खेतों को ज़हर से मुक्ति दिलाएंगे नेपाल के ये युवा, बदलेंगे देश की तस्वीर

Neetu Singh | Dec 24, 2017, 18:55 IST
Organic farming
लखनऊ। आज के युवा जहां खेती छोड़कर अलग-अलग क्षेत्रों में कैरियर बनाने में जुटे हैं वहीं नेपाल के इन कुछ युवाओं ने अपनी नौकरी छोड़ जहरमुक्त खेती करने की ठान ली है। इनकी कोशिश है नेपाल के लोगों को विषाक्त मुक्त भोजन मिले, ये देश दूसरे देशों को जहरमुक्त खद्यान सामग्री उपलभ्ध करा सके और यहां के लोगों का पलायन रुक सके।

नेपाल का एक युवा यशवंत पौडेल (38 वर्ष) ने जापान में कुछ साल नौकरी की इसके बाद वहीं के बच्चों के लिए एक स्कूल का संचालन किया। जब ये नेपाल वापस आये तो इनका ये देखकर मन बेचैन हुआ कि यहां का युवा बहुत ज्यादा पलायन कर रहा है। यशवंत पौडेल का कहना है, “मेरे देखते हुए हमारे देश का खाद्यान दूसरे देशो में निर्यात होता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थिति ठीक विपरीत हो गयी है। आज हमारे देश में दूसरे देशों से खाद्यान सामग्री आने लगी है, पहले हम डेयरी का दूध खाते थे अब हम पैकेट बंद दूध पर पूरी तरह से निर्भर हो गये हैं।”



नेपाल के खेत उन्होंने कहा, “ये सब देखकर मेरा मन परेशान हुआ, मैं यहां के लोगों को रोजगार देना चाहता था, उन्हें शुद्ध भोजन देना चाहता था। दो साल पहले 16 हेक्टेयर जमीन लेकर रसायनमुक्त खेती करने की शूरूआत की। हमारा मकसद जहरमुक्त आनाज पैदा करके बहुत ज्यादा पैसा कमाना नहीं है। हम सिर्फ शुद्ध भोजन करना चाहते हैं, और शुद्ध अनाज बाकी देशों में भी पहुंचाना चाहते हैं।” यशवंत की तरह कई युवा नेपाल से लखनऊ के अंबेडकर विश्वविद्यालय सभागार में जीरो बजट की खेती सीखने आये हैं।

लोकभारती के सहयोग में लखनऊ के अंबेडकर विश्वविद्यालय सभागार में 20 दिसंबर से छह दिवसीय शून्य लागत प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दे रहे पद्मश्री सुभाष पालेकर से बांग्लादेश नेपाल समेत देश के लगभग 1500 से ज्यादा किसान और युवा खेती के तौर तरीके सीख रहे हैं।

सुभाष पालेकर ने कहा, “इस समय देश का युवा बेरोजगारी से गुजर रहा है, अगर रोजगार का सबसे आसान और सस्ता तरीका है तो वो खेती करना है। शून्य लागत से अगर युवा खेती करते हैं तो उन्हें न सिर्फ शुद्ध भोजन मिलेगा बल्कि शुद्ध अनाज की मंडी बनाने से अच्छा मुनाफा मिलेगा, इससे युवा खुद तो रोजगार पाएंगे ही साथ ही कई और लोगों को रोजगार देने में भी सक्षम होंगे।”

नेपाल में ऐसे बनता है बकरी का घर अस्सी के दशक में नेपाल की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी और यहां की लगभग 20 प्रतिशत ज़मीन पर खेती होती थी। नेपाल की जीडीपी का 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि से ही आता था और यहां से निर्यात होने वाले माल में 75 प्रतिशत कृषि उपज शामिल होती थी।

जीरो बजट खेती का प्रशिक्षण लेने आये नेपाल से युवाओं ने गांव कनेक्शन के साथ खेती की तरफ बढ़ते रुझान को साझा किया। नेपाल के झापा जिले के भद्रपुर नगर पालिका में रहने वाले यशवंत पौडेल के कई साथी रहते हैं जो इनके साथ मिलकर जीरो बजट पर पिछले दो वर्षों से 16 हेक्टेयर जमीन में खेती कर रहे हैं। किशोर कुमार वांस्तोला (34 वर्ष) इनकम टैक्स आफिस में काम करते हैं।

लखनऊ के अंबेडकर विश्वविद्यालय सभागार में सुभाष पालेकर जीरो बजट का प्रशिक्षण देते हुए इनका कहना है, “हमें आमदनी से मतलब नहीं है हमे शुद्ध भोजन चाहिए इसलिए हम रसायनमुक्त खेती कर रहे हैं। अभी शुरूवात है पिछले साल आलू, धान, मक्का लिया था, हम दोस्त कई जगहों पर जाकर खेती के तौर-तरीके सीख रहे हैं। पहले हम उन तरीकों को अपनें खेतों में लगते अपनाते हैं फिर अपने आसपास के किसानों को उन तरीकों को अपनाने की सलाह देते हैं।”

वो आगे बताते हैं, “विषादि रहित बाजार बनाना हम युवाओं की अब जिम्मेदारी हो गयी है। इसलिए हम सब युवा आगे आयें हैं, हमने अभी शुरुवात की है जल्द ही हम इसे नेपाल में बड़े पैमाने पर करना शुरू कर देंगे।”



नेपाल की एक शाम

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