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बिजली गिरने से 96 फीसदी मौतें ग्रामीण इलाकों से, इनमें से 77 फीसदी किसान - बिहार और यूपी से ग्राउंड रिपोर्ट

Rahul Jha | Jul 06, 2022, 08:06 IST
बिजली गिरने की भविष्यवाणी करने वाली तकनीक और पूर्व चेतावनी देने वाले मोबाइल ऐप होने के बावजूद, ग्रामीण भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोगों की मौत आकाशीय बिजली के चपेट में आने से हो जाती हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में मौतों की संख्या सबसे ज्यादा है। ग्रामीणों को अभी भी उन सरल सुरक्षात्मक और निवारक उपायों के बारे में जानकारी नहीं, जिनसे वे अपनी जान बचा सकते हैं।
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रामपुर डेरा (सहरसा), बिहार। यह सब 19 जून को दोपहर करीब 3 बजे शुरू हुआ था। तेज हवाएं तूफान में बदल गईं, बादल गरज रहे थे, बिजली कड़कने लगी और बारिश शुरू हो गई उस समय 42 वर्षीय टुनटुन यादव और उनके छोटे भाई खुले मैदान में अपनी भैंस चरा रहे थे। इसके बाद जो हुआ वह एक भयानक अनुभव था जिसे टुनटुन कभी नहीं भूल सकते।

उन्होंने बताया, "अचानक एक तेज चमक हुई और अगले पल जो मैंने देखा, वह काफी भयानक था। मेरा भाई दर्द से बुरी तरह कराह रहा था। उसका पूरा शरीर जल चुका था।"

बिजली गिरने से उसके भाई फुलदार की मौत हो गई। फुलदार के अलावा, बिहार में 15 अन्य लोग भी भी उस दिन बिजली गिरने से मारे गए थे। राज्य सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से पेश आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में अकेले बिहार में इस तरह 36 लोगों की जान चली गई।

यादव के गाँव से करीब 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में भी आकाशीय बिजली गिरने से ऐसी ही मौत हुई। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जून में मिर्जापुर जिले में बिजली गिरने से चार लोगों की मौत हो गई, जबकि बलिया में चार, फतेहपुर में तीन, कानपुर में दो, वाराणसी में दो और प्रयागराज में एक की व्यक्ति की मौत दर्ज की गई थी।

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19 जून को रामपुर डेरा गाँव के सिकंदर यादव की बिजली गिरने से मौत हो गई. फोटो: तेजस्वी ठाकुर

भारत में हर साल बिजली गिरने से करीब 2,500 लोगों की जान जा रही है और ये घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इन घटनाओं को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है।

इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक, 2019-20 और 2020-21 के बीच देश में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पंजाब में यह प्रतिशत 331 है, बिहार में 168 फीसदी, हरियाणा में 164 फीसदी, पुडुचेरी में 117 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 105 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 100 फीसदी है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बिजली गिरने से होने वाली सभी मौतों में से 96 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों से थीं और उनमें से 77 प्रतिशत किसान थे।

सोर्स- इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-21

नई दिल्ली स्थित क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग-सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (CROPC) के संस्थापक संजय श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूर, किसान और मवेशी चराने वाले सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। लेकिन राज्य सरकार के अधिकारी कार्यालयों में बैठकर सोशल मीडिया या मोबाइल ऐप पर चेतावनी जारी करते हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "इसलिए जो लोग सोशल मीडिया पर नहीं हैं या जिनके पास मोबाइल नहीं हैं, उन तक ये उपयोगी जानकारी नहीं पहुंच पाती, जो लोगों की जान बचाने के लिए बेहद जरूरी है।"

CROPC एक गैर-लाभकारी संगठन है जो भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के सहयोग से बिजली गिरने की भविष्यवाणी करने और मौतों को रोकने के लिए लचीला तंत्र विकसित करने के लिए काम करता है।

श्रीवास्तव के अनुसार, बिजली गिरने के बारे में उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी का उपयोग करना और उसे ग्रामीण आबादी तक पहुंचाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। जानकारी न होने की वजह से सहरसा के फुलदार यादव जैसे ग्रामीण बिजली गिरने से मारे जा रहे हैं।

