जीएसटी से मेंथा कारोबारियों और किसानों की बल्ले-बल्ले, कीमतें 40 फीसदी तक बढ़ीं

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   4 Aug 2017 9:11 PM GMT

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जीएसटी से मेंथा कारोबारियों और किसानों की बल्ले-बल्ले, कीमतें 40 फीसदी तक बढ़ींपिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ी हैं कीमतें। फोटो- विनय गुप्ता

लखनऊ। मेंथा यानि पिपरमिंट की खेती करने वाले किसानों के अच्छे दिन आ गए हैं। मेंथा ऑयल का रेट 1100- से 14000 प्रति किलो पहुंच गया है, जबकि पिछले वर्ष अगस्त महीने में ये महज 700-800 रुपए थे। मेंथा की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह जीएसटी भी बताया जा रहा है।

मेंथा के गढ़ बाराबंकी के बेलहरा कस्बे में बड़े पैमाने पर मेंथा का कारोबार होता है। यहां मौर्या बाजार में पिछले 7 वर्षों से तेल की खरीद-फरोख्त कर रहे कारोबारी संतोष मौर्या (45 वर्ष) फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, '' मेंथा किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है। पिछले साल से कीमत करीब डेढ़ गुना है, अभी रेट 1110 के आसपास है, जो आगे बढ़ सकता है।”

मेंथा ऑयल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दवाओं में होता है। जानकारों के मुताबिक सरकार के कॉस्मेटिक हेल्थ प्रोडक्टस और फूड सप्लीमेंटस पर 18 फीसदी जीएसटी लागू करने से मेंथा आयल के दामों से जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2012 मेंथा किसानों के लिए सबसे मुफीद रहा था और कीमतें 2400 तक पहुंच गई थी, लेकिन उसके बाद लगातार गिरावट जारी रही और 600-800 में बिकता रहा।

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भारत में मेंथा की खेती व मेंथा ऑयल के बाज़ार पर बड़े स्तर पर काम कर रही संस्था स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत से वर्ष 2016 में मेंथा आयल और इससे जुड़े उत्पादों का निर्यात करीब 21,150 टन का था, जिसकी कीमत 2.5 करोड़ रुपए थी, जो देश में होने वाले कुल मसाला निर्यात का 16 फीसदी है। ज़्यादातर एलोपैथिक दवाओं में मेंथा आयल का इस्तेमाल होने के कारण विदेशों में मेंथा आयल की मांगों इजाफा हुआ है।

जीएसटी लागू होने से मेंथाआयल के कारोबार में 30 से 40 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। इस साल मेंथा का रकबा काफी घट गया था, इसलिए प्रदेश में मेंथा आयल के बड़े स्तर होने वाले व्यापार पर खतरा दिख रहा था। लेकिन जीएसटी आने से दवाइयां महंगी हुई हैं, जिससे रेट हज़ार के पार चला गया है।’
देववृत शर्मा, इंचार्ज, मिंट ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया

मिंट ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, अंबेडकरनगर, बहराइच, हरदोई, अमेठी, सीतापुर जिलों में बड़ी संख्या में किसानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। संस्था के इंचार्ज यूपी देववृत शर्मा बताते हैं,'' जीएसटी लागू होने से मेंथाआयल के कारोबार में 30 से 40 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। इस साल मेंथा का रकबा काफी घट गया था, इसलिए प्रदेश में मेंथा आयल के बड़े स्तर होने वाले व्यापार पर खतरा दिख रहा था। लेकिन जीएसटी आने से दवाइयां महंगी हुई हैं, जिससे रेट हज़ार के पार चला गया है।''

बाराबंकी है मेंथा की खेती का गढ़, यूपी के 2 दर्जन जिलों में होती है खेती।

“सिंथेटिक मेंथा आने के बाद बाजार पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा था। लेकिन सीमैप ने पिछले वर्षों में काफी मेहनत की। बेहतर रिजल्ट देने वाली वैरायटी सिम क्रांति विकसित की और इंडस्ट्री से संपर्क किया, क्योंकि अच्छी कीमतें मिलना किसानों को जरुरी है।”
वरिष्ठ वैज्ञानिक सीमैप डॉ संजय कुमार

