मराठवाड़ा में इन वज़हों से टूट रही है किसानों की उम्मीदें

महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र सूखा, फ़सल बर्बादी और किसानों की आत्महत्या के लिए जाना जाता है। एक बार फिर बारिश में देरी ने किसानों को चिंता में डाल दिया है। जिन्होंने अपनी खरीफ फसलों की बुआई कर ली है उनके लिए बारिश का न होना पहाड़ टूटने से कम नहीं है।

Sushen JadhavSushen Jadhav   21 Jun 2023 7:18 AM GMT

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छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद), महाराष्ट्र। शाहदेव ठाकरे अपनी लगभग पाँच हेक्टेयर खेत में कई तरह की फसलों की खेती करते हैं। इस खरीफ के मौसम में, महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर जिले (पूर्व में औरंगाबाद) में देवगाँव के 50 साल के ठाकरे ने कपास और तूर दाल (अरहर) की बुवाई की है। उनके खेत के एक हिस्से में मोसम्बी के पेड़ हैं, जो अब गर्मी में सूख रहे हैं। यही हाल शहतूत का है।

“मेरी ज़मीन पर एक भी फ़सल ऐसी नहीं है जिसके इस साल अच्छा होने की उम्मीद हो। मानसून की बारिश ने पानी फेर दिया है। मैंने जो कुछ भी बोया था, वह मुरझा रहा है और मर रहा है, "महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र के किसान, जिसे भारत की किसान आत्महत्या राजधानी के रूप में भी जाना जाता है, ने गाँव कनेक्शन को बताया।

ठाकरे ने कहा कि उन्होंने तुअर दाल के लिए बीज़ खरीदने पर लगभग 10,000 रुपये और कपास के बीज़ खरीदने के लिए 15,000 रुपये खर्च किए थे। उसे अब भारी नुकसान होता दिख रहा है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 20 जून तक, महाराष्ट्र में वर्षा की कमी (1 जून से 20 जून के बीच) -88 प्रतिशत दर्ज की गई है। आईएमडी के आंकड़ों से पता चलता है कि 119.20 मिलीमीटर की सामान्य बारिश के मुकाबले, राज्य में अब तक केवल 14.90 मिलीमीटर दर्ज़ की गई है। मराठवाड़ा में माइनस 90 फीसदी बारिश हुई है।

महाराष्ट्र में ठाकरे जैसे लाखों किसान बारिश का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं ताकि वे अपने द्वारा बोए गए खरीफ फसल के बीज़ों को बचा सकें या दोबारा बुआई कर सकें।

भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत इस साल एक सप्ताह की देरी से हुई, और उसके बाद चक्रवात बिपरजॉय के बनने के कारण मानसून की रफ़्तार धीमी रही है। इसने राज्य के अर्ध-शुष्क मराठवाड़ा क्षेत्र में ख़तरे की घंटी बजा दी है, जहाँ किसानों का एक बड़ा हिस्सा ख़ेती के लिए बारिश पर निर्भर है।

मानसून की बारिश में देरी, या लंबी शुष्क अवधि अक्सर फसल की विफलता में तब्दील हो जाती है, जो किसानों की आत्महत्या का कारण बनती है। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, पिछले साल, 2022 में, मराठवाड़ा में कम से कम 1,023 किसानों ने आत्महत्या की।

इस बार मानसून अपने निर्धारित समय से पीछे चल रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 20 जून तक, महाराष्ट्र में वर्षा की कमी (1 जून से 20 जून के बीच) -88 प्रतिशत दर्ज की गई है। आईएमडी के आंकड़ों से पता चलता है कि 119.20 मिलीमीटर की सामान्य बारिश के मुकाबले, राज्य में अब तक केवल 14.90 मिलीमीटर दर्ज़ की गई है। मराठवाड़ा में माइनस 90 फीसदी बारिश हुई है।

मानसून गायब, बढ़ रहा है नुकसान

ठाकरे के अनुसार, मराठवाड़ा में किसानों के लिए, वर्ष का यह समय जिसे 'मृगशिरा नक्षत्र' कहा जाता है विशेष है। "मानसून की बारिश (7 जून के आसपास) के आने के बाद से बीस दिनों की अवधि को मृगशिरा नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर हम खरीफ की फसल 20 जून तक बोते हैं, तो अच्छी फसल की संभावना बहुत अधिक होती है, ”किसान ने समझाया।

