किसानों के एफपीओ ने ढाई साल में किया करोड़ों का कारोबार, जमा किया 8 लाख का इनकम टैक्स

ये किसानों के द्वारा बनाई पहली फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी है जिसने आयकर के रूप में आठ लाख रुपए का भुगतान किया है।

Neetu SinghNeetu Singh   6 Nov 2018 7:45 AM GMT

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किसानों के एफपीओ ने ढाई साल में किया करोड़ों का कारोबार, जमा किया 8 लाख का इनकम टैक्स

लखनऊ। यूपी के किसानों कि पहली फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने दो साल पांच महीने में छह करोड़ पचास लाख से अधिक का व्यापार कर लिया है। ये उत्तर प्रदेश के किसानों की पहली एेसी कम्पनी है जिसने आयकर के रूप में आठ लाख रुपए का भुगतान किया है।

पूर्वांचल के छोटी जोत के 18 किसानों ने वर्ष 2015 में नाबार्ड के सहयोग से 'पूर्वांचल पोल्ट्री उत्पादक कम्पनी' का रजिस्ट्रेशन कराया। नाबार्ड के सहयोग से बनी ये कम्पनी मुख्य रूप से मुर्गियों का दाना बनाने का काम करती है। यहाँ के मुर्गी पालक किसान जो पहले प्राइवेट कम्पनी से हर महीने दाना खरीदने में लाखों रुपए खर्च करते थे लेकिन अब वही किसान प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर दिन 75 कुंतल दाना बनाते हैं।

देवरिया जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर देसही ब्लॉक के हरैया बसंतपुर में स्थित है। शुरुआती दौर में 18 किसानों से शुरू हुई इस कम्पनी में अभी 500 किसान जुड़ चुके हैं। वर्तमान में 218 किसान 16 लाख मुर्गियों का पालन कर रहे हैं। एक मुर्गी के अंडे से हर महीने 15 रुपए का मुनाफा होता है। इस हिसाब से इन किसानों की हर महीने कुल आमदनी ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा की होती है। बाकी के किसान मका उत्पादन करते हैं जिससे मुर्गियों को खाने का दाना बनता है।


कम्पनी के निदेशक किसान वेद व्यास सिंह (49 वर्ष) ने बताया, "कम्पनी बनने से पहले हमारे तीन एकड़ खेत में उतना ही पैदा होता था जिससे सालभर खाने का ही इंतजाम हो पाता था। लेकिन अब हमारी बनाई कम्पनी अपने आप में इतनी सक्षम हो गयी है जिससे हम आयकर विभाग को टैक्स दे चुके हैं।" उन्होंने आगे बताया, "ढाई साल के अन्दर कम्पनी ने शेयर मूल्यों को तिगुना करने में सफलता प्राप्त की है। इस कम्पनी को सरकार ने गेहूं क्रय केंद्र का अधिकार पत्र भी दिया है। कम्पनी ने रवी की फसल 2018 के दौरान 50 लाख रुपए का गेहूं क्रय किया।"

किसानों के द्वारा बनी इस कम्पनी ने वर्ष 2016-17 में 5.25 लाख और कम्पनी 2017-18 में तीन लाख रुपए का कॉरपोरेट टैक्स का भुगतान किया है। इस कम्पनी के 18 किसानों ने शुरुआती दौर में 13 लाख रुपए लगाकर इस कम्पनी की शुरुआत की थी। मुर्गी दाना की प्रोसेसिंग यूनिट की लागत लगभग 12 लाख रुपए आयी थी जिसमें सरकार ने 25 प्रतिशत सब्सिडी दी थी। इस फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी की तरह नाबार्ड के सहयोग से पूरे प्रदेश में किसानों की बनी 130 कम्पनियां हैं। इन कम्पनियों के बनने से किसानों को न केवल बिचौलियों से मुक्ति मिली है बल्कि इन्हें एक ऐसा बाजार भी मिला है जहाँ ये अपने उत्पादों को बेहतर दम पर बेच सकते हैं।


