आयुष आधारित उद्योग और प्राकृतिक खेती के जरिए तलाशी जाएगी पूर्वोत्तर के राज्यों की तरक्की

पूर्वोत्तर के राज्यों में किसान कैसे आगे बढ़ें और कैसे खेती में प्रगति हो, इसे लेकर असम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनेवाल से मुलाकात की है। इस दौरान उन्होंने आयुष आधारित उद्योग और प्राकृतिक खेती में संभावनाएं जताई हैं।

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आयुष आधारित उद्योग और प्राकृतिक खेती के जरिए तलाशी जाएगी पूर्वोत्तर के राज्यों की तरक्की

सर्बानन्द सोनोवाल, केंद्रीय मंत्री, फाइल फोटो

नई दिल्ली। पूर्वोत्तर के राज्यों में खेती किसानी के जरिए कैसे तरक्की आए और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो इस संबंध में मिले एक प्रतिधिन मंडल से सरकार ने प्राकृतिक और जैविक खेती पर रोडमैप मांगा है।

आयुष तथा पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल ने इस संबंध में असम कृषि विश्वविद्यालय से एक विशेष रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है, जिसमें जैविक-प्राकृतिक खेती करने वाले राज्यों के सफल किसानों और उद्मियों के विचारों को शामिल किया जाएगा और उसकी पूर्वोत्तर से तुलना की जाएगी।

26 दिसंबर को दिल्ली में असम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बिद्युत डेका के नेतृत्व में एक विशेष दल ने केंद्रीय मंत्री से मुलाकात की। इस प्रतिनिधिमंडल में प्रगतिशील किसान, कृषि उद्यमी और अकैडमिक जगत के लोग भी शामिल थे।

विशेषज्ञ समूह ने सोनोवाल को किसानी की मौजूदा तरीकों और उनके आर्थिक तथा पारिस्थितिकीय उपयोगिता के बारे में जानकारी दी। खेती सम्बंधी विभिन्न पक्षों, जैसे अकार्बिनिक खेती, जैविक खेती और प्राकृतिक खेती पर चर्चा की गई। इन सभी पक्षों पर क्षेत्र के आर्थिक और दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन किया गया। इस बात पर जोर दिया गया कि कृषि आधारित उन्नति के जरिये पूरे क्षेत्र तथा वहां के लोगों की पारिस्थितिकीय तथा आर्थिक जरूरतों को अवश्य पूरा होना चाहिये।

चर्चा के बाद केंद्रीय मंत्री सोनोवाल ने विशेषज्ञ समूह से आग्रह किया कि वे जैविक और प्राकृतिक खेती की उपयोगिता पर एक समग्र रिपोर्ट तैयार करें, ताकि वह एक रोड-मैप बन सके तथा सरकार के उच्चतम स्तर पर होने वाली भावी नीति सम्बंधी चर्चाओं में उसका हवाला दिया जा सके।


क्षेत्र में दीर्घकालिक खेती के बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुये सोनोवाल ने कहा, "आधुनिक प्रौद्योगिकी और विशेष तकनीकों का इस्तेमाल सूझ-बूझ के साथ किया जाना चाहिये ताकि हमारे क्षेत्र में होने वाली खेती का अधिकतम लाभ लिया जा सके। हमें अपनी जड़ों से सीखना होगा तथा आधुनिक तकनीक अपनानी होगी, ताकि हम सतत विकास हासिल कर सकें। इसे हमारे क्षेत्र के पारिस्थितिकीय संतुलन का ध्यान रखना होगा और साथ ही हमारे किसान समुदाय के लिये आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने में योगदान करना होगा।"

उन्होंने आगे कहा कि हमारा विश्वास है कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में आयुष आधारित उद्योग के विकास में क्षेत्र के किसान समुदाय के लिये अपार अवसर मौजूद हैं तथा वे महत्त्वपूर्ण हितधारक बन सकते हैं।

समूह के अन्य सदस्यों में असम कृषि विश्वविद्यालय के बाहरी शिक्षा निदेशक डॉ. पीके पाठक, विश्वविद्यालय के अनुसंधान सह निदेशक डॉ. एम सैकिया, कृषि अर्थव्यवस्था के विभागाध्यक्ष डॉ. के. पाठक, एचआरएस काहीकुची के प्राचार्य डॉ. एस. पाठक, नलबाड़ी के प्राकृतिक खेती करने वाले किसान जयंत मल्ला बुजरबरुआ, मिरजा के जैविक किसान बनमाली चौधरी तथा तेतेलिया एग्रो ऑर्गनिक प्रोड्यूसर्स के तकनीकी सलाहकार इंजीनियर कृष्णा सैकिया उपस्थित थे।

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North-East India #Natural farming #story 

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