लेकिन अभी तक इस मानसून सीजन में ठीक से बारिश नहीं हुई है। किसानों ने अभी से नुकसान गिनाना शुरू कर दिया है। उनका मानना है कि यह साल घाटे की फसल लेकर आएगा।

मानसून की बारिश में देरी, या लंबी शुष्क अवधि अक्सर फसल की विफलता में तब्दील हो जाती है, जो किसानों की आत्महत्या का कारण बनती है।

देवगाँव के एक अन्य किसान दीपक जोशी गाँव कनेक्शन को बताते हैं कि उन्होंने 20 हजार रुपये में उड़द और मूंग दाल के बीज़ मंगवाए थे, लेकिन उनकी बुआई बेकार चली गई।

“बीज सूख गए और अंकुरण की बहुत कम उम्मीद बची थी। मैंने अपने खेत को फिर से जोत लिया है और इस बार मैं तुअर दाल के कुछ बीज़ खरीदने के लिए पैसों का इंतज़ाम कर रहा हूँ, ”जोशी ने कहा। “उन किसानों के लिए जो अभी भी मूंग और उड़द के बीज़ों के अंकुरित होने का इंतज़ार कर रहे हैं, वे भी अरहर दाल का नुकसान उठा सकते हैं, क्योंकि बुवाई का समय खास है। हर किसी के पास एक बीज़ के बाद दूसरे बीज़ में खरीदने के लिए पैसा नहीं होता है।"

फसल उत्पादन में गिरावट की संभावना

वैजापुर तहसील के घायगाँव गाँव के 36 साल के किसान गोकुल सालुंके ने बताया कि मानसून की बारिश के समय ने मक्का जैसी मोटे फसलों पर भी कहर बरपाया है। सालुंके ने कहा कि उन्होंने अब तक मक्का के बीज़ पर 10,000 रुपये और कपास के बीज पर 8,000 रुपये खर्च किए हैं। 14 एकड़ (लगभग चार हेक्टेयर) ज़मीन के मालिक ने बताया कि उसका सबसे बड़ा ख़र्चा खाद पर आया।

“मानसून की बारिश यहाँ 7 जून तक पहुँच जाती थी, लेकिन इस साल बहुत सूखा रहा है। जो बारिश हुई वह बहुत कम हुई और इसने एक तरह से किसानों को ठगा है। बारिश बिल्कुल न होती तो अच्छा होता। कम से कम किसानों ने बीज़ पर खर्च तो न किया होता। इस साल मक्का के उत्पादन में 30 टका (प्रतिशत) का नुकसान हो जाएगा। " सालुंके ने गाँव कनेक्शन को बताया।


शाहदेव ठाकरे ने कहा कि उन्होंने मृगशिरा नक्षत्र के दौरान इतनी गर्मी कभी नहीं देखी थी। “अब तक बारिश बहुत खराब रही है। मेरी अरहर की फसल के बीज़ों का अंकुरण भी नहीं हो रहा है। इसके अलावा, कपास, जो कुछ हफ्ते पहले बोई थी, वो भी मुरझा रही है। " ठाकरे ने आगे बताया।

ठाकरे, ने समय पर बारिश होने पर 150,000 रुपये का मुनाफा जुटाने की उम्मीद में लगभग 20,000 रुपये में 300 रेशम के कीट का ऑर्डर दिया था, अब घाटे में चल रहे हैं।

“मैं शहतूत रेशम के लिए रेशम के कीड़े पालता हूँ। शहतूत के पौधे की पत्तियों को रेशम के कीट खाते हैं, लेकिन गर्मी से शहतूत की पत्तियाँ मुरझा रहीं हैं और कीट मर रहे हैं। यह ऐसा है जैसे प्रकृति नहीं चाहती कि इस साल कोई भी फसल अच्छी हो। ” किसान ने कहा।

उन्होंने कहा, "कुएँ में भी पानी नहीं है, कुएँ पर लगाया पंप सिर्फ आधा घंटा चलता है, खेत के तालाब में भी पानी खत्म हो गया है।"

मंडरा रहा जल संकट

छत्रपति संभाजी नगर जिले में वैजापुर तहसील के संभागीय आयुक्त की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 547 गाँवों और 1,404 बस्तियों को 426 पानी के टैंकरों से आपूर्ति की जा रही है, क्योंकि स्थानीय स्रोतों जैसे तालाबों और कुओं से पानी पूरी तरह से समाप्त हो गया है।


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