बिजली गिरने की बढ़ती घटनाएं, ग्रामीणों में जागरूकता की कमी

देश में आकस्मिक मौतों पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा बनाए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्राकृतिक ताकतों की वजह से होने वाली 7,405 आकस्मिक मौतों में से (2019-20) 38.6 प्रतिशत बिजली गिरने से, 13 प्रतिशत बाढ़ के कारण और 10।5 प्रतिशत ज्यादा ठंड की वजह से हुईं थीं।

इसके बावजूद, ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा बिजली गिरने की घटनाओं के दौरान खुद को बचाने के तरीकों से अनजान है।

पिछले हफ्ते 28 जून को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में बिजली गिरने से चार लोगों की मौत हो गई थी। उनमें से एक 15 साल की साधना भी थी।

साधना के 63 वर्षीय दादा राम चरण ने गाँव कनेक्शन को बताया, "उस दिन दोपहर लगभग 2.30 बजे घर की छत के एक हिस्से से पानी टपक रहा था। बाहर तेज बारिश हो रही थी। बेचारी बच्ची टपकती छत के नीचे एक गिलास रखने के लिए उठी थी। अचानक बिजली गिरी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।" उनका परिवार मिर्जापुर के लालगंज तहसील के दिघुली गाँव (हलिया ब्लॉक) में रहता है।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें बिजली गिरने के दौरान किए जाने वाले सुरक्षा उपायों के बारे में कोई जानकारी है, रामचरण ने कहा कि वह कुछ भी नहीं जानते हैं।

उन्होंने कहा, "मेरी इतनी उम्र हो गई है लेकिन आज तक कोई भी गाँव में हमें यह बताने के लिए नहीं आया कि बिजली गिरने से लोगों की जान कैसे बचाई जाएगी। डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को पता होना चाहिए कि ऐसे मामलों में क्या करना है, मैं यह सब समझने के लिए पढ़ा-लिखा नहीं हूं।"

हालांकि, मिर्जापुर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट शिवप्रताप शुक्ला ने गाँव कनेक्शन को बताया कि बिजली के खिलाफ एहतियाती उपायों के बारे में ग्रामीण निवासियों को शिक्षित करने के लिए सरकार जागरूकता अभियान चलाने के लिए मास मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करती है।

शुक्ला ने कहा, "बिजली गिरने से हमें लालगंज और चुनार तहसील से दो-दो मौतों की पुष्टि हुई है। प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत हम मृतकों के परिजनों को चार लाख रुपये मुआवजा देने की प्रक्रिया में हैं। हम बिजली से बचाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए नियमित रूप से रेडियो पर कार्यक्रम प्रसारित करते हैं।"

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सोर्स: एनडीएमए ग्राम पंचायत स्तर पर बेहतर संचार रणनीति की जरूरत

ट्राइबल्स एंड मार्जिनलाइज्ड मोस्ट वल्नरेबल टू लाइटनिंग शीर्षक वाले लेख में श्रीवास्तव लिखते हैं, वर्ष 2019 में 1 अप्रैल से 15 जून तक बिजली गिरने से भारत के ग्रामीण इलाकों में भारी संख्या में मौतें हुई थीं।

उन्होंने लिखा, "11 अप्रैल से 15 जून तक मरने वालों की संख्या 487 से अधिक है, जिनमें से 462 मौतें (95%) ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं, इसके बाद 25 मौतें (5%) शहरी क्षेत्रों या अर्ध शहरी क्षेत्रों में हुईं, जहां लोगों के पास सुरक्षा मौजूद है।"

इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-2021 के अनुसार, 1 अप्रैल, 2020 और 31 मार्च, 2021 के बीच, लाइटनिंग स्ट्राइक के कारण सबसे अधिक हताहत होने वाले भारतीय राज्यों की सूची में बिहार सबसे ऊपर है, इसके बाद उत्तर प्रदेश (बार ग्राफ देखें) का नंबर आता है।

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हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि बिजली गिरने के कारण होने वाली कुल मौतों में से 68 प्रतिशत आदिवासी लोगों की हैं।

