छठ महापर्व के आखिरी दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य: पारण के साथ संपन्न हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत

Divendra Singh | Oct 31, 2022, 11:47 IST
सूरज को अर्घ्य के साथ छठी मैया की विदाई हो गई, लेकिन इन चार दिनों तक चलने वाले आस्था के महापर्व में लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
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चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न हो गया। इस छठ में कई ऐसी व्रती थी जिनका पहला छठ था तो कई पिछले कई बरस से छठ की पूजा करती आ रही हैं। रंग-बिरंगी साड़ियों में महिलाएं उगते सूरज के इंतजार में कमर भर पानी में नदी में खड़ी थीं।

व्रती महिलाओं की भीड़ में लाल साड़ी पहने प्रियंका सिंह भी अपने परिवार के साथ छठ पूजा करने आयीं थीं। उनकी मम्मी पिछले 36 साल से छठ व्रत रखती आ रही हैं, जल्द ही वो भी व्रत की शुरूआत करने वाली हैं। छठ व्रत के बारे में सवाल पूछने पर वो खुश होकर प्रियंका कहती हैं, "मैं छठ व्रत नहीं रहती हूं, इसमें ये होता है कि अगर सास ये व्रत रख रहीं हैं तो बहु व्रत नहीं रखती हैं। इसमें एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को व्रत भी सौंपती है।"

व्रत के महत्व के बारे में प्रियंका कहती हैं, "शायद इस व्रत को मैं शब्दों से बयान नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि इतना ज्यादा महत्व है, इसकी शक्ति कह लीजिए या कह लीजिए कि श्रद्धा होती है कि हम इस चीज को बता नहीं सकते हैं। मैं तो इतने सालों से मम्मी को व्रत करते देखते आ रही हूं, इसमें निर्जल व्रत रहा जाता है, लेकिन फिर इसका पता नहीं चलता है।"

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में लक्ष्मण मेला मैदान के गोमती घाट पर महिला-पुरुष, बुजुर्ग, बच्चे हर कोई हाथ में गन्ना, दौरा, सूप और उसमें रखे कई तरह के फल और ठेकुआ का प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया गया था।

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नहाय खाय के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरूआत की जाती है, उत्तर भारत के कई राज्यों के साथ ही देश के अलग-अलग हिस्सों में चार दिनों तक महापर्व का उत्सव मनाया जाता है।

चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार के दौरान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। छठ मैया देवी उषा हैं जिन्हें वैदिक काल से सूर्य की पत्नी माना जाता रहा है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों और नेपाल में भी बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है।

वहीं विमला भी पिछले कई बरस से छठ महापर्व मनाती आ रहीं हैं, अपने दो बेटे और दो बेटियों के साथ अर्घ्य देकर छठी मैया को विदा करके निकली थीं। उन्होंने बताया, "मुझे भी कई साल हो गए इस व्रत को रहते हुए, छठी मैया कि कृपा से सब बढ़िया चल रहा है। एक यही तो पर्व होता है, जब हर कोई अपने घर वापस लौटता है, चाहे वो दुनिया में कहीं भी रहे।"

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चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार के दौरान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। छठ मैया देवी उषा हैं जिन्हें वैदिक काल से सूर्य की पत्नी माना जाता रहा है। यह त्योहार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों और नेपाल में भी बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है।

छठ पूजा पहला दिन: नहाय खाय

छठ महापर्व की शुरूआत नहाय खास से होती है इस दिन सभी सुबह जल्दी उठते हैं, सूर्य की पूजा करते हैं और अपने लिए अच्छा खाना बनाते हैं। पहले दिन के दोपहर के भोजन को नहाय खाय कहते हैं। इसका मतलब है 'नहाओ और खाओ'। अगले दिन से उपवास शुरु हो जाता है। उपवास से पहले का ये दूसरा आखिरी भोजन होता है। खाने में चावल, चना दाल में लौकी, आलू और सोआ भुजिया, मेथी के पकोड़े, पलक का साग, आलू मटर की सब्जी, धनिया की चटनी, बेसन में तली हुई लौकी (लौकी का बछका), नींबू के रस वाली तली हुई हरी मिर्च होती है।

छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना

छठ के दूसरे दिन को खरना भी कहते हैं। इस दिन हम सुबह लगभग 3 या 4 बजे उठकर शरबत पीते हैं और फिर शुरु हो जाता है पूरे दिन का उपवास। इसके बाद पूरे दिन हम न तो कुछ खाते हैं और न ही पानी की एक बूंद हमारे मुंह में जाती है। सूरज छिपने के समय, खीर और पूड़ी खाकर उपवास तोड़ा जाता है। खीर, एक पारंपरिक भारतीय मिठाई है, जिसे गुड़ और दूध के साथ उबले हुए चावल के साथ मिलाकर बनाया जाता है। घर में आने वाले सभी मेहमानों को भी खीर परोसी जाती है। शाम को खीर-पूड़ी खाने के बाद से चौथे दिन तक उपवास रहता है। चौथे दिन सुबह सूरज उगने के बाद प्रसाद खाकर उपवास तोड़ते हैं। उसके बाद पानी पिया जाता है और फिर सब लोग खाना खाते हैं।

छठ पूजा का तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

छठ पूजा के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन किसी नदी या तालाब में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। भक्त पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं।

छठ पूजा का चौथा दिन, उषा अर्घ्य

छठ पूजा के चौथे दिन को उषा अर्घ्य या सुबह के प्रसाद के रूप में जाना जाता है। इस दिन, सभी लोग सूर्योदय से पहले नदी के किनारे या आस-पास के जल निकायों में उगते सूरज को प्रसाद चढ़ाने जाते हैं। अर्घ्य देने के बाद लोग घाट पर बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं, फिर आसपास के लोगों में प्रसाद बांटा जाता है।

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