नाबार्ड के सहायक महाप्रबंधक राजेश यादव ने बताया, "देवरिया जिले में अंडा उत्पादन की 300 यूनिट लगी हैं। जिससे हर दिन 16 लाख अण्डों का उत्पादन होता है। जिससे 300 परिवारों की आजीविका सशक्त हुई है। यहां पोल्ट्री इंडस्ट्री में 10,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है।" उन्होंने आगे बताया, "देवरिया में जो किसान मुर्गी पालन कर रहे हैं वो छोटी जोत के किसान हैं। देवरिया के आसपास के कई जिलों में बड़े पैमाने पर अंडा उत्पादक हो रहा। आने वाले पांच साल में पूर्वांचल की पहचान अंडा उत्पादक के रूप में देखने को मिलेगी।"

कम्पनी के एक सदस्य शंकर्षण साही (46 वर्ष) ने कहा, "किसानों की मक्का कम्पनी अच्छे दामों पर खरीदती है। मुर्गियों का दाना जब खुद की कम्पनी बनाती है तो हमें उचित दरों पर दाना मिलता है। कम्पनी से जो भी फायदा होता है उसका सीधा लाभ हम किसानों को मिलता है। बिचौलियों को हमने पूरी तरह से खत्म कर दिया है।"



किसानों की इस कम्पनी की ये हैं विशेषताएं

1-प्रदेश की प्रथम कृषक उत्पादक कम्पनी ने दो वर्ष पांच महीने के भीतर छह करोड़ पचास लाख के अधिक का व्यापर किया।

2- इस उत्पादक कम्पनी को सरकार ने गेहूं क्रय केंद्र का अधिकार पत्र दिया। रवी की फसल 2018 के दौरान इस कम्पनी ने 50 लाख रुपए का गेहूं क्रय किया।

3- प्रदेश की प्रथम उत्पादक कम्पनी जिसने आयकर के रूप में वर्ष 2016-17 में 5.25 लाख और कम्पनी 2017-18 में तीन लाख रुपए का कार्पोरेट टैक्स का भुगतान किया।

4- स्थापना के दो वर्ष में इस कम्पनी ने 20 लाख से अधिक मूल्य का स्थाई-परिसम्पत्तियों का निर्माण स्थापित किया।

5- कम्पनी ने दो वर्ष पांच महीने के अन्दर शेयर मूल्यों को तिगुना करने में सफलता प्राप्त की है।

6- किसानों की इस कम्पनी ने संस्थागत वित्त आईडीबीआई बैंक देवरिया के 9 लाख का बैंक ऋण के सहयोग से फ़ार्म मशीनरी केंद्र की स्थापना की।

7- जिला सहकारी बैंक देवरिया ने फीड मिक्सिंग यूनिट निवेश ऋण के रूप में आठ लाख रुपए बैंक ऋण की सहायता प्रदान की।

8- पहली कम्पनी जिसके निदेशक मण्डल में उत्तर प्रदेश किसान आयोग ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने में सफलता हासिल की है।




कृषक उत्पादक कम्पनी के ये हैं फायदे

कृषक उत्पादक कम्पनी में किसान सामूहिक रूप से मिलकर कोई भी व्यवसाय शुरू करते हैं।

उत्पादक कम्पनी में जितने किसान होते हैं सभी बराबर लागत लगाते हैं और सबको उसका शेयर मिलता है।

समय-समय पर कम लागत में खेती का प्रशिक्षण मिलने से किसानों की खेती में लागत कम आती है। ये किसान अपने उत्पादों की संवर्धन मूल्य निर्धारित कर सकते हैं। सरकार की सब्सिडी भी इन्हें मिलती है।

जब ये मुर्गियों का फीड प्राइवेट कम्पनियों से खरीदते थे तो इन्हें पांच से छह प्रतिशत महंगा मिलता था। इस फीड में उपयोग होने वाली 70-80 प्रतिशत सामग्री में किसानों के उगाए उत्पाद शामिल होते हैं।

जब प्रोसेसिंग यूनिट के जरिए किसानों की कम्पनी खुद मुर्गियों का दाना बनाती है तो किसानों की फसल को सीधे कम्पनी खरीदती है बीच में बिचौलिये नहीं होते है। इससे इसका सीधा लाभ किसानों को मिलता है।

किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए बाजार मिलती है। कम्पनी बनने के बाद किसान केवल फसल उत्पादक तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपने प्रोडक्ट को बेहतर दामों में बेचकर एक सफल उद्यमी बनता है।

एक किसान को सामाजिक स्तर पर उनकी सोसाइटी में ख़ास पहचान मिलती है क्योंकि वो एक कम्पनी के निदेशक, अध्यक्ष जैसे कई पदों पर होते हैं।

        

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