श्रीवास्तव ने कहा कि बिजली गिरने से मरने वाले ज्यादातर लोग वही हैं जो जागरूकता बढ़ाने वाली सरकार की पहल का इस्तेमाल करने में असमर्थ हैं।

उन्होंने कहा, "जिन लोगों को मौसम के पूर्वानुमान और जागरूकता कार्यक्रमों की जरूरत है, उन तक जानकारी पहुंचाने का एकमात्र तरीका है कि भारत के भीतरी इलाकों में रहने वाले इन लोगों के पास फिजिकली जाया जाए। यहां देश की 60 फीसदी आबादी रहती है।"

एक प्राइवेट वेदर फोरकास्ट वेबसाइट स्काईमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत भी श्रीवास्तव की बात से सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि बिजली गिरने के बारे में जागरूकता बढ़ाने की इस पूरी प्रक्रिया में ग्राम पंचायत को साथ लेकर चलने की जरूरत है।

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पलावत ने गांव कनेक्शन को बताया, "बिजली की भविष्यवाणी करने के लिए हमारे पास पहले से ही डिजिटल उपकरण हैं। बस इतना करने की जरूरत है कि ग्राम प्रधानों को दूत की भूमिका सौंपी जाए। ये लोग इन एप्लिकेशन को अपने फोन पर डाउनलोड कर सकते हैं और गांव में बिजली गिरने के खतरे के बारे में ग्रामीणों को पहले से सूचित कर सकते हैं। "

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के सहायक प्रोफेसर प्रधान पार्थसारथी ने कहा, "राज्य के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों (बिहार) में जन जागरूकता ही इन मौतों को रोकने का एकमात्र तरीका है। जागरूकता फैलाने के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना ग्रामीण आबादी के संबंध में स्वाभाविक रूप से मुश्किल और दोषपूर्ण है। "

पार्थसारथी ने कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में जनता को इकट्ठा करने और बिजली गिरने से होने वाली मौतों को रोकने के लिए आवश्यक सावधानियों के बारे में शिक्षित करने के लिए सरपंच और मुखिया से संपर्क करना होगा।"

बिजली गिरने के पूर्वानुमान के लिए मोबाइल ऐप

आईएमडी के साथ-साथ बिहार सरकार सहित राज्य सरकारें, एक निश्चित जगहों पर बिजली गिरने के खतरे के बारे में जनता को सूचित करने के लिए मोबाइल फोन एप्लीकेशन लेकर आई हैं।

2018 में, आईएमडी ने 'दामिनी लाइटनिंग अलर्ट' मोबाइल फोन एप्लिकेशन लॉन्च किया था। इसका इस्तेमाल यूजर के आस-पास की जगहों पर बिजली के बारे में चेतावनी देने के लिए किया जाता है। एप यूजर अपने आसपास के क्षेत्रों को दर्शाने वाले मानचित्र पर पिछले पांच मिनट, 10 मिनट और 15 मिनट में गिरने वाली बिजली की जानकारी ले सकते हैं।

इसी तरह बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने जुलाई, 2020 में 'इन्द्रवज्र' नाम से एक एप्लिकेशन लॉन्च किया था।

दामिनी एप्लिकेशन से अलग, बिहार सरकार का ऐप उपयोगकर्ता को सचेत करने के लिए फ़ोन की रिंगटोन का उपयोग करके बिजली गिरने के खतरे के बारे में सूचित करता है।

वहीं बिहार आपदा प्रबंधन विभाग में काम कर रहे सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव दिव्यराज बताते हैं, "बिहार सरकार ने 'इंद्रवज्र' नाम का एक मोबाइल ऐप बनाया था। इस ऐप के माध्यम से लगभग 20 किलोमीटर की परिधि में ठनका गिरने की स्थिति में व्यक्ति को लगभग 40 से 45 मिनट पहले ही अलार्म टोन के साथ चेतावनी संदेश देता हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन ये सवाल अहम हैं कि बिहार में स्मार्ट फ़ोन यूज़र कितने हैं और उसमें भी ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले खेत किसान और मज़दूरों की तादाद कितनी है?"

