आप भी बना सकते हैं अपना फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन, जानिए एफपीओ और एफपीसी में क्या है अंतर

अगर आप भी किसान हैं और फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी या फिर फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन शुरू करना चाहते हैं, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि कहां से शुरूआत करें? तो ये वीडियो आपके काम साबित हो सकता है, जिसमें एफपीओ और एफपीसी शुरू करने की पूरी जानकारी दी गई है।

Divendra SinghDivendra Singh   22 Feb 2023 9:03 AM GMT

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एफपीओ यानी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को लेकर किसानों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं, जैसे कि एफपीओ शुरू कैसे करें? एफपीओ और एफपीसी में अंतर क्या होता है? उत्तर प्रदेश एफपीओ एसोसिएशन के अध्यक्ष दया शंकर सिंह ऐसे ही कई सवालों के जवाब दे रहे हैं।

साल 2007 में जाने माने अर्थशास्त्री वाईके अलग ने इसकी शुरुआत की थी और फिर उन्होंने 2011 में पहला एफपीसी बनाया। एफपीओ यानी फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के तरह दो तरह के संगठन होते हैं, पहला है एफपीसी यानी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी और दूसरा है एफपीओ जोकि कोऑपरेटिव के तहत रजिस्टर होता है, उसे फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बोलते हैं।

चलिए जानते हैं कि इन दोनों में अंतर क्या होता है? फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी में जो कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर होता है वो एफपीसी होता है। जबकि जो कोऑपरेटिव एक्ट में रजिस्टर हो रहा है उसको भी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ही बोलते हैं। लेकिन दोनों में अंतर ये होता है कि जब आप एफपीसी बनाते हैं तो इससे आप पूरे देश में काम कर सकते हैं, क्योंकि जब हम प्राइवेट लिमिटेड या कंपनी की बात करते हैं तो ये मुख्य रूप से तीन तरीके की होती है


पहली तो हो गई प्राईवेट लिमिटेड, जिसमें एक या दो लोग मिलकर बनाते हैं, जिसमें ज्यादातर कंपनियां रजिस्टर्ड हैं।

एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन, किसानों का एक ऐसा समूह जो अपने क्षेत्र में फसल उत्पादन से लेकर खेती-किसानी से जुड़ी तमाम व्यावसायिक गतिविधियां भी चलाता है। एफपीओ के जरिये किसानों को न सिर्फ कृषि उपकरण के साथ खाद, बीज, उर्वरक जैसे कई उत्पादों को थोक में खरीदने की छूट मिलती है बल्कि वो तैयार फसल, उसकी प्रोसेसिंग करके उत्पाद को मार्केट में बेच भी सकते हैं।

फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन एक-दो मिलकर बनाते हैं, जबकि फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाने के लिए 10 लोग होने चाहिए, जिसमें पांच डायरेक्टर होते हैं। और हां उन्हें किसान होना चाहिए। अब लोगों के मन सवाल आता है कि यहां पर किसान की परिभाषा क्या है। इसके लिए किसान के नाम खतौनी होनी चाहिए, अगर यूपी की बात करें तो यहां पर जब तक पिता हैं तक बेटे के नाम संपंति आएगी। अब ऐसी दशा में एक सर्टिफिकेट बनाया जाता है कि प्रमाणित किया जाता है कि फला पुत्र फलां जगह के निवासी हैं, उनकी जीविका खेती पर आधारित है।

यह प्रमाणपत्र जिला कृषि अधिकारी या तहसीलदार या एसडीएम के माध्यम से जारी होता है। इसे प्रोड्यूसर सर्टिफिकेट कहा जाता है। सबसे जरूरी होता है कि अगर आपने प्रोड्यूसर कंपनी बनाई है तो आपको प्रोड्यूज करना होगा, ये नहीं कि बस कंपनी रजिस्टर करा ली और काम खत्म हो गया।


रजिस्ट्रेशन के लिए पहली खतौनी, दूसरा उसका आधार कार्ड, तीसरा पैन कार्ड और चौथा एक पासपोर्ट साइज फोटो लगती है। जब एक सीए के पास जाते हैं तो उनकी भाषा कठिन होती और किसान समझ नहीं पाते हैं, क्योंकि पहले एफपीओ रजिस्टर होता था तो 49500 फीस पड़ती थी, अब 15000 रुपए में रजिस्ट्रेशन हो जाता है। और ज्यादा से ज्यादा 25000 का खर्च आता है।

आप डेयरी पर काम करना चाहते हैं या पोल्ट्री पर काम करना चाहते हैं, ये आपको प्राथमिकता तय करनी होगी कि आप किस सेक्टर में काम करना चाहते हैं। इसमें कृषि से जुड़े काम करना होता है, कृषि के अंदर 17 विभाग आते हैं, सरकार की यही मंशा ही है कि आप कृषि से जुड़े काम करें, चाहे वो बकरी पालन हो, मुर्गी पालन हो या फिर खेती कर रहे हों।

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