घरेलू गैस की बढ़ती कीमतों ने गांवों में महिलाओं को फिर से चूल्हे की ओर ढकेला

Mithilesh Dhar | Apr 06, 2021, 14:28 IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में उज्ज्वला योजना की शुरुआत यह कहकर की थी कि इसका मकसद महिलाओं को जहरीले धुएं से बचाना है, लेकिन चूल्हा छोड़ने वाली एक बड़ी आबादी फिर उधर लौट रही है।
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"पाँच-छह सौ रुपए में तो किसी तरह गैस भरवा लेते थे, अब तो एक सिलेंडर लगभग 900 रुपए में मिल रहा है। इतने में भराने की हिम्मत नहीं है।" चंद्रकली देवी (45 वर्ष) कहती हैं।

मध्य प्रदेश के जिला सतना के कोठरा गाँव में रहने वालीं चंद्रकली के मुताबिक उन्हें पांच साल पहले उज्ज्वला योजना का गैस कनेक्शन मिला था। तब उन्हें लगा था कि अब गोबर के कंडे और लकड़ी से छुटकारा मिल जायेगा, लेकिन गैस के बढ़ते दामों ने हमें फिर मिट्टी के चूल्हे पर पहुंचा दिया है।

सतना जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर गांव में रहने वालीं चंद्रकली बीड़ी की कंपनी में काम करती हैं जहां काम मिलने की कोई गारंटी नहीं है। एक सप्ताह में मुश्किल से एक हजार बीड़ी बनाने का काम मिलता है जिसके बदले 70 रुपए मिलता है। दो बेटे हैं, वे भी काम की तलाश में रोज घर से निकलते तो हैं, लेकिन उन्हें भी रोज काम नहीं मिलता।

कोठरा से सटे सगमनिया गाँव की रामरती चौधरी गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "छह सात महीने हो गए हैं गैस भराये हुए। लेकिन रोज-रोज महंगी होती गैस के कारण भराना ही छोड़ दिया। अब लकड़ी, गोबर के कंडे पर ही खाना पकाते हैं। पहले भी तो हम ऐसे ही खाना बनाते थे।"

केंद्र सरकार की रिकॉर्ड बुक के हिसाब से चंद्रकली और रामरती 2016 में लॉन्च हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ पाने वाली 8 करोड़ भारतीयों में से एक हैं। इस योजना के लिए सरकार ने शुरू में 8,000 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। इसके बाद सरकार ने एक बार फिर 2018-19 में 3,200 करोड़ रुपए, 2019-20 में 3,724 करोड़ और 2020-21 में 1,118 करोड़ रुपए आवंटित किये।

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मध्य प्रदेश के सतना की ज्योति बागरी के नाम भी उज्ज्वला गैस कनेक्शन है, लेकिन उन्होंने पिछले चार महीने से सिलेंडर नहीं भराया है।

सरकार का यह भी दावा है कि इस योजना की मदद से देश की कुल 95 फीसदी आबादी को एलपीजी गैस कनेक्शन मिल पाया है। सरकार इसे अब 100 फीसदी करना चाहती है। इसे ही ध्यान में रखकर आने वाले दो वर्षों में इस योजना के तहत और एक करोड़ और गैस कनेक्शन देने की घोषणा केंद्र सरकार ने की है।

उत्तर प्रदेश में भदोही जिले की खमहरिया के रहने वाले 47 वर्षीय कंचन कुमार कालीन बुनते हैं। कोरोना की वजह से पहले से ही उनका काम बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। कमाई न के बराबर है। साल 2018 में उनके घर को भी उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन मिला था, लेकिन 5 महीने से उन्होंने सिलिंडर रिफिल नहीं करवाया है। पूछने पर बताते हैं, "बेटे दोनों बाहर मजदूरी करते हैं। कालीन के काम भी न के बराबर चल रहा है। ऊपर से हर महीने तो गैस का दाम बढ़ जा रहा है। अब तो कीमत इतनी हो गई है कि भरवाना मुश्किल हो गया है।"

