उदास -उदास है तो संभव है डिप्रेशन हो। कोविड के बाद ये ज़्यादा देखने को मिल रहा है।
उदासी यानी एंग्जाइटी के लक्षण
एंग्जायटी एक ऐसा इमोशन है जो हमारे परफार्मेन्स को घटाता है। इसमें हम छोटे काम को लेकर भी परेशान हो जाते हैं। इतना सोचते और परेशान होते हैं कि
वो काम राई का पहाड़ बन जाता है। हम ये जानबूझ कर नहीं करते हैं ये एक अवस्था है।
अंधेरे से डरना, या बंद कमरे में डर जाना, लिफ्ट के अन्दर जाने से डरना, ऊँचाई से डरना मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। कभी कभी ऑफिस की 16वीं मंजलि पर लिफ्ट से पहुँचना भी पहाड़ लगता है। ये एंग्जाइटी का लक्षण है।
पेट में दर्द एंग्जायटी का लक्षण भी हो सकता है
कभी कभी किसी चीज का डर अच्छा भी होता है, जैसे कोविड में लोग डरे ये अच्छी बात थी। शेर से डर लगता है ये स्वाभाविक है, ये आपकी जिन्दगी बचायेगा। लेकिन ऐसी चीजें भी हैं जिससे डरना जरुरी नहीं है, फिर भी लोग डरते हैं।
कई लोग कहते हैं गैस दिमाग पर चढ़ गई या हाथ पैर में झुनझुनी होने लगती है ये सब एंग्जायटी के सामान्य लक्षण हैं। जैसे अक्सर बच्चों को स्कूल जाने से पहले उल्टी आने लगती है या पेट में दर्द होने लगता है। लेकिन वो पेट का दर्द नहीं घबराहट है। बार बार टॉयलेट जाना भी इसका लक्षण है।
एंग्जायटी में हमारे ब्रेन का वो हिस्सा बहुत एक्टिव हो जाता है जो हमारे सारे शारीरिक चीजों को कंट्रोल करता है। हमारी भूख, प्यास, हमारा मूड हमारा बॉडी का टेम्परेचर सारी चीजें उस एरिया से जुड़ी होती हैं। उस एरिया में अगर घबराहट महसूस हो रही है तो शरीर के किसी भी हिस्से में झुनझुनी ,दर्द शुरू हो जाएगा।
डॉक्टर की सलाह है बेहद ज़रूरी
कभी कभी लोग तेज दर्द की शिकायत करते हैं, बोलते हैं ऐसा लग रहा है कि दम निकल जाएगा, हार्ट रेट बढ़ जाता है। बिल्कुल हार्ट अटैक की तरह ही होता है, लेकिन हार्ट अटैक होता नहीं है। कई बार पैरेंट्स और प्रियजनों को लगता है ये कोई बीमारी नहीं है, कहते हैं योग करो ठीक हो जाओगे, एक्सरसाइज करो ठीक हो जाओगे, दोस्तों से मिलो ठीक हो जाओगे।
योग अच्छी चीज है, कसरत करना बहुत अच्छा है, लोगों से मिलना बहुत अच्छा है, लेकिन जैसे डायबिटीज में बोला जाता है, सेहत पर ध्यान दो, इंसुलिन दवा लो वैसे ही डिप्रेशन और एंग्जायटी में भी डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
मनोचिकित्सक के पास जाना कमज़ोरी की निशानी है नहीं है
डॉक्टर या मनोचिकित्सक के पास जाना कमज़ोरी नहीं है। ये हिम्मत की निशानी है, क्योंकि डॉक्टर के पास जाने का मतलब होता है आप उम्मीद कर रहे हैं, कि हाँ मैं ठीक हो जाऊँगा और जो इंसान उम्मीद करता है वो कमज़ोर नहीं होता है।
जब भी डिप्रेशन और एंग्जायटी के लक्षण आपको या आपके किसी अपने में दिखे और आपको लग रहा है कि बहुत लंबे समय से ऐसा चल रहा है तो डॉक्टर को जरूर दिखाए। दो से चार महीने हो गये और स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आ रहा है, तो अपने मरीज़ से सवाल पूछिए उसे कैसा लग रहा है? कहीं मरने का मन तो नहीं करता है , कई बार ऐसा लगता हैं कि हमारा ऐसा पूछना गलत है। लेकिन विज्ञान कहता है, कोई इंसान अगर ऐसे मरीज़ का हाथ पकड़ ले, एक सहारा दे दे तो शायद उसकी ज़िदंगी बच सकती है। अपने आस पास के किसी भी सरकारी अस्पताल में कहीं भी आप मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल, विशेषज्ञ या मानसिक रोग विशेषज्ञ से उस मरीज़ को दिखा सकते हैं।