ए2, ए2+एफएल और सी2, इनका नाम सुना है आपने ? किसानों की किस्मत इसी से तय होगी

Mithilesh Dhar | Feb 03, 2018, 09:38 IST

चैनल हो या अखबार, बजट को लेकर सबने यही लिखा कि ये बजट किसानों के लिए है। अब किसानों के अच्छे दिन आ जाएंगे। सरकार ने बजट में घोषणाएं भी ऐसी ही की हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को पेश बजट सभी फसलों का एमएसपी तय करने की बात कही। इसके लि‍ए सरकार ने तय कि‍या है अब कि‍सानों को उनकी फसल का जो दाम मि‍लेगा वह उनकी लागत का कम से कम डेढ़ गुना होगा।

जेटली ने कहा कि सरकार ने रबी की फसलों के लि‍ए जो एमएसपी तय की है वही इसी नीति पर है। इसके अलावा आगामी खरीफ की फसलों के लि‍ए भी सरकार ने यही तय कि‍या है कि सभी फसलों की एमएसपी लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज्‍यादा होगी। जेटली ने कहा कि देश तरक्‍की कर रहा है उस तरक्‍की का फायदा कि‍सानों को भी दि‍या जाएगा।

सरकार ने लागत का 1.5 गुना देने की ऐलान तो कर दिया है लेकिन वित्त मंत्री ने यह नहीं बताया की लागत कैसे जोड़ा जायेगा। इसमें भूमि की कीमत, किसान परिवार की खुद का मजदूरी वह भी कुशल मजदूरी के अनुसार मजदूरी। इसके बाद किसान के द्वारा जो खेत में लागत होता है तथा जोखिम मूल्य भी जोड़ा जाना था। यह सभी बात पर कोई चर्चा नहीं अभी नहीं हुई है।

कृषि मामलों के जानकार और विशेषज्ञ रमनदीप सिंह मान कहते हैं, "सरकार ने घोषणा तो कर दी है, लेकिन उनकी नीतियां स्पष्ट नहीं है। किसान को एमएसपी के नाम पर छला गया है। सरकार ने अभी तक ये तय नहीं किया कि किसानों को एमएसपी किस तरह की लागत पर मिलेगा। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में ये बताया ही नहीं।



एक अनुमान के मुताबिक 2017-18 में गेहूं की ए2+एफएल लागत 817 रुपए प्रति कुंतल बैठती है। इसमें 50 फीसदी लागत जोड़ देने से एमएसपी 1325 रुपए प्रति कुंतल हो जाती है। गेहूं की ही सी2 लागत 1256 रुपए प्रति कुंतल बैठती है और इसमें 50 फीसदी लागत और जोड़ने से एमएसपी 1879 रुपए प्रति कुंतल हो जाती है। मौजूदा केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2017 में गेहूं का एमएसपी 1735 रुपए कुंतल तय किया था। इस तरह से किसान को प्रति कुंतल गेहूं पर 144 रुपए कम मिलेंगे। सरकार का कहना है कि वे अभी मूल्य निर्धारण के लिए कमेी बनायी जायेगी। तब तक तो चुनाव बीत जाएगा आैर किसानों को कुछ नहीं मिलेगा ।"

2004 में यूपीए सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया था। इसका लक्ष्य भारत में खेती, खाद्यान्न उत्पादन, सूखे की समस्या से निपटने के लिए अपने सुझाव देना था। इस आयोग को स्वामीनाथन कमीशन के नाम से जाना गया। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट (2006) में किसानों को फसलों पर आई लागत का 50 फीसदी एमएसपी देने को कहा था। इस कमीशन ने फसल पर आने वाली लागत को तीन हिस्सों- ए2, ए2+एफएल और सी2 में बांटा था।

ए2 लागत में किसानों के फसल उत्पादन में किए गए सभी तरह के नकदी खर्च शामिल होते हैं। इसमें बीज, खाद, केमिकल, मजदूर लागत, ईंधन लागत, सिंचाई आदि लागतें शामिल होती हैं। ए2+एफएल लागत में नकदी लागत के साथ ही परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा जाता है। वहीं सी2 लागत में फसल उत्पादन में आई नकदी और गैर नकदी के साथ ही जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और जमीन के अलावा दूसरी कृषि पूंजियों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है।