"2018 में जब कनेक्शन मिला था तब तो 500-600 के सिलेंडर पर 200-300 रुपए की सब्सिडी भी मिलती थी, लेकिन अब तो वह भी बंद है। पिछले 8 महीनों से कोई सब्सिडी खाते में नहीं आई। कई बार एजेंसी पर पूछा तो उन्होंने कहा कि पैसे तो भेजे जा चुके हैं।"

अब बात बस इसी साल की करें तो जनवरी से लेकर मार्च तक घरेलू गैस की कीमत 125 रुपए बढ़ी है। 4 फरवरी को रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 25 रुपए बढ़ाई गई थी। इसके बाद 15 फरवरी को 50 रुपए का उछाल आया। फिर 25 फरवरी को 25 रुपए और 1 मार्च को भी इतने ही रुपए बढ़ाए गए थे। तब 14.2 किलो वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 917.50 रुपए हो गई थी जो 4 फरवरी से पहले 767 रुपए थी। हालांकि एक अप्रैल को आम लोगों को थोड़ी राहत तब जरूर मिली जब गैस की कीमत में 10 रुपए कटौती हुई। लखनऊ में इस समय 14.2 किलो वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 847 रुपए है जबकि जून 2020 में यही कीमत 636 रुपए थी।

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लॉकडाउन के समय सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर फ्री में देने का ऐलान किया था, फिर भी लोगों ने सिलेंडर रिफिल नहीं कराये।
उत्तर प्रदेश में बाराबंकी के कस्बा बेलहरा की रहने वालीं ललिता (30) कहती हैं कि जब गैस सिलेंडर मिला था तो लगा था अब चूल्हे के धुएं से आंखों को आराम मिलेगा। एक दो बार गैस सिलेंडर किसी तरह भरवा भी लिया था लेकिन बढ़ती महंगाई ने अब गैस सिलेंडर भरवाना बंद कर दिया है। पैसे से और भी व्यवस्था करनी पड़ती है। लकड़ी और गोबर कंडे गैस से सस्ता पड़ा रहा है।"

बाराबंकी जिला स्थित हरि ओम गैस सर्विस (एचपी) के संचालक ब्रजेन्द्र मिश्रा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "हमारे यहां लगभग 27,000 कनेक्शन हैं जिसमें लगभग 20 हजार कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत दिए गए हैं। हर महीने लगभग 9,000 सिलेंडर की ही डिलीवरी हो रही है। इस बार तो होली पर भी लोगों ने सिलेंडर रिफिल नहीं कराया जबकि एजेंसी से लोगों को फोन भी किये गये। पैसे की कमी बताकर लोगों ने रिफिल कराना कम कर दिया है।"

उन्नाव जिले के पाटन ब्लॉक के जंगली खेड़ा की सुमन सैनी (65 वर्ष) उच्च प्राथमिक विद्यालय में रसोइयां हैं परिवार के पांच सदस्यों की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है। डेढ साल पहले उन्होंने ने डेढ़ साल पहले उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन लिया था और उनके परिवार में पांच सदस्य हैं। खेती के नाम पर थोड़ी जमीन है।

वे गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "सिलेंडर लेने के बाद हमनें दो तीन बार भरवाया लेकिन उसके बाद लगातार बढ़ रही कीमत के कारण भरवाना बंद कर दिया। अब फिर से चूल्हे पर खाना बनाना मजबूरी बन गई है। जितनी हमारी एक महीने की तनख्वाह है उतने का आज सिलेंडर भरा जा रहा है।"

पिछले कुछ वर्षों में प्रकाशित कई रिपोर्टों और अध्ययनों में बताया जा चुका है कि गैस की कीमतों में हो रही लगातार बढ़ोतरी के कारण प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थी गैस सिलेंडर रिफिल नहीं करा रहे हैं जिस कारण महिलाएं फिर से खाने पकाने के लिए जहरीले ईंधन का प्रयोग करने को मजबूर हैं।

