न गिफ्ट न कैश , यहां शगुन में देते हैं देसी बीजों का लिफाफा 

Neetu SinghNeetu Singh   14 Jan 2018 1:54 PM GMT

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न गिफ्ट न कैश , यहां शगुन में देते हैं देसी बीजों का लिफाफा मध्य प्रदेश में तोहफ़े में दिए जाते हैं देसी बीज। 

बात शादी-विवाह की हो या फिर जन्मदिन पार्टी की हो, हम अक्सर बाजार से खरीदे गिफ्ट देते हैं, या कुछ पैसे लिफ़ाफे में बंद करके दे देते हैं। लेकिन हम बात कर रहे हैं एक ऐसे तोहफ़े की जो दूसरे तोहफ़ों से एकदम अलग है। हम आपको ले चलते हैं मध्यप्रदेश के खरगौन जिले में जहां के लोग किसी से मिलने पर या फिर किसी शुभ अवसर पर तोहफ़े में महंगे सामान की बजाए देसी बीज का लिफाफा पकड़ाते हैं। इन बीजों की कीमत भले ही बहुत कम हो, लेकिन यहां के सैकड़ों किसानों ने पारम्परिक बीजों के संरक्षण के लिए इस अनूठी पहल की शुरुआत की है।

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हम बात कर रहे हैं दिल्ली से लगभग 1000 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के खरगौन जिले के सैकड़ों किसानों की। किसान अविनाश सिंह मंटू दांगी (46 वर्ष) गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “हम तोहफे में जेवर या पैसे नहीं देसी बीज देते हैं, पर बीज देकर ही हमारा तोहफ़ा पूरा नहीं होता है। इन बीजों का कैसे उपयोग करें जिससे देसी बीजों का उत्पादन बढ़ सके, हम इस बात पर भी जोर देते हैं।” वह आगे बताते हैं, “बीज देने का काम हम अकेले नहीं कर रहे हैं, जिन्हें भी तोहफ़े में बीज देते हैं उनसे गुजारिश भी करते हैं कि वो इसका उत्पादन बढ़ाएं और अपने मित्रों को भी देसी बीज ही उपहार में दें। हम अपनी रिश्तेदारी में भी देसी बीज ही लेकर जाते हैं।”

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पीएस बारचे कैंसर पीड़ितों को देते हैं मुफ़्त में वंशी गेहूं।

इस मुहिम के पीछे हैं खरगौन के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी पीएस बारचे। बारचे की पत्नी का 2008 में कैंसर की वजह से निधन हो गया था। जब बारचे ने कैंसर की वजहों की खोज की तो उन्हें पता चला कि रोजमर्रा के खाने में मौजूद जहरीले तत्व इसके लिए जिम्मेदार हैं। उसी दिन बारचे ने ठान लिया था कि अब किसी की थाली में जहर नहीं जाने देंगे। उन्होंने भावुक होते हुए कहा, “मैं अपनी पत्नी को तो नहीं बचा सका, पर अब जहरीले भोजन से और मौतें न हो इसके लिए मैं जैविक खेती, देसी बीज पर पूरा समय देने लगा हूं। अब तक 50 हजार से ज्यादा किसानों को सीधे तौर पर शुद्ध अनाज पैदा करने का प्रशिक्षण दे चुका हूँ।”

वर्ष 2010 में देश भर में जैविक खेती का प्रशिक्षण देने वाले सुभाष पालेकर ने खरगौन के 700 से ज्यादा किसानों को प्रशिक्षण दिया। पालेकर मानते हैं कि अगर किसान को प्राकृतिक खेती करना है तो देसी बीजों को बचाना ही होगा। क्योंकि प्राकृतिक तरीके में हाइब्रिड बीज कारगर नहीं होंगे। सुभाष पालेकर को अपना गुरू मानने वाले पीएस बारचे ने 2011 से देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर न सिर्फ किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया बल्कि देसी बीजों को संरक्षित करने का भी काम शुरू किया।

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ऐसे लगती है देसी बीजों की प्रदर्शनी।

पीएस बारचे कहते हैं, “देशी बीज किसी भी फसल का हो उसे संरक्षित करने की जरूरत है। जैसे बंशी गेहूं वर्षों पुराना गेहूं है, पंजाब और महाराष्ट्र की लैब में इस गेहूं का परिक्षण कराया गया जिसमें 18 पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जबकि बाकी गेहूं में आठ नौ प्रतिशत ही पोषक तत्व होते हैं। इस समय देश कुपोषण से गुजर रहा है इसलिए देशी बीजों को बचाना बहुत जरूरी है क्योंकि सबसे ज्यादा पोषक तत्व देशी बीजों में ही पाए जाते हैं।”

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पीएस बारचे की तरह खरगौन के अति पिछड़े ब्लॉक झिर्नियाँ के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी संतोष पाटीदार भी इनके साथ देसी बीज को संरक्षित करने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। संतोष का कहना है, “मल्टीनेशनल कम्पनियों ने किसानों को ज्यादा उपज का लालच देकर हाइब्रिड बीजों पर किसानों की निर्भरता को बढ़ा दिया है। हमने प्रयास तो शुरू किया है लेकिन अभी भी किसानों को समझाने में थोड़ा समय लग रहा है, कई बार निराशा भी हाथ में लगती है लेकिन हम हार नहीं मान रहे हैं, कैसे भी करके देसी बीजों को बचाना है, सभी को शुद्ध भोजन मिले ये हम सबकी कोशिश है।”

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एक दूसरे से मिलने पर देते हैं देसी बीज या फल।

अविनाश पीएस बारचे से प्रेरणा लेकर खरगौन जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर विसटान गांव में 25 एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। हर रविवार को इनकी उगाई देसी सब्जियां और अनाज यहां के जैविक बाजार में लेने वालों की भीड़ होती है। इन्हीं की तरह ही पंधानिया गांव के माधव पाटीदार (64 वर्ष) पिछले 23 वर्षों से गायत्री परिवार से जुड़े हैं।

ये कहते हैं, “किसान को अन्नदाता कहा जाता है, इनकी उगाई हर चीज प्रसाद स्वरूप होती है। इसलिए किसी भी मांगलिक कार्यक्रम में हम ज्वार या कोई भी देसी बीज एक पात्र में भरकर भेंट करते हैं। कई बार मिट्टी के पात्रों में डिजाइन भी बनाते हैं जिससे वो आकर्षक लगने लगे। हमारे पास सभी प्रकार के देसी दलहन के बीज हैं। मैं खुद जहर मुक्त खेती करता हूं और लोगों को प्रेरित भी करता हूं।”

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प्राकृतिक खेती और देसी बीजों का प्रशिक्षण देते सुभाष पालेकर।

  

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