भारतीय किसान संघ के नेता शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्का जी कहते हैं, "वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किसानों को उनकी फसल में लागत पर 50 फीसदी एमएसपी मिलेगा। हालांकि, उन्होंने यह साफ नहीं किया कि यह एमएसपी किस तरह की लागत पर मिलेगा। स्वामीनाथन कमीशन आने के बाद से किसानों की लागत को तीन श्रेणियों में गिना जाता है। किसानों को अगर सी2 लागत पर 50 फीसदी एमएसपी मिले तो ही उनके लिए फायदे की बात हो सकती है। ए2 लागत में 50 फीसदी मिलने पर उन्हें लागत का काफी कम मूल्य मिलेगा। ऐसे में किसानों को धोखा ही दिया जा रहा है।"

सरकार आलू, प्याज भंडारण (ग्रीन फूड) के लिए 500 करोड़ रुपया दिया गया है। यह पैसा ऊंट के मुह में जीरा के समान है। केंद्र सरकार ने जितना दिया है उतना पैसा में तो एक राज्य का भंडारण भी पूरा नहीं हो पायेगा। सरकार ने आलू और प्याज के लिए किसी भी तरह का न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा नहीं किया है। इसका मतलब की आलू और प्याज बाजार के ऊपर छोड़ दिया गया है। इससे किसानों को आगे भी आलू और प्याज रोड पर फेंकते हुए देखा जायेगा।

किसान नेता और कृषि विशेषज्ञ केदार सिरोही कहते हैं "यह भी याद रखा जाना चाहिए कि देश के केवल 6 फीसदी किसानों को ही उनकी फसल पर एमएसपी मिल पाता है। बाकी किसानों की फसल बिचौलियों, साहूकरों और दूसरे दलालों के पास जाती है। वित्त मंत्री ने यह भी साफ नहीं किया है कि 94 फीसदी किसानों को एमएसपी दिलवाने के लिए क्या इंतजाम किए जाएंगे। उनकी खरीद को सरकारी खरीद केंद्रों में पहुंचाना कैसे सुनिश्चित होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है।

सरकार ने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के लिए 26,00 करोड़ रुपया दिया है जो 96 जिलों में लागू किया जायेगा। पिछले वर्ष यह योजना 46 जिलों में लागू था लेकिन कहीं पर भी इसका असर नहीं देखा गया है। वित्त मंत्रीं ने यह नहीं बताया की इस योजना से कितने किसान लाभान्वित हुआ तथा कितना कृषि भूमि सिंचित हुई है। इस योजना का सही आकलन नहीं किया जा सका है।

कृषि क्षेत्र को पिछले साल मिले बजट से इस बार के बजट की तुलना की जाए तो 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा भी जमीन पर उतरता नजर नहीं आ रहा है। 2017-18 में कृषि क्षेत्र के लिए 41,886 करोड़ रुपए आवंटित थे, जिसे बाद में बदलकर 41,105 करोड़ रुपए किया गया था। इस बार के बजट में 2018-19 में इस आवंटन को बढ़ाकर 46,700 करोड़ रुपए किया गया है। यानी केवल 4,845 करोड़ रुपए बढ़ाकर कैसे किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। यह सवाल भी अनुत्तरित है।

कक्का जी आगे कहते हैं "यह महज धोखा है, किसानों के साथ इस सरकार ने बहुत खूबसूरती से छल किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के घोषणापत्र में जो वादे किए गए थे उन्हें जरा भी नहीं निभाया गया है। भाजपा ने किसानों के साथ बहुत बुरा मजाक किया है।"

एक बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार किन-किन फसलों की खरीद एमएसपी पर करती है और कहां-कहां किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। पिछले साल रबी सीजन में अनुमान के मुताबिक, देश में 9.83 करोड़ टन गेहूं की रिकार्ड पैदावार हुई थी और सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1625 रुपए प्रति कुंतल तय किया था। लेकिन पंजाब और हरियाणा को छोड़कर किसी भी राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया जबकि बाजार भाव एमएसपी से काफी कम था। देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में करीब 37 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हो पाई जबकि प्रदेश सरकार ने शुरुआत में 50 लाख टन का लक्ष्य रखा था, जिसको बाद में नई सरकार ने बढ़ा दिया था। वहीं, बिहार में बिल्कुल भी खरीद नहीं हो पाई, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी सरकारी खरीद कम हो पाई।

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