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वर्ष 2018 में रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैसाटनेट इकोनॉमिक्स के एक सर्वे में सामने आया कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में योजना के 85% लाभार्थी अभी भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक लकड़ी के चूल्हों का उपयोग कर रहे थे। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2019 में आई रिपोर्ट में बताया गया है कि उज्ज्वला योजना के तहत प्रति वर्ष सिलेंडर रिफिल की दर 3.21 सिलेंडर है।

2020 में फेडरेशन ऑफ एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर्स इन इंडिया ने दावा किया था कि उज्ज्वला योजना की शुरुआत के बाद से 22% लाभार्थियों ने अपने सिलेंडर को फिर से भरवाया ही नहीं और 5-7% लोगों को पहले रिफिल के बाद सब्सिडी का पैसा भी नहीं मिला।

मार्च 2020 में कोविड-19 के बाद जब लॉकडाउन शुरू हुआ तब केंद्र सरकार ने अप्रैल और जून 2020 के बीच उज्ज्वला लाभार्थियों को तीन मुफ्त रिफिल देने की घोषणा की। आठ करोड़ उज्ज्वला लाभार्थियों के अनुसार कुल 24 करोड़ सिलेंडर रिफिल होने थे, लेकिन जून तक महज 12 करोड़ सिलेंडर ही रिफिल हुए। इसे देखते हुए सरकार ने और तीन महीने का समय दिया लेकिन सितंबर के अंत तक केवल 14 करोड़ या कहें 60% सिलेंडर ही रिफिल हुए। इसके बाद समय बढ़ाकर 31 मार्च, 2021 तक कर दिया गया। इसकी रिपोर्ट का इंतजार है।

यूपी में भदोही के सुरियावां स्थित एक गैस एजेंसी के डीलर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, "सरकार ने तीन महीने फ्री में गैस रिफिल के लिए लाभार्थियों के खाते में पैसे भेज दिये। यहीं गलती हुई। लोगों ने पैसे तो निकाल लिए लेकिन सिलेंडर नहीं भरवाया। उसी पैसे से उपले (कंडे) और लकड़ियां खरीद लीं। हमने तो फोन करके लोगों को बुलाया, लेकिन वे आये ही नहीं। मेरे सेंटर पर लगभग 15 गांवों के उज्ज्वला योजना के कुल 7,000 कनेक्शन हैं, लेकिन पिछले पांच महीने से 3,000 से 4,000 सिलेंडर ही रिफिल हो रहे हैं।"

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एक मई 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत की थी तब उन्होंने कहा था कि इस योजना का मकसद गरीब महिलाओं को जहरीले धुएं से मुक्ति दिलाना है। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि किसी आम चूल्हे पर खाना पकाने की अपेक्षा मिटटी के चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं को फेफड़े की समस्या ज्यादा होती है। चूल्हों से निकलने वाला धुआं सीधे महिलाओं के संपर्क में रहता है, इसलिए खांसी होने का खतरा ज्यादा होता है और ध्यान न दिया जाए तो यह टीबी जैसी खतरनाक बीमारी की शक्ल भी ले सकता है।

नेशनल चेस्ट सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं, "भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी महिलाएं चूल्हे पर खाना पकाती हैं जिसमें वे लकड़ी और कंडे का प्रयोग करती हैं। इससे निकलने वाला धुआं सीओपीडी ((क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज)) की सबसे बड़ी वजह है। यह धुआं सिगरेट से निकलने वाले धुएं के बराबर ही हानिकारक होता है।"

विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत महिलाएं हैं। बायोमास ईंधन लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष, धूम्रपान करने जितना ही खतरनाक है। इसीलिए महिलाओं में सीओपीडी की करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और लड़कियां रसोईघर में अधिक समय बिताती हैं।

इनपुट- मध्य प्रदेश सतना से सचिन तुलसा त्रिपाठी, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह, उन्नाव से सुमित यादव

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