दुबई से नौकरी छोड़ कांगड़ा में शुरू की प्राकृतिक खेती, अब गाँव के युवा सीख रहे हैं मालामाल होने की तरकीब

मोहन सिंह, हिमाचल प्रदेश के किसान हैं, पिता नहीं चाहते थे बेटा किसान बने, आज वही पिता बेटे की खेती पर गर्व करते हैं। प्राकृतिक खेती से उन्होंने गाँव के युवाओं को जोड़कर खेती का नज़रिया बदल दिया है।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   13 Nov 2023 11:21 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
दुबई से नौकरी छोड़ कांगड़ा में शुरू की प्राकृतिक खेती, अब गाँव के युवा सीख रहे हैं मालामाल होने की तरकीब

दुबई की नौकरी छोड़ अपने देश में सब्ज़ी उगा रहे मोहन सिंह को यकीन नहीं हो रहा है कि खेती से भी मालामाल हुआ जा सकता है।

मोहन के पिता हरिवंश सिंह खेती में लगातार नुकसान उठा रहे थे इसलिए नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भी खेती करे, लेकिन बेटे मोहन ने विदेश की नौकरी छोड़ खेती को भी 'कमाऊ पूत' साबित कर दिया है।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 215 कीलोमीटर दूर कांगड़ा जिले के घटोला ग्राम पंचायत के मोहन सिंह के यहाँ कई पीढ़ियों से खेती हो रही है, लेकिन खेती की बढ़ती लागत और घटते उत्पादन से उनके पिता परेशान थे, इसलिए मोहन सिंह गाँव से कई सौ किमी दूर सऊदी अरब चले गए।

38 साल के मोहन सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हमारे पिता खेती करते आ रहे हैं, लेकिन न मुझे खेती करने की इच्छा थी न ही हमारे पिता जी चाहते थे की हम खेती करें; सऊदी अरब में एक चेन कारखाने में काम करता था, लेकिन घर से दूर वहाँ मन नहीं लगता था। एक बार वहाँ बाज़ार में सब्जी खरीदने गया और खीरे का दाम पूछा तो 200 रुपए का बताया; मैंने और पता किया तो मालूम चला कि ये खीरा तो इंडिया से ही आता है।"


वो आगे कहते हैं, "हमने उनसे बताया कि हमारे यहाँ तो एक-डेढ़ रुपए में मिलता है; उन्होंने बताया की कोई तमिलनाडु का एफपीओ है, जहाँ से खीरा जाता है, उसी समय मैंने सोच लिया कि मुझे भी वापस जाकर खेती करनी है।"

बस फिर क्या था, कुछ दिनों बाद मोहन वापस अपने गाँव लौट आए और यहाँ पर देशी गाय ली और पद्मश्री सुभाष पालेकर से जुड़ गए और प्राकृतिक खेती शुरू की। मोहन बताते हैं, "केमिकल वाली खेती में खर्च ज़्यादा आता है, वहीं प्राकृतिक खेती में कम खर्च लगता है।"

मोहन सिंह धनिया, पालक, गोभी, शलजम, खीरा जैसी फ़सलें उगाते हैं और अब दूसरे किसानों को भी इससे जोड़ रहे हैं। मोहन कहते हैं, "मैंने तो केमिकल फ्री खेती शुरू कर दी, लेकिन अब मुझे दूसरों को भी यही सिखाना है। किसानों को पता ही नहीं कि खेत में कौन सी खाद डालें, उन्हें तो यही लगता है कि जितनी खाद डालेंगे उतनी पैदावार मिलेगी, जबकि ऐसा नहीं होता है।"

मोहन जब विदेश में थे तो पाँच लाख तक कमाते थे, लेकिन अब घर पर रहकर छह-सात लाख तक कमा लेते हैं। मोहन बताते हैं, "अब अपने परिवार के साथ हूँ और अपना काम करके ज़्यादा कमा रहा हूँ।"

देवपुर गाँव के अजय कुमार सिंह भी मोहन से सीखकर खेती करने लगे हैं। अजय बताते हैं, "पहले नोएडा की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था; फिर मैं मोहन से जुड़ा तो लगा कि मुझे भी खेती करनी चाहिए, मेरे पास 25 कनाल ज़मीन है, और ज़मीन लीज पर लेकर कुल 50 कनाल में खेती करता हूँ।"

अजय के अनुसार प्राकृतिक खेती में मेहनत ज़्यादा है, क्योंकि खाद खुद से बनानी होती है, लेकिन सब्जियों का दाम ज़्यादा मिल जाता है, तो फिक्र नहीं रहती।

मोहन हिमाचल प्रदेश के युवाओं को खेती से जोड़ना चाहते हैं, जिससे पलायन रुक सके। वे कहते हैं, "सभी किसान नेचुरल फार्मिंग नहीं कर पाते हैं कुछ किसान फिर अपने पुराने खेती में जाना चाहते हैं, क्योंकि प्राकृतिक खेती में मेहनत बहुत लगती है; कई किसान तो बीच में ही छोड़ना चाहते हैं तो उन्हें समझाता हूँ, कुछ दिनों में फायदा भी मिलने लगेगा।"

KisaanConnection 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.