मछली और पौधे साथ-साथ: जानिए स्मार्ट एक्वापोनिक खेती का विज्ञान

Gaon Connection | Jul 23, 2025, 12:19 IST

स्मार्ट एक्वापोनिक्स प्रणाली, जो मछली पालन और बिना मिट्टी की खेती को एक साथ जोड़ती है, एक क्रांतिकारी कदम है। तकनीक और पर्यावरण का यह अनूठा संगम आने वाले समय की सबसे बड़ी ज़रूरत बन सकता है। खासकर भारत जैसे देशों में जहाँ जलवायु और खाद्य सुरक्षा दोनों ही गंभीर चिंता के विषय हैं।

2050 तक दुनिया की जनसंख्या 10 अरब से ज़्यादा हो सकती है। इतने लोगों के लिए खाना जुटाना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। ज़मीन की कमी, मौसम में बदलाव और खेती की लागत बढ़ने से पारंपरिक खेती अब उतनी कारगर नहीं रह गई है। मिट्टी की ताकत घट रही है, कीटनाशक और रासायनिक खादों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल हो रहा है, और पानी के स्रोत भी सूखते जा रहे हैं। ऐसे में अब हमें खेती के नए, टिकाऊ और तकनीकी तरीके खोजने की ज़रूरत है।

इसी दिशा में एक नई तकनीक सामने आई है जिसे एक्वापोनिक्स कहा जाता है। इसमें मछली पालन और बिना मिट्टी के पौधों की खेती को एक साथ मिलाकर काम किया जाता है। इसमें मछलियों का मल पौधों के लिए खाद का काम करता है, और पौधे पानी को साफ करके मछलियों को फिर से इस्तेमाल के लिए भेजते हैं। यह एक तरह से एक बंद और स्वच्छ साइकिल है। इस तकनीक में पानी की बहुत कम ज़रूरत होती है—पारंपरिक खेती की तुलना में केवल 10% पानी लगता है।

opportunities and challenges of smart aquaponic system (1)
Analysis of opportunities and challenges of smart aquaponic system” नाम के इस अध्ययन में बताया गया है कि अगर इस एक्वापोनिक प्रणाली में तकनीक को और जोड़ा जाए—जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और स्मार्ट सेंसर—तो यह सिस्टम और भी असरदार हो सकता है और बड़े स्तर पर इस्तेमाल के लायक बन सकता है।

इस स्मार्ट एक्वापोनिक सिस्टम में अलग-अलग सेंसर लगाए जाते हैं जो लगातार पानी की गुणवत्ता, तापमान, ऑक्सीजन, अमोनिया, नाइट्रेट्स, प्रकाश और नमी की जांच करते रहते हैं। इससे मछलियों और पौधों दोनों को बेहतर माहौल मिलता है। जैसे अगर पानी में ऑक्सीजन कम हो जाए, तो मछलियाँ बीमार पड़ सकती हैं। इसी तरह अगर pH का स्तर ठीक न हो तो पौधों की बढ़त रुक सकती है।

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से इन सभी आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और ज़रूरत होने पर खुद-ब-खुद पोषक तत्वों की मात्रा या पानी का स्तर बदला जा सकता है। मान लीजिए मौसम अचानक गर्म हो गया, तो सिस्टम अपने आप पंखे या पानी की ठंडक बढ़ा सकता है। या किसी खास फसल को ज़्यादा नाइट्रोजन चाहिए तो वह उसकी पूर्ति कर सकता है। AI यह भी समझ सकता है कि कौन सी फसल को कितनी खाद और कब चाहिए।

opportunities and challenges of smart aquaponic system (4)
IoT टेक्नोलॉजी से यह सिस्टम मोबाइल या कंप्यूटर से जुड़ा रहता है। इसका मतलब यह कि किसान अपने फोन से अपने खेत की निगरानी कर सकते हैं। अगर कोई सेंसर दिखाता है कि पानी कम हो गया है या तापमान ज़्यादा हो रहा है, तो किसान को तुरंत अलर्ट मिल जाता है। और कुछ मामलों में सिस्टम खुद ही वह दिक्कत ठीक कर सकता है—जैसे पंप चालू करना या लाइट कम करना।

इस सिस्टम में अगर सोलर (सौर) या पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा भी जोड़ी जाए, तो यह और ज्यादा पर्यावरण के अनुकूल बन जाता है। सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप और लाइट सिस्टम पानी और बिजली दोनों की बचत करते हैं।

opportunities and challenges of smart aquaponic system (1)
शोध में यह भी बताया गया है कि हालांकि स्मार्ट एक्वापोनिक सिस्टम को शुरू करने में खर्च थोड़ा ज़्यादा होता है—जैसे सेंसर, पंप, कंट्रोल बॉक्स आदि लगाने पड़ते हैं—पर आगे चलकर इससे मेहनत और लागत दोनों में भारी कमी आती है। पानी और खाद की खपत कम होती है, उत्पादन ज़्यादा होता है और खेती की गुणवत्ता बेहतर होती है। यह सिस्टम खास तौर पर शहरों में, छतों पर या छोटे ग्रीनहाउस में भी सफल हो सकता है।

यह शोध बताता है कि आने वाले समय में और भी कई सुधार की ज़रूरत है। जैसे:

  • एक ही सिस्टम से सारे मापदंडों का एक साथ नियंत्रण कैसे किया जाए,
  • बड़े स्तर पर चलाने के लिए कौन सा कंट्रोल सिस्टम बेहतर रहेगा,
  • किन फसलों और मछलियों का जोड़ा सबसे ज़्यादा फायदा देगा,
  • और कैसे इस तकनीक को भारत जैसे देशों की ज़रूरतों के हिसाब से स्थानीय रूप में ढाला जा सके।
यह तय है कि स्मार्ट एक्वापोनिक्स आने वाले समय की खेती का एक मजबूत विकल्प बन सकता है। यह सिस्टम ना केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि यह छोटे किसानों के लिए एक नई कमाई और पोषण का रास्ता भी खोल सकता है। अगर सरकारें, वैज्ञानिक और किसान मिलकर इसे अपनाएँ, और इसके लिए जरूरी ट्रेनिंग और सहायता मिल सके, तो यह भारत जैसे देश में लाखों लोगों की ज़िंदगी बदल सकता है।

लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

खर्च ज्यादा होना: शुरू में स्मार्ट सेंसर, सॉफ्टवेयर और सेटअप का खर्च ग्रामीण इलाकों में बाधा बन सकता है।

तकनीकी जानकारी की कमी: कई किसानों के लिए इसे समझना और चलाना आसान नहीं होगा।

बिजली और नेटवर्क की दिक्कत: गाँवों में इंटरनेट और बिजली की कमी इस तकनीक के रास्ते में रुकावट डाल सकती है।

समाज और नीति से जुड़ी चुनौतियाँ: नई तकनीक को अपनाने में कई बार सामाजिक झिझक और सरकारी नियमों की भी बाधाएँ होती हैं।