मेंथा की नई वैरायटी को विकसित करने वाली सरकारी संस्था केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) भी कीमतें बढ़ने से खुश है। यहां के वरिष्ठ वैज्ञानिक और हेड बिजनेस एंड डेवलपमेंट डॉ संजय कुमार बताते हैं, “सिंथेटिक मेंथा आने के बाद बाजार पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा था। लेकिन सीमैप ने पिछले वर्षों में काफी मेहनत की। बेहतर रिजल्ट देने वाली वैरायटी सिम क्रांति विकसित की और इंडस्ट्री से संपर्क किया, क्योंकि अच्छी कीमतें मिलना किसानों को जरुरी है।” भारत में सीमैप का कारोबार करीब 4000 करोड़ का है। सीमैप के मुताबिक वर्ष 2012 में ये 6 हजार करोड़ का हो गया था, आने वाले कुछ वर्षों में अनुमान है कि 10 हजार करोड़ तक पहुंचेगा।

मेंथा पेराई (आसवन) का आधुनिक प्लांट

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संजय कुमार आगे बताते हैं, “ भारत से दुनिया के कई देशों में मेंथा सप्लाई किया जाता है, एक दौर ऐसा आया कि दुनिया को लगा मेंथा की फसल खत्म हो जाएगी। लेकिन सीमैप ने काफी मेहनत की। जापान में उद्योग के समूह को भारत बुलाया और बात थी।’

सीमैप ने मेंथा के सबसे बड़े ग्राहक एमसीएक्स (मल्टी कमोडिटी एक्सजेंच) को सीधे किसानों को जोड़ा। उनके बाराबंकी और चंदौली में सीधे सेंटर खोले गए हैं। उत्तर प्रदेश में चंदौली से लेकर बहराइच तक बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है, जो बिहार में भी कई जगह किसानों ने काम शुरु किया है। सीमैप को उम्मीद है यही रेट रहे तो अगले वर्ष रकबा बढ़ सकता है। मेंथा की पेराई हो चुकी है, कुछ किसानों ने दूसरे लेह (सेकेंड्र क्राप) की देखभाल में जुटे हैं। सीमैप के वैज्ञानिकों के मुताबिक नई किस्मों के विकसित होने, और खेती से लेकर पेराई तक नई विधियों के आने से किसानों को काफी फायदा हुआ है। नए डिस्ट्रलरी प्लांट से जहां रिकवरी बढ़ी हैं वहीं टंकियां फटने का खतरा भी कम हुआ है।

लखनऊ जिले के बीकेटी ब्लॉक के अटेसुआ गाँव के किसान फखरुद्दीन (42 वर्ष) सात एकड़ में मेंथा की खेती करते हैं। इस बार उनको मेंथा की फसल से दोहरा लाभ मिला है। फखरुद्दीन बताते हैं,'' हमने पिछले हफ्ते ही मेंथा बेचा है। इस बार 1,400 रुपए प्रति किलो पर मेंथा बिका है। मेंथा की ऐसी कीमत पिछले दो सालों में नहीं मिली है।''

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खेती और कटाई का समय

उत्तर प्रदेश में मेंथा की बुआई आमतौर पर जनवरी से मार्च के बीच होती है और फसल जून में काटी जाती है। मेंथा आयल का व्यापार जून-जुलाई माह में होता है। उत्तरप्रदेश में मेंथा की खेती मुख्यरूप से बाराबंकी, जलौन, मेरठ, फैज़ाबाद,अंबेडकरनगर, बहराइच, हरदोई, अमेठी और सीतापुर क्षेत्रों में होती है।

मेंथा आयल के व्यापार पर मंडियों में नहीं देना पड़ेगा कोई शुल्क

हाल ही में बाराबंकी की सांसद प्रियंका सिंह रावत के साथ उत्तर प्रदेश मेंथा आयल एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि मंडल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से मिला, जिसमे मेंथा किसानों की समस्याओं को प्रमुख रूप से उठाया गया। इसपर उपमुख्यमंत्री ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वासन दिया है कि जल्द ही मेंथा किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में मेंथा आयल को मंडी टैक्स से मुक्त किया जाएगा।

वीडियो- देखिए कैसे होती है मेंथा की खेती और पेराई

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