पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान को बनाया रोजगार का जरिया 

Diti BajpaiDiti Bajpai   7 Sep 2017 2:53 PM GMT

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पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान को बनाया रोजगार का जरिया मुकेश कुमार।

लखनऊ। पिछले आठ वर्षों से मुकेश कुमार ने पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) को अपना आय का रोजगार बनाया है साथ ही नस्ल सुधार के लिए पशुपालकों को प्रेरित भी कर रहे है।

गाजियाबाद जिले से करीब 40 किमी दूर मुरादनगर टाउन के आस पास करीब आठ से 10 गांव (कनौजा, असालतपुर, सैन्थली, मुरादनगर, जलालपुर, दुहाई) जहां मुकेश समय-समय पर कृत्रिम गर्भाधान करने के लिए जाते है। साथ ही पशुओं को प्राथमिक उपचार भी देते है। मुकेश बताते हैं, "ट्रेनिंग लेने के बाद मेरे पास गाड़ी नहीं थी मैं पैदल गाँव-गाँव जाकर एआई करता था पर अब मेरे पास गाड़ी है इससे में कई गांवों में आसानी से जा पाता हूं। गाँव में कोई भी पशु बीमार होता है तो फोन से लोग मुझे इलाज करने के लिए बुलाते है।"

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पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र है। लेकिन सभी केंद्रो की स्थिति लगभग बदतर है। पशुपालकों को ज्यादातर इन केंद्रो में डॅाक्टर मिलते ही नहीं है। ऐसे में मुकेश घर-घर जाकर पशुओं की एआई करते है और उनका प्राथमिक उपचार भी करते है।

शुरु में हर महीने मैं सिर्फ 60 से करता था लेकिन अब हर महीने 130-140 एआई करते है। एक एआई से 200 रुपए कमा लेते है
मुकेश कुमार कृत्रिम गर्भाधान कार्यवाहक

“’शुरु में हर महीने मैं सिर्फ 60 से करता था लेकिन अब हर महीने 130-140 एआई करते है। एक एआई से 200 रुपए कमा लेते है साथ लोगों को जिस नस्ल का एआई कर रहे है उसके बारे में पूरी जानकारी भी देते है ताकि पशुपालक भी जागरुक हो क्योंकि ज्यादातर पशुपालक बिना जाने समझे एआई कराते है जिससे उनको काफी नुकसान होता है।" मुकेश ने बताया,'केवीके में मैंने दो माह का प्रशिक्षण एआई करने का प्रशिक्षण लिया था उसके बाद पशुओं के प्राथमिक उपचार का भी प्रशिक्षण दिया गया। आज इससे पैसा कमा कर हम अपने स्कूल के बच्चों को अच्छे स्कूल में भी पढ़ा रहे है।"

युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बरेली स्थित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान के केवीके में युवाओ को सूअर पालन, मुर्गी पालन, गाय पालन के साथ-साथ कई व्यवसाय के प्रशिक्षण दिए जाते है, जिससे युवा उससे मुनाफा कमा सके। केवीके के प्रधान वैज्ञानिक डॅा बी.पी.सिंह ने बताया, "संस्थान द्वारा समय-समय पर ग्रामीण युवाओं को रोजगारपरक व्यवसायों की ट्रेनिंग दी जाती है। पशुपालन के साथ-साथ पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं को एआई का भी प्रशिक्षण दिया गया जिसमें कई युवाओं ने भाग लिया और आज अपने क्षेत्र में इसको रोजगार बना कर अच्छा मुनाफा कमा रहे है। प्रदेश के कई जिलों में करीब दस से भी ज्यादा युवा इस काम जुड़े हुए है।"

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ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले बदलाव के बारे में मुकेश बताते हैं, " अब लोग सीमेन किस क्वालिटी है इस बारे में पूछते है। जब यह काम मैंने शुरु किया था। तब लोगों को इस बारे ज्यादा जानकारी नहीं थी। साहीवाल एवं एच.एफ. मुर्रा भैंस की नस्ल के सीमेन मुझे विभाग द्वारा मिलते है और मैं पशुपालक तक इसको पहुंचा रहा हूं।

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