गाँव कनेक्शन ने सुपौल जिला के तटबंध के भीतर के लगभग 10 ग्राम पंचायतों के मुखिया से बात। सिर्फ एक मुखिया जनप्रतिनिधि को 'इंद्रवज्र' ऐप के बारे में पता था। लक्ष्मीनिया पंचायत के रोशन झा बताते हैं, "तटबंध के भीतर 2019 में एक बार बिहार सरकार के तरफ से वज्रपात को लेकर सेमिनार लगा था। जिसमें मैं भी मौजूद था। वह बार-बार इंद्रवज्र और दामिनी ऐप के बारे में बता रहे थे। लेकिन मुख्य सवाल है कि इन किसानों के पास मोबाइल कौन देगा। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक साल गाँवों में नियमित चौपाल लगा कर लोगों को आकाशीय बिजली के बारे में जानकारी दी जाए। लोगों को ये भी बताया जाए कि कैसे वे इससे बच सकते हैं।"

उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने बिजली के पूर्वानुमान के लिए कोई अलग से ऐप नहीं बनाया है। लेकिन वह नियमित रूप से लोगों को बिजली के मौसम के अपडेट के लिए आईएमडी के दामिनी एप्लिकेशन इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं।

लेकिन, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को इन मोबाइल ऐप के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।

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सुपौल जिले की मरौना पंचायत में बिजली गिरने से पशुओं की मौत हो गयी। फोटो: अनुज झा

गलत प्राथमिकताएं

सितंबर 2018 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने बिजली गिरने से होने वाली मौतों की घटनाओं को रोकने के लिए एक योजना शुरू की थी।

इस योजना में लाइटनिंग अरेस्टर्स की स्थापना (एक उपकरण जो जीवन या संपत्ति को नुकसान पहुंचाए बिना बिजली के बोल्ट को जमीन पर सुरक्षित रूप से निर्देशित करता है), ग्रामीण क्षेत्रों में लाइटनिंग सेफ सेंटर और उच्च जोखिम वाले इलाकों में जागरूकता अभियान जैसे कई उपायों की बात कही गई थी।

श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं इस योजना को तैयार करने वाले विशेषज्ञों की टीम का हिस्सा था। लेकिन दुर्भाग्य से राज्य सरकार ने इसे लागू करना शुरू नहीं किया है। राज्य में अब तक एक भी लाईटनिंग सेफ सेंटर का निर्माण नहीं हुआ है। लाइटिंग अरेस्टर भी नहीं लगाए गए हैं। वैज्ञानिक जानकारी के बावजूद सरकार इस पर कार्रवाई नहीं कर रही है।

उनके अनुसार, सरकार में रचनात्मक दृष्टिकोण का अभाव है। उन्होंने कहा, "यूपी सरकार को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष से 2,700 करोड़ रुपये मिले हैं, जिसे जागरूकता अभियानों और क्षमता निर्माण के उपायों पर खर्च करना है, लेकिन पैसा हमेशा मौतों को रोकने के बजाय मुआवजे का भुगतान करने में चला जाता है।"

श्रीवास्तव ने कहा, "ऐसा सिर्फ यूपी में नहीं है। बिहार और मध्य प्रदेश की सरकारें भी यही काम करती हैं। जबकि भारत में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में सत्तर से अस्सी प्रतिशत मौतें इन्हीं तीन राज्यों में होती हैं।"

क्यों गिरती है आसमान से बिजली?

आसमान में बिजली हवा और जल कणों के बीच घर्षण की वजह से होती है। धनात्मक और ऋणात्मक यानी अपोजिट एनर्जी के बादल हवा में उमड़ते-घुमड़ते हुए जब एक-दूसरे के पास आते हैं तो टकराने (घर्षण) से उच्च शक्ति की बिजली उत्पन्न होती है।

इससे दोनों तरह के बादलों के बीच हवा में बिजली पैदा होती है और रोशनी की तेज चमक पैदा होती है। जो कई बार धरती पर रहने वाले लोगों के लिए काफी खतरनाक साबित हो जाती है।

मिर्जापुर (यूपी) से बृजेंद्र दुबे और लखनऊ (यूपी) से प्रत्यक्ष श्रीवास्तव के इनपुट्स के साथ।

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